क्या चीन की चाल में आकर पीएम मोदी को धोखा दे रहे हैं श्रीलंका के राष्ट्रपति
भारत की विदेश नीति में दिलचस्पी रखने वलों के लिए पिछले दो दिन बेहद हैरत भरे रहे हैं. दक्षिण में भारत के पड़ौसी देश श्रीलंका से एक ऐसी खबर आई जो बेहद चौंकाने वाली है. समाचार पत्र द हिंदू में छपी खबर के मुताबिक श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल श्रीसेना ने अपनी कैबिनेट मीटिंग में कहा कि भारत की खुफिआ एजेंसी रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग यानी रॉ उनकी हत्या करवा सकती है.
कोल्ड वॉर के दौरान अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए या फिर सोवियत संघ की एजेंसी केजीबी पर तो विदेशी नेताओं की हत्या करवाके तख्तापलट करवाने के आरोप लगते रहे हैं लेकिन रॉ के ऊपर इस तरह का संगीन आरोप और वह भी सीधे राष्ट्रपति के जरिए लगना बेहद गंभीर है. जाहिर इस खबर की प्रतिक्रिया दिल्ली के साउथ ब्लॉक से भी हुई होगी जिसके बाद श्रीसेना ने आनन-फनन में भारत के पीएम मोदी से बात करके इस खबर को हवा–हवाई करार दे दिया.
भारत का भरोसा खो चुके हैं श्रीसेना!
श्रीसेना ने भले ही इस मामले को फौरी तौर पर रफा-दफा करने की कोशिश की हो लेकिन वास्तविकता तो यह है कि भारत के ही तथाकथित सहयोग से श्रीलंका के राष्ट्रपति बने मैत्रीपाल श्रीसेना अब मोदी सरकार का भरोसा खो चुके हैं.
यह बात उन लोगों को चौंका सकती है जिन्होंने साल 2015 में श्रीलंका में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद यह मान लिया था कि भारत ने अपने इस पड़ौसी मुल्क में चीन के खिलाफ बाजी मार ली है. लेकिन अगर पिछले श्रीलंका में कुछ वक्त की राजनीतिक हलचल पर नजर डालें साफ साफ दिखाई देता है कि इस छोटे से द्वीप में बिछी भारत-चीन की बिसात के तमाम मोहरे लगातार अपनी चाल बदल रहे हैं और उनमें सबसे आगे खुद राष्ट्रपति मैत्रीपाल श्रीसेना हैं.
द हिंदू की जिस रिपोर्ट में यह खबर छपी थी उसी रिपोर्ट में उस कैबिनट मीटिंग की एक और जानकारी भी दी गई है. खबर के मुताबिक उस मीटिंग में राष्ट्रपति श्रीसेना और उनके प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के बीच एक मसले पर जोरदार बहस हुई. यह मसला था कोलंबो पोर्ट के ईस्ट कंटेनर टर्मिनल में भारत की भागादारी. श्रीसेना ने भारत की भागीदारी की जोरदार खिलाफत की जबकि विक्रमसिंघे इसके पक्ष में थे.
अब सवाल है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति भारतीय हितों के इसने खिलाफ कैसे हो गए हैं. इस सवाल का जवाब जानने के पहले श्रीसेना के राजनितिक करैक्टर और उनके राष्ट्रपति बनने की कहानी को समझना होगा.
भारत के ही सहयोग से बने थे राष्ट्रपति!
राष्ट्रपति बनने से पहले श्रीसेना श्रीलंका की राजनीती का कोई बहुत बड़ा नाम नहीं थे. राजनीतिक तौर पर उनकी छवि भी एक वक्त में भारत के राज्य हरियाणा के विधायकों के लिए कहे जाने वाले टर्म ‘आयाराम-गयाराम’ की ही तरह थी.
पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग के साथ पारिवारिक रिश्ते होने के बावजूद उन्होंने मजबूत नेता और तब के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे का दामन थामे रखा. जब राजपक्षे की सरकार में इन्हें भाव मिलना बंद हो गया तो यह उनके विरोधी हो गए.
साल 2009 में करीब चार दशक पुरानी तमिल बगावत यानी लिट्टे का सफाया करने का बाद राजपक्षे की पॉपुलरिटी और तानाशाही चरम पर थी. चीन के साथ उनकी जुगलबंदी भी जमकर चल रही थी. श्रीलंका के मामलों में फंसकर पहले हाथ अपने हाथ जला चुका भारत भी एक सीमा से ज्यादा दखल देने के मूड में नहीं था.
2014 में भारत में मोदी सरकार के गठन के वक्त भी पीएम मोदी ने अपने शपथ ग्रहण के दौरान पूरी गर्मजोशी से राजपक्षे का स्वागत किया. लेकिन इसी साल अक्टूबर में जब राजपक्षे ने एक चीनी पनडुब्बी को अपने बंदरगाह पर लंगर डालने की इजाजत दी तो भारत सचेत हो गया. श्रीलंका में राजपक्षे पॉपुलर तो थे लेकिन चीन के साथ हुए तमाम करारों और उससे मिले कर्ज की खबरों ने उनके खिलाफ माहौल तैयार कर दिया.
श्रीलंका में अगले साल यानी 2015 में होने वाले चुनाव से पहले भारत के एनएसए अजीत डोवाल ने श्रीलंका का दौरा किया और माना जाता है कि राष्ट्रपति पद के लिए राजपक्षे के खिलाफ मैत्रीपाल श्रीसेना को संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनवावे में भारत ने अहम भूमिका अदा की. यह दांव काम कर गया और राजपक्षे ने खुलेआम अपनी हार के लिए रॉ को जिम्मेदार भी ठहराया.
चीन के दांव में फंस चुके हैं श्रीसेना!
