जानिए किस नक्षत्र में पैदा हुए लोग होते हैं धनवान
सप्ताह का ज्ञान
श्राद्ध पक्ष यानि पितृपक्ष का काल आत्मिक उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इस समय में धन की नियंत्रक शक्तियां जिन्हें यक्ष-यक्षिणी कहा जाता है, पूर्ण रूप से सक्रिय होते हैं। यह स्वयं की कार्य क्षमता में वृद्धि का काल माना जाता है।
नक्षत्र दर्शन
पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न लोग सौभाग्यशालियों में शुमार होते हैं। ये अपनी क्षमता से अपार धन अर्जित करते हैं। इनकी प्रवृत्ति आध्यात्मिक होती है। धर्म-कर्म और परोपकार में इनकी स्वाभाविक रुचि होती है। ये लोग न्यायप्रिय होते हैं। इन्हे यूं तो कई विषयों का ज्ञान होता है, पर किसी एक विषय के ये माहिर होते हैं। इन्हें उत्तम संतान सुख प्राप्त होता है। इनका स्वभाव शांत होता है। ये लोग सुखी लोगों में शुमार होते हैं।
प्रश्न: नवरात्रि में किया जाने वाला देवी या चंडी पाठ क्या है? क्या ये कोई कवच, स्तोत्र, मंत्र या मंत्रों का समूह है, या कुछ और? क्या इनसे हम पर कोई प्रभाव पड़ता भी है, या बस परंपरा का हिस्सा है?-मानव शर्मा
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि देवी पाठ दरअसल ध्वनि के द्वारा अपने भीतर की ऊर्जा के विस्तार की एक पद्धति है। ये पाठ प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के श्लोकों में गुंथे वो सात सौ वैज्ञानिक फॉर्म्युले हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो अपने शब्द संयोजन की ध्वनि से हमारे अंदर की बदहाली और तिमिर को नष्ट करने वाली ऊर्जा को सक्रिय कर देने की योग्यता रखते हैं। ये कवच, अर्गला, कीलक, प्रधानिकम रहस्यम, वैकृतिकम रहस्यम और मूर्तिरहस्यम के छह आवरणों में लिपटे हुए हैं। इसके सात सौ मंत्रों में से हर मंत्र अपने चौदह अंगों में गुंथा है, जो इस प्रकार हैं- ऋषि, देवता, बीज, शक्ति, महाविद्या, गुण, ज्ञानेंद्रिय, रस, कर्मेंद्रिय स्वर, तत्व, कला, उत्कीलन और मुद्रा। माना जाता है कि संकल्प और न्यास के साथ इसके उच्चारण से हमारे अंदर एक रासायनिक परिवर्तन होता है, जो आत्मिक शक्ति और आत्मविश्वास को फलक पर पहुंचाने की योग्यता रखता है। मान्यताएं इसे अपनी आंतरिक ऊर्जा के विस्तार में सहायक मानती हैं।
प्रश्न: क्या नवरात्रि लक्ष्मी की साधना के लिए श्रेष्ठ समय है? -परेश पारिख
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि नवरात्रि का काल बाहर बिखरी हुई अपनी ऊर्जा को स्वयं में आत्मसात करने यानी उन्हें खुद में समेटने की बेला है। इसके तीन दिन आत्मबोध और ज्ञान बोध के, तीन दिन शक्ति संकलन और उसके संचरण यानी फैलाव के और तीन दिन अर्थ प्राप्ति के कहे गए हैं। यूं तो नवरात्रि में भी लक्ष्मी आराधना की जा सकती है, क्योंकि इसकी तीन रात्रि अर्थ, धन या भौतिक संसाधनों की मानी गई हैं। पर यह पर्व सीधे धन न देकर, अर्थार्जन की क्षमता प्रदान करता है, जो कर्म, श्रम और प्रयास के बिना फलीभूत नहीं होता। सनद रहे कि धन प्राप्ति के सूत्र तो सिर्फ श्रम पूर्वक कर्म और स्वयं की योग्यता व क्षमता में ही निहित हैं।
प्रश्न: क्या नवरात्र में देवी पूजन के साथ हथियारों या शस्त्रों के पूजन से शक्ति में वृद्धि होती है? -अयोध्या सिंह
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि शक्ति प्राप्ति का अर्थ किसी देवी के खाते से शक्ति का स्थानांतरण है। यहां शक्ति से आशय खुद की महाऊर्जा से है, अंतर्मन की शक्ति से है, आंतरिक ऊर्जा से है। नवरात्र का दिव्य पर्व बाहर बिखरी स्वयं की ऊर्जा को खुद में समेटने की पावन बेला है। इसके तीन दिन स्वपरिचय यानि ज्ञान और बोध के, तीन दिन शक्ति संकलन और संचरण अर्थात फैलाव व विस्तार के और तीन दिन अर्थ व पदार्थ प्राप्ति के कहे गए हैं। ये नौ दिन किसी हथियार को नहीं, बल्कि स्वयं को धार प्रदान करने का विलक्षण काल है। वैज्ञानिक अवधारणा है कि हम अपने संपूर्ण जीवन में अपने बाह्य मस्तिष्क का मात्र कुछ ही प्रतिशत इस्तेमाल कर पाते हैं। हमारे बाह्य मस्तिष्क यानि चेतन मस्तिष्क से हमारा अचेतन मस्तिष्क नौगुणा ज्यादा शक्तिशाली है, ऐसा आध्यात्म ही नहीं विज्ञान भी मानता है। इसलिए समस्त आध्यात्मिक साधनाएं और उपासनाएं स्वयं में प्रविष्ट होने की ही अनुशंसा करती हैं। आध्यात्मिक नवरात्र का पर्व कर्मकांड से इतर अपने उसी नौगुणे सामर्थ्य के पुनर्परिचय का काल है।
प्रश्न: क्या पितृ पक्ष मरे हुए लोगों, भूत-प्रेत और पूर्वजों का काल है? -सौमित्र रघुवंशी
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष आध्यात्म की दृष्टि से ऐसी अद्भुत बेला है, जो अल्पप्रयास से ही सफलता और सकारात्मक परिणाम प्रदान करती है। यह पक्ष आत्मा और आत्मिक उन्नति का पुण्यकाल है। इस पक्ष का भूत-प्रेत या मरे हुए लोगों से कोई संबंध है, यह धारणा पूर्णतया गलत है।