जातीय हिंसा में सुलग रहा सहारनपुर
जातीय हिंसा ने जहां प्रशासन की नींद उड़ाई है ,वहीं भाजपा और बसपा दोनों की चिंता भी बढ़ा दी है। सहारनपुर बसपा का गढ़ रहा है। मगर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बसपा के दलित आधार में जबरदस्त सेंध लगायी ,तो विधानसभा चुूनाव में दलित और मुस्लिम दोनों ने ही बसपा का साथ नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि बसपा को सहारनपुर जिले में एक भी सीट नही मिली। अब दलित भाजपा से छिटका तो उसकी आगे की राह मुश्किल है। नतीजन राजनीतिक दलों ने इस इलाके को जातीय हिंसा की प्रयोगशाला बना डाला।
प्रदेश को विकास की ओर ले जाने के प्रयास में जुटे मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को सहारनपुर की जातीय हिंसा ने विपक्ष के निशाने पर ला दिया है। खास बात यह है कि यह हिंसा मुख्यमंत्री के सजातीय और दलितों की बीच छिड़ी है, जिसके चलते सहारनपुर और आसपास के जिलों में तनाव की स्थिति बनी हुई है। पिछले चुनाव में भाजपा का साथ देने वाले दलित अपने उपर हो रहे अत्याचार से दुखी होकर हिन्दू धर्म छोड़ने की धमकी दे रहे हैं, जबकि भाजपा इस जातीय हिंसा के पीछे बहुजन समाज पार्टी का हाथ देख रही है। सच यह है कि वोटों की राजनीति ने इस इलाके को भाजपा और बसपा की प्रयोगशाला बना दिया है। वर्चस्व की इस लड़ाई में दलित बुरी तरह पिस रहा है। इस संघर्ष के बीच दलितों का नया संगठन भीम आर्मी प्रशासन की नींद उड़ाये है। सहारनपुर जिले का शब्बीरपुर गांव इन दिनों सुर्खियों में है। अठारह सौ की आबादी वाला यह गांव सवर्ण बाहुल्य है। जबकि जाटव समाज की आबादी यहां साढ़े चार सौ है। पांच मई को इस गांव के सवर्ण महाराणा प्रताप की शोभा यात्रा निकालना चाहते थे, जिसका दलितों ने विरोध किया और शोभा यात्रा नहीं निकालने दी। । उनका आरोप था कि जब दलित संत रविदास मंदिर में भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा लगाना चाहते थे,तो सवर्णों ने उन्हें प्रतिमा नही लगाने दी थी। इसलिए वे शोभा यात्रा नहीं निकलने देंगे। इस पर दोनों तरफ से कहा-सुनी हुई और बात हिंसा तक पहुंच गयी। सवर्णों ने शब्बीरपुर और महेशपुर गांव के साठ से अधिक घरों और दुकानों को फूंक दिया। इस हिंसा में एक युवक की मौत हो गयी और अनेक घायल हुए। इस घटना के बाद सवर्ण बाहुल्य गांवों के दलित डर के मारे अपने घर छोड़ कर सुरक्षित स्थानों को चले गयके।
इसके विरोध में नौ मई को भीम आर्मी के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में दलित पंचायत करने के लिए सहारनपुर शहर गांधी मैदान में एकत्रित हुए। मगर प्रशासन ने उन्हें पंचायत करन की अनुमति नहीं दी और लाठियां भांज कर खदेड़ दिया तो नाराज कार्यकर्ताओं पुलिस पर पथराव करते हुए शहर के अलग-अलग इलाकों में जाम लगा दिया। उन्होंने पुलिस चौकी फूंक दी और एक दर्जन वाहन सहित निर्माणाधीन महाराणा भवन में आग लगा दी। इस उपद्रव के दौरान एसडीएस समेत कई अफसर घायल भी हुए। महत्वपूर्ण बात यह है कि पहले गांधी मैदान में प्रदर्शन के लिए दो-तीन सौ लोग ही इकट्ठे हुए थे। लेकिन पुलिस के भगाये जाने के बाद भीम आर्मी के लोगों ने फोन करके भाारी संख्या में लोगों को बुला लिया। प्रशासन भीम आर्मी की ताकत को पहचान नही सका। इस घटना क बादे प्रशासन को इस संगठन की ताकत और उसकी सक्रियता का अहसास हुआ। भीम आर्मी के नेता च्रद्रशेखर के बारे में बताते हैं कि उसने सोशल मीडिया के जरिये अपने संगठन को विस्तार दिया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में इसका प्रभाव है। सहारनपुर की जातीय हिंसा ने सरकार की नींद उड़ा दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने उच्च अधिकारियों की बैठक बुलायी और स्थिति पर तत्काल नियंत्रण के आदेश दिये। इसके बाद पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह समेत कई उच्च अधिकारियों के सहारनपुर का दौरा किया। डीएम और एसएसपी समेत कई अधिकारियों का तबादला कर दिया गया। लेकिन इलाके में व्याप्त तनाव बरकरार रहा। