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घबराइए नहीं, आसानी से समझिए GST का इम्पैक्ट

नई दिल्लीः जी.एस.टी. लागू हो गया है। देश का सबसे बड़ा टैक्स बदलाव कारोबार, व्यापार, खरीदार सबकी लाइफ पर असर डालेगा। इसलिए अब इससे बचने और आंख चुराने का फायदा नहीं। इससे घबराइए नहीं क्योंकि इसे समझना इतना मुश्किल भी नहीं है। जी.एस.टी. की ABCD को आसान भाषा में कुछ ऐसे समझिए: गुड्स एंड सर्विस टैक्स इसे हिंदी में वस्तु और सेवा कर कहा जाता है। यह एक तरह का वैल्यू एडिड टैक्स है जो गुड्स और सर्विस में जब-जब वैल्यू जुड़ती है, उसके हर स्तर पर लगता है। यानी अगर गुड्स या सर्विस में कोई वैल्यू जुड़ी है तो उसके मुताबिक उतना टैक्स जुड़ जाएगा।
GST का असर
दावा है इससे टैक्स सिस्टम की खामियां दूर होंगी। खासतौर पर इसका मकसद टैक्स पर टैक्स को खत्म करना है। जी.एस.टी. लागू होने के बाद तमाम तरह के दूसरे टैक्स हट जाएंगे। पहले होता था कि आप अगर मध्यप्रदेश में रहते हैं और तमिलनाडु में बनी कार खरीदते हैं तो आपके ऊपर दोहरा टैक्स लगता था, एक तो तमिलनाडु का टैक्स, केंद्र का टैक्स यानी एक्साइज ड्यूटी और मध्यप्रदेश का बिक्री कर। लेकिन अब आपको सिर्फ एक ही टैक्स देना होगा। जी.एस.टी. के दो बराबर हिस्से होंगे एक केंद्र का होगा, दूसरा उस राज्य का जहां आइटम बेचा गया है।
इनपुट टैक्स क्रैडिट क्या है?
सप्लाई चेन के हर स्तर पर आइटम की जितनी वैल्यू बढ़ती है, सिर्फ उस पर टैक्स लगता है। यानी पहले के स्तर पर जो टैक्स दिया गया है उसकी वापसी क्लेम की जा सकती है। मान लीजिए कपड़े बनाने वाली कंपनी ने कच्चा माल खरीदते वक्त जो टैक्स दिया था, वो रिटर्न फाइल करते वक्त उसका रिफंड क्लेम कर सकता है। इसी तरह कोई सर्विस प्रोवाइडर मान लीजिए डी.टू.एच. कंपनी है तो वो अपने प्रोडक्ट में इस्तेमाल आइटम जैसे डिश एंटीना की खरीदी में दिए गए टैक्स के रिफंड का क्लेम कर सकती है।
जी.एस.टी. कौन देगा?
ऐसे कारोबारी, मैन्युफैक्चरर और ट्रेडर जिनका सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपए से ज्यादा है। यानी इस लिमिट के नीचे वाले कारोबारियों को जी.एस.टी. रजिस्ट्रेशन कराने की जरुरत नहीं। पूर्वोत्तर और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए यह लिमिट 10 लाख रुपए है लेकिन अंतर्राज्यीय कारोबार के लिए कोई लिमिट नहीं है इसमें जी.एस.टी. लगेगा।
जी.एस.टी. के बाद कौन से टैक्स खत्म होंगे?
प्रोडक्शन पर टैक्स जैसे सैंट्रल एक्साइज ड्यूटी, अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी, इंपोर्ट ड्यूटी जैसे काऊंटरवेलिंग ड्यूटी, स्पैशल कस्टम ड्यूटी, सर्विस टैक्स, सैंट्रल सैस और सरचार्ज, राज्यों के टैक्स जैसे वैट, अंतर्राज्यीय कारोबार में सैंट्रल सेल्स टैक्स, लग्जरी टैक्स, एंटरटेनमैंट टैक्स (स्थानीय निकायों के टैक्स को छोड़कर), विज्ञापन पर टैक्स, लॉटरी पर टैक्स, राज्यों के सैस, तमाम टैक्स खत्म हो जाएंगे। लेकिन बेसिक कस्टम ड्यूटी जस की तस रहेगी क्योंकि जी.एस.टी. का हिस्सा नहीं है।
जी.एस.टी. के फायदे
हर सामान और सर्विस पर लगने वाले टैक्स में पारदर्शिता आएगी। अभी तो जब कोई आइटम खरीदा जाता है तो खरीदार को प्रोडक्ट के लेबल पर सिर्फ राज्य में लगा टैक्स ही नजर आता है। इसके अलावा क्या-क्या टैक्स जुड़ गए कंज्यूमर को यह पता ही नहीं चलता लेकिन एक जुलाई के बाद इसमें पारदर्शिता आ जाएगी। जो आइटम जी.एस.टी. दर की जिस कैटेगरी में है उसी के आधार पर टैक्स लगेगा। सबसे बड़ा फायदा होगा कि पूरा देश एक बाजार बन जाएगा। यानी देश में कहीं भी किसी भी आइटम की सप्लाई बेरोक-टोक हो सकेगी, राज्यों की सीमाओं की तमाम रुकावटें खत्म हो जाएंगी। सरकार को उम्मीद है कि टैक्स चोरी कम होगी। अनुमान है कि लंबी अवधि में राज्य और केंद्र की आय में भारी बढ़ौतरी होगी। रिसर्च एजैंसियों के मुताबिक एक बार जी.एस.टी. सिस्टम पूरी तरह पटरी पर आ गया तो जी.डी.पी. ग्रोथ भी 1.5 परसैंट तक बढ़ सकती है। तमाम तरह के टैक्स हटने का फायदा यह होगा कि बहुत से आइटम में टैक्स का बोझ कम हो जाएगा, दाम कम हो जाएंगे।
प्रोडक्ट जो अभी GST में शामिल नहीं
क्रूड ऑयल, डीजल, पैट्रोल, नैचुरल गैस, जैट फ्यूल को फिलहाल जी.एस.टी. के दायरे से बाहर रखा गया है। इन सभी आइटम को जीरो परसैंट कैटेगरी में रखा गया है लेकिन पुराना टैक्स लगता रहेगा। इन सभी को कब जी.एस.टी. के दायरे में लाना है इसका फैसला केंद्रीय वित्तमंत्री की अगुवाई वाली जी.एस.टी. काऊंसिल करेगी।
GST के दायरे से पूरी तरह बाहर प्रोडक्ट और सर्विस
रियल एस्टेट, शराब और बिजली पूरी तरह से राज्य का विषय हैं इसलिए जी.एस.टी. में शामिल नहीं किए जाएंगे लेकिन लैंड लीजिंग जी.एस.टी. के दायरे में होगा। इसी तरह शराब जी.एस.टी. के बाहर है और इसे जी.एस.टी. के दायरे में लाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा।
IGST क्या है?
