अद्धयात्म

क्यों माना जाता है चरणामृत को बहुत पवित्र?

charanamrit00-1448610160मंदिर में भगवान के प्रसाद के साथ ही चरणामृत भी दिया जाता है जिसे भक्त श्रद्धापूर्वक ग्रहण करते हैं। चरणामृत के बारे में यह मंत्र बहुत प्रसिद्ध है- अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णोः पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।। इसका मतलब है कि भगवान विष्णु के चरणों का यह अमृत समान जल सभी पाप-व्याधियों का नाश करने वाला तथा औषधि के समान है। जो चरणामृत ग्रहण करता है वह पुनर्जन्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

यूं तो चरणामृत भी जल ही होता है लेकिन वह भगवान के चरणों में स्थान पाकर अमृत के समान हो जाता है। चरणामृत को इतना पवित्र क्यों माना जाता है। इसके संबंध में भी एक कथा है। भगवान ने जब वामन अवतार लिया और वे राजा बलि की यज्ञशाला में दान ग्रहण करने गए तो राजा ने अपने कमंडल से उनके चरण धोए और वह पवित्र जल पुनः कमंडल में रख लिया। उस जल को चरणामृत का नाम मिला और वह बहुत पवित्र माना गया।

माना जाता है कि भगवान के चरणों में अर्पित साधारण पानी में भी उसी पवित्र जल के समान गुण उपस्थित हो जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, चरणामृत समस्त रोग, दोष और शोक का नाश करने वाला होता है। आयुर्वेद के अनुसार, चरणामृत तांबे के पात्र में होता है तो उसमें धातु के विशेष गुण प्रविष्ट हो जाते हैं। 

 

Related Articles

Back to top button