जानिए, आखिर क्यों शरद पूर्णिमा के दिन चांदनी रात में खीर रखने की है परंपरा
ऋतु परिवर्तन को इंगित करने वाली और स्वास्थ्य समृद्धि की प्रतीक है शरद पूर्णिमा। दक्षिण भारत में इसे ही कोजागरी पूर्णिमा कहते हैं। शरद पूर्णिमा पर्व रास पूर्णिमा या कौमुदी व्रत भी कहलाता है। इसे आश्विन मास की पूर्णिमा भी कहा जाता है।
शरद पूर्णिमा को श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। महर्षि अरविंद महारास को दर्शन से जोड़ते हैं और उसे अतिमानस की संज्ञा देते हैं।
अध्यात्म के दृष्टिकोण से यदि हम देखें, तो महारास अलौकिक प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ओशो मानते हैं कि प्रेम ही सृष्टि का जन्मदाता है और नए विचारों का भी। यह सच है कि स्वस्थ शरीर में ही नए और सुंदर विचारों का जन्म होता है।
शरद पूर्णिमा को खीर का महत्व
यह भी माना जाता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत झरता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है। जो शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा के उज्जवल किरणों से आलोकित हुई खीर का रसास्वादन करते हैं, मान्यता है कि उन्हें उत्तम स्वास्थ्य के साथ मानसिक शांति का वरदान भी मिल जाता है।
शरद पूर्णिमा का संदेश
चंद्रमा हमारे मन का प्रतीक है। हमारा मन भी चंद्रमा के समान घटता-बढ़ता यानी सकारात्मक और नकारात्मक विचारों से परिपूर्ण होता है। जिस तरह अमावस्या के अंधकार से चंद्रमा निरंतर चलता हुआ पूर्णिमा के पूर्ण प्रकाश की यात्रा पूरा करता है। इसी तरह मानव मन भी नकारात्मक विचारों के अंधेरे से उत्तरोत्तर आगे बढ़ता हुआ सकारात्मकता के प्रकाश को पाता है। यही मानव जीवन का लक्ष्य है और यही शरद पूर्णिमा का संदेश भी।
इस वर्ष शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर दिन रविवार को है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा आश्विन मास के पूर्णिमा तिथि को होता है। शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी और देवताओं के राजा इंद्र की पूजा करने का विधान है