बहरहाल 2017 में श्रीलंका के इस नए निजाम ने भारत के हितों का ध्यान रखते हुए इस बार चीनी पनडुब्बी को अपने बंदरगाह पर आने की इजाजत नहीं दी. यहां तक सब ठीक चल रहा था लेकिन इसके बाद चीन ने श्रीसेना के साथ एक चाल चली जिसमें वह ठीक वैसे ही फंस गए जैसे महिंदा राजपक्षे फंसे थे.
चीन ने राजपक्षे की सरकार को तमाम तरह के लोन देने के अलावा उनके इलाके यानी हम्बनटोटा में जमकर निवेश किया था. इस बंदरगाह को डेवलप करने, वहां एक बड़ा एयरपोर्ट बनाने के साथ साथ एक इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम भी बनाया गया था.
कुछ ऐसा ही ऑफर श्रीसेना को भी मिला. चीन ने श्रीलंका को 295 मिलियम डॉलर की रकम ‘तोहफे’ में दे दी. यानी इस रकम को खर्च करने की कोई शर्त इसमे शामिल नहीं थी. यही नहीं चीन ने श्रीसेना के शहर पोलोनरुवा में एक बड़ा किडनी ह़ॉस्पिटल बनाने का फैसला किया है. ठीक उसी तर्ज पर जैसे राजपक्षे के शहर हम्बनटोटा में बंदरगाह बनाया गया था.
चीन इस ‘दरियादिली’ का फायदा भी उसे भरपूर मिल रहा है. हम्बनटोटा के अलावा उसे कोलंबो पोर्ट सिटी को बनाने की भागीदारी भी मिल गई है. यह प्रोजेक्ट 2045 में पूरा होगा.
आखिर क्यों खास है श्रीलंका
अब एक सवाल यह भी है कि आखिरकार श्रीलंका इतना खास क्यों है जिसके लिए चीन इतनी बड़ी रकम दांव पर लगा रहा है. क्या वह महज भारत की घेरेबंदी करने के लिए श्रीलंका में यह दांव खेल रहा या बात कुछ और है.
दरअसल हिंद महासागर में श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति उसे बेहद अहम बनाती है. एक जानकारी के मुताबिक हिंद महासागर में श्रीलंका की दक्षिणी समुद्री सीमा से 10-15 नॉटिकल मील दूर ही से सालाना करीब 100,000 जहाज गुजरते हैं. दुनिया के तेल व्यापार का दो-तिहाई हिस्सा श्रीलंका की सीमा के पास के गुजरता है. करीब 5.3 ट्रिलियन डॉलर की वेल्यू के कंटेनर हर साल श्रीलंका की समुद्री सीमा के पास से गुजरते हैं.
चीन की भीमकाय अर्थव्यवस्था पूरी तरह प्रोडक्शन पर आधारित है. इसे लिए उसकी ऊर्जा जरूरतों का बहुत हिस्सा बड़ा हिंद महासागर के जरिए ही खाड़ी के देशों और अफ्रीकी देशों से आता है. यही नहीं उसके प्रॉडक्ट्स के आवागम का भी यही रास्ता है. जाहिर है चीन अपनी इकॉनमी के लिए बेहद जरूरी इस रास्ते पर श्रीलंका जैसे देश में अपने नौसैनिक अड्डे बनाने की जमीन तलाश रहा है या यूं कहें कि तलाश चुका है.
तो क्या चीन की गोदी में जाते मेत्रीपाल श्रीसेना के सामने भारत सरकार चुप है? मोदी सरकार को भी श्रीसेना की चालबाजी का अहसास हो गया है और उसने भी अपनी चालें चलना शुरू कर दिया है. हाल ही में हुए स्थानीय चुनावों में महिंदा राजपक्षे की पार्टी बेहद मजबूत होकर उभरी है. और जो राजपक्षे अपनी कुर्सी जाने का जिम्मेदार भारत को बता रहे थे वही पिछले दिनों नई दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात करके गए.
हालांकि श्रीलंका का हाइकमीशन उनकी इस यात्रा के तमाम इंतजाम खुद करना चाहता था लेकिन भारत सरकार ने उन्हें ला मेरीडियन होटल में ठहराया और खुद पीएम मोदी की फ्लीट में से एक बुलेटप्रूफ कार उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री से कराने के लिए भेजी गई. पीएम मोदी और राजपक्षे के बीच बंद दरवाजों में करीब 40 मिनट तक मीटिंग भी चली.
श्रीलंका की में बिछी चौसर मे यह भारत का मास्टर स्ट्रोक था लेकिन श्रीसेना ने एक बार फिर से पाला बदलने की अपनी फितरत को दिखा दिया. श्रीलंका से खबर है इस महीने उन्होंने राजपक्षे के साथ एक गुप्त मुलाकात की और ये दो धुर विरोधी अब एक ही मंच पर आने को तैयार दिख रहे हैं.
इस बात को लेकर श्रीलंका की राजनीति जोरदार बवाल मचा हुए है और रानिल प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की सरकार डावांडोल है. विक्रमसिंघे जल्द ही भारत यात्रा पर आने वाले हैं. मौजूदा वक्त में श्रीलंका की राजनीति में वही इकलौते ऐसे नेता बचे हैं जिसपर भारत का भरोसा अब भी बरकरार है. हो सकता है कि रॉ के खुद पर हमला करवाने की साजिश की खबर फैलाकर श्रीसेना घरेलू राजनीति में मचे बवाल को थोड़ शांत करवाना चाहते हों लेकिन इतना तय कि श्रीलंका की राजनीति मेंभारत और चीन के बाच चल रहे इस शह और मात के खेल मे अभी और दांव देखने बाकी हैं.