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने 23 मई को शब्बीरपुर का दौरा किया। वे सड़क के रास्ते दिल्ली से सहारनपुर पहुंचीं और दलितों की दुखती रग पर हाथ रखा। उन्होंने पीड़ितों के जख्म सहलाने के बहाने उनकी सहानुभति भी बटोरी। सच तो यह है कि जातीय हिंसा की इन घटनाओं ने बसपा को अपनी खोई जमीन वापस पाने का अवसर प्रदान कर दिया। मायावती इस जातीय तनाव से उपजे दलित आक्रोश को अपनी ओर मोड़ना चाहती थी,तभी उन्होंने शब्बीरपुर में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए इस घटना के लिए भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया और दलितों से कहा कि भाजपा बसपा का खौफ खाती है। आप लोग बसपा के बैनर तले दलित महापुरुषों की जयंतियां मनायें,इससे भाजपा के लोग आप हमला करने से डरेंगे। वे पीड़ित परिवारों से मिली और उन्हें सहायता राशि भेंट की। लेकिन मायावती की सभा के बाद उसमें भाग ले लेकर लौट रहे लोगों पर सवर्णों ने रास्ते में हमला कर दिया। हमला इतना हिंसक था कि इसमें दो लोगों की मौत हो गयी और दो गंभीर घायल हो गये। इस घटना ने आग में घी का काम किया और इसके बाद आस-पास के जिलों में भी तनाव फैल गया है।
दरअसल इस जातीय हिंसा ने भाजपा और बसपा दोनों की चिंता बढ़ा दी है। यह सच है कि दलित समाज में चेतना लाने और उसके सशक्तीकरण में बसपा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सहारनपुर बसपा का गढ़ माना जाता है। मगर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बसपा के दलित आधार में जबरदस्त तोड़ फांेड की और ़पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलितों ने नरेन्द्र मोदी का साथ दिया था। इसके चलते बसपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना विशाल जनाधार होने के बावजूद खाता भी नही खोल पायी। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने दलितों को मुसलमानों के खिलाफ लामबंद किया। कई जगह भाजपा नेताओं ने दलित बस्तियों में मंदिर पर लाउड स्पीकर लगाये जाने को मुद्दा बनाया,जिसके चलते तनाव की स्थिति बनी। बसपा इस मामले में भाजपा के खेल से दूर रही। दरअसल दलित और मुसलमान दोनों ही उसके वोट बैंक रहे हैं। इसलिए बसपा न दलितों के साथ दिखी और उसने न मुसलमानों का साथ दिया। उसे डर था कि एक का साथ देने पर दूसरा वर्ग उससे नाराज हो सकता है। इसका नतीजा यह हुआ कि विधानसभा चुूनाव में दलित और मुस्लिम दोनों ही उससे छिटक गये। मुसलमान सपा और कांग्रेस गठबंधन के साथ चले गये और दलितों ने भाजपा का साथ दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सहारनपुर जिले में एक भी सीट नही मिली। इससे पहले 2007 में पांच और 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को चार सीटों पर विजय मिली थी। इस तरह अपनी जमीन खिसकने से बसपा बुरी तरह चिंतित है। लेकिन सवर्णों के बढ़ते हमलों से उसे दलितों की बसपा की ओर वापसी की उम्मीद बंधी है।
