अद्धयात्म
क्यों करते हैं देवी-देवताओं की परिक्रमा, क्या है इसका फल?
हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि परिक्रमा से ही जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना किसी भी देवी-देवता की आराधना करने से प्राप्त होता है। परिक्रमा का मूल अर्थ है अपनी संपूर्ण मानसिक और शारीरिक भावना को उस देवता अथवा जिसकी भी आप परिक्रमा कर रहे हैं उसके प्रति समर्पण कर देना।
विवाह आदि कार्यों के समय अग्नि की सात परिक्रमा या चार परिक्रमा करने का विधान है। किसी भी देवी-देवता की, मंदिर की तीन परिक्रमा करने का सर्वमान्य नियम है। विद्यालय में गुरु की एक परिक्रमा का विधान है। किसी भी संकल्पित सकाम धार्मिक पूजा-पाठ में आचार्य की तीन परिक्रमा का विधान है।
श्राद्ध आदि कर्म में जो ब्राह्मण तर्पण, मार्जन का जानकार, गायत्री जप करने वाला हो, उसको भोजन कराकर उसकी चार परिक्रमा का विधान है।
ऐसे ही पीपल वृक्ष की 1, 3, 108, 101 परिक्रमा का विधान है। परिक्रमा करने से भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, पितृदेवों को प्रसन्न किया जा सकता है। वृंदावन की परिक्रमा करने से भगवान कृष्ण की भक्ति प्राप्त होती है तथा इष्ट कार्य की सिद्धि होती है।