गुलबर्ग सोसायटी मामले में कोर्ट ने दिया फैसला, 24 दोषी करार
एजेंसी/ अहमदाबाद। गुजरात के चर्चित गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड पर अदालत ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए 24 को दोषी करार दिया है जबकि 36 को बेगुनाह करार दिया गया है। फरवरी 2002 में गोधरा कांड के बाद उत्तेजित लोगों ने गुलबर्ग में कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी सहित 69 लोगों को मार डाला था। घटना के 14 साल बाद आया यह बड़ा फैसला है।
फैसला आने के बाद हमले में मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने नाखुशी जताई है। उन्होंने कहा कि 24 लोगों को दोषी माने जाने से वो खुश हैं लेकिन संतुष्ट नहीं। 36 लोगों को छोड़ दिया गया और इसके खिलाफ वो आगे की अदालत में अपील करेंगी।
विशेष अदालत के न्यायाधीश पीबी देसाई ने फैसला सुनाते हुए 11 आरोपियों को हत्या का दोषी माना है। दोषियों के लिए सजा का ऐलान 6 जून को किया जाएगा। अदालत ने अपने फैसले में गुलबर्ग मामले को लेकर किसी साजिश की बात नहीं की है। अदालत में 22 सिंतबर 2015 से आठ माह तक इस मामले की सुनवाई चली। इस मामले की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत से 31 मई तक फैसला सुनाने को कहा था।
66 गिरफ्तार, 335 गवाह, 3000 दस्तावेज
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित एसआइटी ने गुलबर्ग सोसायटी मामले में 66 लोगों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार लोगों में नौ जमानत पर हैं, जबकि शेष 14 वर्षों से सलाखों के पीछे हैं। एसआइटी ने मामले में 335 गवाह व 3000 दस्तावेज पेश किए।
मप्र के थे जाफरी
अहसान जाफरी मूल रूप से मप्र के बुरहानपुर के रहने वाले थे। आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में वह सांसद चुने गए थे। हत्याकांड से पहले अहमदाबाद के तत्कालीन पुलिस आयुक्त पी सी पांडे गुलबर्ग सोसायटी पहुंचकर पूर्व सांसद जाफरी से मिले व उनके परिवार को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की बात कही, लेकिन सोसायटी के अन्य लोग भी जाफरी के घर आकर जमा हो गए इसलिए जाफरी ने उन लोगों को छोड़कर जाने से इन्कार कर दिया था। यह जानकारी मृतक की पत्नी जकिया जाफरी ने अदालत में अपने बयान में दी थी।
पीएम मोदी को मिली क्लीन चिट
गहन जांच के बाद एसआईटी ने अप्रैल 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को यह कहते हुए क्लीन चिट दे दी थी कि इस घटनाक्रम में मोदी का कोई रोल ही नहीं था।
बचाने वाले भी बन गए आरोपी
गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड के दौरान कुछ लोगों ने दूसरे धर्म के लोगों की जान बचाई थी। धर्मेश शुक्ला व कपिल मिश्रा ने कई मुस्लिम परिवारों की मदद की तथा कुछ महिलाओं व बच्चों को अपने घर में पनाह भी दी। लेकिन 2008 में एसआईटी ने उन्हें भी आरोपी बना डाल दिया।
शुक्ला आज बेरोजगार हैं, उनका विवाह भी नहीं हो पा रहा है। दंगों के 6 माह पहले ब्याहे गए कपिल का तलाक हो गया है। दोनों पर एक युवक की हत्या का आरोप है, लेकिन मारे गए युवक के पिता अबु खान का कहना है कि उसने शुक्ला व मिश्रा को बेटे की हत्या करते नहीं देखा।