गुलाल खरीदते समय सावधान रहने की जरूरत, सभी हर्बल रंग आॅगैनिक नहीं होते
लखनऊ : होली नजदीक है, रंग और गुलाल खरीदते समय सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि सभी हर्बल रंग आॅगैनिक नहीं होते। लोग मानते हैं कि बाजार में मिलने वाले सिन्थेटिक कलर के बजाय हर्बल कलर से ही होली खेलनी चाहिए, जिससे कि त्वचा को नुकसान न पहुंचे। वहीं, एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जो हर्बल कलर आप खरीदते हो, ऐसा जरूरी नहीं कि उसमें केमिकल नहीं होता है। बाजार में ऑर्गैनिक कलर 100 से 200 रुपये किलो में मिलता है। वहीं, सिन्थेटिक कलर 30 से 50 रुपये में मिल जाता है। एक एनजीओ के कार्यक्रम समन्वयक का कहना है कि बहुत ही कम हर्बल कलर सही होते हैं इसलिए कलर खरीदते समय इस बात का ध्यान रखें कि कहीं बाहर से हर्बल कलर खरीदने के बजाय अच्छी बाजार से खरीदें। यह अच्छे और खराब कलर में फर्क करने का तरीका है। यहां तक कि कई बाजारों में दुकानदार ही हर्बल कलर की प्रामाणिकता की जांच ही नहीं करते। सिन्थेटिक कलर की कीमत कम होने के चलते अधिक बिकता है। वहीं, हर्बल कलर के महंगे होने के कारण लोगों तक इसकी पहुंच आसानी से नहीं हो पाती। एक और खास बात जो दुकानदार हर्बल कलर को बेच रहे होते हैं उनको कलर की वास्तविकता के बारे में पता ही नहीं होता है। एक डीलर के अनुसार, 95 प्रतिशत बाजार पर सिन्थेटिक कलर का कब्जा रहता है, क्योंकि यह हर्बल कलर की अपेक्षा दो से तीन गुना सस्ता होता है।
होली के त्यौहार पर लोग यह नहीं सोचते हैं कि सिन्थेटिक कलर का इस्तेमाल करने से शरीर को नुकसान पहुंचेगा। साथ ही कहा कि बाजार में नार्मल गुलाल भी 30 से 35 रुपये किलो मिलता है। जबकि खुला हुआ रंग चीन के अलावा छत्तीसगढ़ और पश्चिमी यूपी के हाथरस, आगरा, मेरठ से आता है। बाल विकास सामज की मधुमिता पुरी का कहना है कि एक एनजीओ फूलों को मंदिर से इकठ्ठा करवाता है। फूलों से ऑर्गैनिक कलर बनता है। जिसमें कई कलर होते हैं। इसके बाद कलर को 600 रुपये किलो में बेचता है। ऐसा संभव नहीं कि ऑर्गैनिक कलर 100 से 200 रुपये किलो में मिल जाए। वह बताती हैं कि सिन्थेटिक कलर और ऑर्गैनिक कलर की चमक में अंतर होता है। बाजार में सिन्थेटिक गुलाल के अलावा केमिकल से बने कई कलर मिल जाएंगे। इसके अलावा सिल्वर और गोल्ड कलर के जैल 40 रुपये किलो आसानी से मिल जाते हैं। वहीं, रंग के कैप्सूल बाजार में उपलब्ध रहते हैं। एक कैपसूल से एक बड़ी बाल्टी रंग तैयार हो जाता है। नीले और लाल कलर पर टेस्ट करने से पता चला कि इनमें हैवी मेटल और जहरीले तत्व हैं, जो कि शरीर के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करते हैं।