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी भी इस दलित- ठाकुर टकराव से असहज स्थिति में है। नगर निकाय चुनाव तो नजदीक हैं ही,लोकसभा चुनाव में भी भाजपा पुरानी सफलता दोहराना चाहती है। इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी सक्रिय हैं। उन्होंने एक बार कहा भी था कि हमारी सरकार के पास समय कम है और हमें अगले लोकसभा चुनाव में पहले से बेहतर परिणाम देना है। मगर जातीय हिंसा उसकी बहुत बड़ी परेशानी बन गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दौरा करके लौटे वरिष्ठ पत्रकार एस हनुंमंत राव बताते हैं कि ‘‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश को राजनैतिक दलों ने अपनी प्रयोशाला बना दिया है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मुसलमानों के खिलाफ दलितों का इस्तेमाल कर रही थी। पहले धार्मिक हिंसा से यह इलाका सुलगा था,अब जातीय हिंसा से तनावग्रस्त है। सत्तारूढ़ दल की खामोशी और प्रशासनिक ढील ने स्थिति बिगाड़ दी। इस्थिति बिगााड़ने में सोशल मीडिया का भी उपयोग किया गया। अब अगर प्रशासन ने कड़ाई नही बरती तो सहारनपुर और मुजफ्फर नगर प्रदेश के अन्य हिस्सों में पनपने लगेंगे। युवाओं में भारी बेरोजगाारी है। इसलिए जरूरत वहां रोजगार सृजन और गांव-गांव भाईचारा कायम करने की है। सभी पार्टियां उस इलाके को अपनी प्रयोगशाला बनाने की बजाय आपसी भाईचारा की पवित्रशाला बनायें,तभी शांति कायम होगी।’’ अब सोशल साइट्स के जरिये सहारनपुर बवाल की आग को दूसरे जिलों में फैलाने की कोशिशें हो रही है। खुफिया विभाग के मुताबिक दोनों समुदायों की तरफ से पैंतीस हजार पोस्ट डाली गयी हैं। प्रशासन गांवों शांति समितियां बना कर माहौल सुधारने में जुटा है। भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है और कई वरिष्ठ अधिकारी वहां डेरा डाले हुए हैं।
जातीय प्रयोगशाला बना दिया सहारनपुर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को राजनैतिक दलों ने अपनी प्रयोशाला बना दिया है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मुसलमानों के खिलाफ दलितों का इस्तेमाल कर रही थी। पहले धार्मिक हिंसा से यह इलाका सुलग था,अब जातीय हिंसा से तनावग्रस्त है। अब अगर प्रशासन ने कड़ाई नही बरती तो सहारनपुर और मुजफ्फर नगर प्रदेश के अन्य हिस्सों में पनपने लगेंगे। इसलिए जरूरत वहां रोजगार सृजन और गांव-गांव भाईचारा कायम करने की है। सभी पार्टियां उस इलाके को अपनी प्रयोगशाला बनाने की बजाय आपसी भाईचारा की पवित्रशाला बनायें,तभी शांति कायम होगी।
कौन है भीम आर्मी का रहनुमा
सहारनपुर जातीय हिंसा के बीच दलितों के नये संगठन भीम आर्मी का नाम उभर कर सामने आया है। इसका संस्थापक चंद्रशेखर है। चंद्रशेखर पिछले एक दशक से दलितों के बीच सक्रिय है।लेकिन पिछले दो साल में सोशल मीडिया पर इस संगठन के सदस्यों की जबरदस्त सक्रियता रही है। इसी माध्यम से चंद्रशेखर ने इस संगठन का फैलाव किया है। आज पश्चिम के सभी सत्रह जिलों में इसकी शाखायें है। जब दस मई को सहारनपुर में दलित कार्यकर्ताओं ने तोड़-फोड़की ,तो पुलिस उसकी तलाश में जुटी। मगर इसी बीच चंद्रशेखर ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर सैकड़ों दलितों के साथ प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में गुजरात के दलित नेता जिग्नेश ने भी भागीदारी की। इससे साफ है कि च्रद्रशेखर देश के अन्य हिस्सों के दलित नेताओं से सम्पर्क बनाये हुए है। बताते हैं िकवह भीम आर्मी को शिवसेना की तरह आक्रामक संगठन बनाना चाहता है। इसकी कार्य प्रणाली भी शिवसेना की तरह है। अगर कही दलितों का उत्पीड़न होता है तो भीम आर्मी के कार्यकर्ता फोन और सोशल मीडिया के जरिये अपने लोगों को सूचना देकर इकट्ठा कर लेते हैं। सहारनपुर के अलावा मुजफ्फर नगर और शामली में इसकी सदस्य संख्या ज्यादा है।