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ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की सच्चाई सामने लाती है ‘मासाब’


मुंबई : ‘मासाब’ एक अनूठी फिल्म है जो ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की असलियत को सामने लाती है, जहां सदियों से जन शिक्षा की अवधारणा मौजूद नहीं थी क्योंकि शिक्षा केवल विशेषाधिकार के लिए थी। फिल्म ‘मासाब’ में उत्तर मध्य ग्रामीण भारत की झलक दिखाई देती है। शिक्षा में सुधार लाने के लिए कई सुधारकों, विचारकों और शिक्षकों ने प्रयास किए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र बेहतर शिक्षा से दूर ही रहा। निजी स्कूलों ने कारोबार की तरह शिक्षा को आगे बढ़ाया, अच्छी सुविधाएं दीं लेकिन गरीब लोग बेहतर सु​विधाओं और अच्छी शिक्षा से वंचित ही रहे। आरोप लगे कि सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता की कमी और भ्रष्टाचार है और उनका बुनियादी ढांचा भी खराब है।
फिल्म मासाब का नायक एक ऐसा सुधारक है जो मानता है कि शिक्षा एक सार्वभौमिक खजाने की तरह है जिस पर हर किसी के पास समान अधिकार है और वह अपनी व्यक्तिगत क्षमता से जो कुछ भी कर सकता है, उसे करने की ठान लेता है और छोटे गांवों में अच्छी शिक्षा का प्रसार करने की कोशिश करने लगता है। पुरुषोत्तम स्टूडियो द्वारा निर्मित मासाब दक्षिण के स्टार आदित्य ओम द्वारा निर्देशित की गई है। शिव सूर्यवंशी और शीतल सिंह अभिनीत मासाब देश—विदेश के विभिन्न महोत्सवों में दिखाई गई है जिसकी प्रशंसा भी हुई है। विरल मिस्त्री और लवन गॉन ने फिल्म में संगीत दिया है जिसमें उन्होंने भारतीय और बुंदेलखंडी लोक गायकी को शामिल किया है।

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