आम आदमी पार्टी (AAP) संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए अपनी कुर्सी और पार्टी पहले है और दिल्ली की जनता बाद में। जी हां, कड़वा सच कुछ ऐसा ही है। यह सच भी स्वयं केजरीवाल के बयानों से सामने आ रहा है। मानहानि का केस हारने पर उन्हें जेल न जाना पड़ जाए और उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध न लग जाए, तो उन्होंने एक साल पुराने मामले में भी पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से माफी मांग ली और पंजाब के सिर्फ 20 विधायकों के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया।
वहीं दिल्ली में अधिकारियों के साथ पूरे एक माह से चल रही खींचतान के कारण विकास कार्य ठप पडे हैं, लेकिन केजरीवाल इस मसले पर झुकने को तैयार नहीं हैं। उनके इस अहम का खामियाजा आप को स्पष्ट बहुमत देने वाले दिल्लीवासी भुगत रहे हैं।
गौरतलब है कि गत 19 फरवरी की रात मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सरकारी निवास पर मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ आम आदमी पार्टी के विधायकों ने हाथापाई की थी। सोमवार यानि 19 मार्च को इस घटना का एक माह पूरा हो रहा है।
पूरे प्रकरण पर सिर्फ एक बार केजरीवाल ने चुप्पी तोड़ी भी तो सिर्फ अधिकारियों कोसने के लिए। हालांकि उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली के मुख्य प्रशासक के रूप में मुख्यमंत्री केजरीवाल को सलाह दी कि वे आगे बढ़कर अभिभावक के तौर पर इस विवाद को हल करें।
बातचीत के जरिये अधिकारियों में सुरक्षा का भाव जगाएं। लेकिन, सरकार ने उपराज्यपाल की नसीहत को पहले की तरह गलत ही लिया। इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी ने इस गतिरोध के लिए उपराज्यपाल को ही साजिशकर्ता ठहरा दिया।
उपराज्यपाल के अभिभाषण में भी रस्म अदायगी साफ नजर आई। विचारणीय पहलू यह भी कि पंजाब में विधानसभा चुनाव के दौरान भी केजरीवाल सरकार ने स्पष्ट बहुमत देने वाली दिल्ली की इसी तरह से उपेक्षा की थी। मौजूदा समय में फिर वही स्थिति बन गई है। विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है लेकिन यहां का गतिरोध दूर करने की बजाय केजरीवाल पूरी ताकत पंजाब की समस्या हल करने में लगा रहे हैं।