गरीब छात्रों के सपने पूरे करने के लिए आगे आए दो सिविल सर्वेंट
आपने महाभारत में एकलव्य की कथा जरूर पढ़ी होगी जो गुरुदक्षिणा में अपना अंगूठा तक दे देता है। कहा जाता है, अगर एकलव्य से अंगूठा नहीं लिया जाता तो वह अर्जुन से भी श्रेष्ठ योद्धा बन सकता था। एकलव्य गुरुभक्ति का प्रतीक है लेकिन उससे कहीं ज्यादा एक अहम सवाल यह भी है कि अगर एकलव्य के पास भी संसाधन होते तो उसे छिप-छिपकर अपनी प्रतिभा नहीं तराशनी पड़ती।
ऐसे ही मेधावी लेकिन जरूरतमंद बच्चों के लिए किया गया प्रयास है ‘एकलव्य सुपर 50’। यह बिहार के सीतामढ़ी निवासी आईआरएस रामबाबू गुप्ता (जॉइंट कमिश्नर, आयकर) और उनके मित्र राजस्थान के दौसा जिले के महवा निवासी आईआरएस देवप्रकाश मीणा (डिप्टी कमिश्नर, कस्टम) का साझा प्रयास है। इस संस्था के जरिए वे आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को शिक्षा मुहैया कराते हैं।
देवप्रकाश बताते हैं, एकलव्य सुपर-50 के जरिए उन्होंने पटना में 200 गरीब बच्चों को फ्री मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग की सुविधाएं देने का निश्चय किया है। पिछले साल मैट्रिक परीक्षा में बिहार के टॉप टेन में एकलव्य सुपर 50 से 5 बच्चे थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया है। वे बताते हैं, यदि कोई विद्यार्थी बीपीएल है तो उसको रहने, खाने और यात्रा का किराया भी दिया जाता है। प्रवेश के लिए कोई जातिबंधन नहीं है। ऐसा विद्यार्थी जो प्रतिभाशाली हो, लेकिन आर्थिक बाधाएं उसके रास्ते में रुकावट डाल रही हैं तो एकलव्य सुपर 50 उसका पूरा सहयोग करेगा।
इसके लिए 10वीं में सीबीएसई बोर्ड से 9.5 सीजीपीए होना चाहिए। अगर राजस्थान बोर्ड से है तो कम से कम 80 प्रतिशत अंक होने चाहिए। ऐसे स्टूडेंट्स को इंजीनियरिंग/मेडिकल के लिए फाउंडेशन कोर्स कराया जाएगा। 12वीं क्लास में सीबीएसई में 9.5 सीजीपीए और राजस्थान बोर्ड से है तो 75 फीसदी अंक होने चाहिए। इन्हें भी मेडिकल/इंजीनियरिंग के लिए कोचिंग कराई जाएगी। यहां प्रतिशत को आधार बनाने का मतलब ये है कि होनहार लेकिन आर्थिक अभावग्रस्त बच्चे सिर्फ धन की कमी की वजह से पीछे न रह जाएं। कक्षाएं जुलाई में प्रारंभ हो चुकी हैं। लड़कियों के लिए पूरा प्रबंध अलग है।