टॉप न्यूज़व्यापार

कोरोना वायरस: इतिहास में पहली बार आई कच्चे तेल में इतनी गिरावट

नई दिल्ली: कोरोना वायरस संकट की वजह से दुनियाभर में घटी कच्चे तेल (crude oil) की मांग के चलते सोमवार को इसकी कीमतें रसातल में पहुंच गई. कच्चे तेल की कीमतें सोमवार को इतिहास में पहली बार गिरकर निगेटिव जोन में पहुंच गईं. अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट कच्चा तेल का भाव गिरकर पहली बार -37.63/बैरल स्तर बंद हुआ.

वॉलस्ट्रीट पर कारोबार की शुरुआत से ही कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का रुख रहा लेकिन सोमवार रात नाटकीय अंदाज में तेल की कीमतों में गिरावट तब देखने को मिली जब अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट में इसके भाव तेजी से गिरने लगे. वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (WTI) को अमरीकी तेल का बेंचमार्क माना जाता है. शुरुआत में भाव घटकर 10.34 डॉलर प्रति बैरल पर आए. यह 1986 के बाद इसका सबसे निचला स्तर था.

फिर देखते ही देखते 5 डॉलर प्रति बैरल हो गए. थोड़ी ही देर में इस स्तर को तोड़ते हुए कच्चे तेल के भाव 2 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए. यहां भी कीमतों को सपोर्ट नहीं मिला और भाव 0 डॉलर प्रति बैरल हो गए. बाद में यह निगेटिव जोन में चले गए जो कि अपने आप में ऐतिहासिक घटना थी. कीमतों के निगेटिव जोन में पहुंचने के बाद गिरावट का यह दौर जाकर -37.63/बैरल पर थमा. व्यापारियों का कहना है कच्चे तेल की कीमत में यह गिरावट चिंताजनक है. कोई निवेशक तेल की वास्तविक डिलिवरी लेना नहीं चाह रहा है.

कोरोना वायरस की वजह से कच्चे तेल के खरीदार नहीं मिल रहे हैं. दूसरे खरीदार स्टोरेज की समस्या के चलते तेल खरीदने के लिए इच्छुक नहीं हैं. कोरोना वायरस के चलते फैसिलिटी यानी औद्योगिक प्रतिष्ठानों/कंपनियों में स्टोरेज लगभग फुल है. इसलिए भी तेल की मांग में गिरावट देखने को मिल रही है. पूरी दुनिया में फैक्टरी और ऑटोमोबाइल लगभग बंद पड़े हैं. दुनिया के कच्चे तेल के बड़े उत्पादक देशों ने इसके प्रोडक्शन में कटौती का फैसला किया है. यह फैसला इस उम्मीद के साथ लिया है कि बेहतर मांग उत्पन्न हो लेकिन कई विश्लेषकों का कहना है कि यह काफी नहीं होगा.

कोरोना वायरस के चलते फैसिलिटी यानी औद्योगिक प्रतिष्ठानों/कंपनियों में स्टोरेज लगभग फुल है. इसलिए भी तेल की मांग में गिरावट देखने को मिल रही है. पूरी दुनिया में फैक्टरी और ऑटोमोबाइल लगभग बंद पड़े हैं. दुनिया के कच्चे तेल के बड़े उत्पादक देशों ने इसके प्रोडक्शन में कटौती का फैसला किया है. यह फैसला इस उम्मीद के साथ लिया है कि बेहतर मांग उत्पन्न हो लेकिन कई विश्लेषकों का कहना है कि यह काफी नहीं होगा.

Related Articles

Back to top button