अंतर्राज्यीय सप्लाई वाले आइटम या सर्विस आई.जी.एस.टी. के दायरे में आएंगे। इसमें वसूल की गई जी.एस.टी. के दो हिस्से होंगे, एक केंद्र का और दूसरा राज्य का लेकिन इसे अलग अलग करना कंज्यूमर या कारोबारी का सिरदर्द नहीं होगा। जी.एस.टी. नैटवर्क का सॉफ्टवेयर अपने आप ये हिस्सेदारी कर देगा।
जी.एस.टी. में इंपोर्ट की परिभाषा क्या होगी
इंपोर्ट को अंतर्राज्यीय सप्लाई माना जाएगा और इसमें आई.जी.एस.टी. लगेगा। एक्सपोर्ट पर अलग से कोई टैक्स नहीं लगेगा, एक्सपोर्ट के लिए तैयार सामान में इस्तेमाल हुए कच्चे माल और सर्विस पर दिए गए टैक्स को रिफंड कर दिया जाएगा।
मुनाफाखोरी पर लगाम लगाने का तरीका
जी.एस.टी. की आड़ में मैन्युफैक्चरर या कारोबारी और ट्रेडर को कीमतें बढ़ाकर मुनाफाखोरी से रोकने के लिए यह प्रावधान लाया गया है। अगर किसी आइटम में जी.एस.टी. मौजूदा टैक्स के मुकाबले कम होगा तो कंपनियों को उन आइटम के दाम घटाकर फायदा कंज्यूमर तक पहुंचाना होगा। जी.एस.टी. कानून के मुताबिक एंटी प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी बनाई जाएगी जो मुनाफाखोरी की शिकायतों पर कार्रवाई करेगी। अगर किसी ने मुनाफाखोरी की है तो उसे टैक्स में कमी का फायदा कंज्यूमर को 18 परसैंट ब्याज समेत लौटाना होगा। अगर खरीदार की पहचान नहीं हो पाती या उसका दावेदार नहीं होता तो अतिरिक्त मुनाफे की वसूली होगी। अगर मामला बहुत गंभीर पाया गया तो मुनाफाखोरी करने वाले का जी.एस.टी. रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है।
जी.एस.टी. काऊंसिल में फैसले कैसे होंगे?
जी.एस.टी. काऊंसिल के कोई फैसले केंद्र और राज्य सरकारों की सहमति के बगैर नहीं होंगे। किसी भी फैसले के लिए जी.एस.टी. काऊंसिल की बैठक में मौजूद 75 परसैंट वोट जरूरी हैं। केंद्र सरकार का वेटेज कुल पड़े वोटों का एक तिहाई होगा। बाकी सभी राज्यों का मिलकर वेटेज दो तिहाई होगा।
जी.एस.टी. की दरें और सैस
कुल मिलकर 6 दरें होंगी। 0.5 परसैंट, 3 परसैंट, 5 परसैंट, 12 परसैंट, 18 परसैंट और 28 परसैंट। अलग-अलग आइटम पर सैस के बहुत से रेट हैं। कुल मिलाकर सैस के एक परसेंट से लेकर 290 परसैंट तक हैं। सिगरेट, सिगार और तंबाकू प्रोडक्ट पर अलग रेट होंगे।
जी.एस.टी. और रिटर्न फाइलिंग
हर महीने की 10 तारीख तक पिछले महीने की बिक्री का स्टेटमैंट फाइल करना होगा। इसी तरह की गई खरीद या इनपुट का ब्यौरा हर महीने की 15 तारीख तक दायर करना होगा। इनपुट टैक्स रिफंड के लिए हर महीने की 20 तारीख तक खरीद-बिक्री का पूरा ब्यौरा यानी रिटर्न दायर करना होगा। कुल मिलाकर हर महीने तीन और साल में 36 बार फाइलिंग करनी होगी।

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