जानिए, दीपावली महालक्ष्मी कुबेर पूजा विधि और शुभ मुहूर्त…
महालक्ष्मी का प्राकट्यपर्व दीपावली 27 अक्तूबर, रविवार को है। इस दिन महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना के साथ-साथ श्रीगणेश, कुबेर, नवग्रह, षोडशमातृका, सप्तघृत मातृका, दसदिक्पाल और वास्तुदेव का आवाहन-पूजन करने से वर्षपर्यंत अष्टलक्ष्मी की कृपा बनी रहती है जिनसे परिवार में मांगलिक कार्यों और सुख-शान्ति की वृद्धि से आत्मसुख मिलता है। इस दिन घर में आ रही लक्ष्मी की स्थिरता के लिए देवताओं के कोषाध्यक्ष धन एवं समृद्धि के स्वामी कुबेर का पूजन-आराधना करने से नष्ट हुआ धन भी वापस मिल जाता है और कर्ज से मुक्ति के द्वार खुल जाते हैं। व्यापार में बड़ी सफलता और यश प्राप्ति के लिए कुबेर यंत्र का पूजन आवश्यक है इसे किसी भी तरह के सोने, चांदी, अष्टधातु, तांबे, भोजपत्र, आदि पर निर्मितकर पूजन करना श्रेष्ठ होता है। इन्हीं वस्तुओं पर यंत्रो के राजा ‘श्रीयंत्र’ भी निर्मित कर सकते हैं।
गृहस्थ के लिए पूजा विधि
उन गृहस्त लोगों के लिए जिन्हें पूजा का अधिक विधि-विधान का ज्ञान नहीं है या जिनकी सामर्थ्य शक्ति कम है, उन्हें इस संक्षिप्त विधि श्रीमहालक्ष्मी पूजन कर लेना चाहिए। पूजा के आसन पर बैठने के बाद सर्वप्रथम ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः कहते हुए अपनी शरीर पर जल छिड़कते हुए तीन बार आचमन करना करना चाहिए इसके बाद अपनी सुविधा-शक्ति के अनुसार इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करते हुए सभी का पूजन करना चाहिए।
गणेश जी के आवाहन एवं प्रसनता के लिए ॐ गं गणपतये नमः इस मंत्र का प्रयोग करना चाहिए। वरुण देव का आवाहन करने के लिए कलश के लिए ॐ वं वरुणाय नमः। नवग्रह के लिए ॐ नवग्रहादि देवताभ्यो नमः। सोलह माताओं की प्रसन्नता के लिए ॐ षोडशमातृकायै नमः का उच्चारण करें। श्रीमहालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः और श्रीकुबेर की पूजा के लिए ॐ कुबेराय वित्तेश्वराय नमः, मंत्र का प्रयोग करना सर्वोत्तम रहेगा। इन्हीं मन्त्रों का उच्चारण करते हुए आप सभी देवों की भक्ति पूर्वक आराधना कर सकते हैं।
प्रदोषकाल
अमावस्या के दिन गृहस्थों के लिए अपने निवास स्थान में पूजा के लिए सायं 05 बजकर 36 मिनट से रात्रि 08 बजकर 14 मिनट तक का समय सर्वश्रेष्ठ रहेगा। इसमें भी शायं 06 बजकर 40 मिनट से 08 बजकर 35 मिनट के मध्य बृषभ (स्थिर लग्न)रहेगा। इसी अवधि के मध्य में दीप-दान एवं पूजन के लिए चित्रा नक्षत्र तुला राशिगत चन्द्र तथा शुभ एवं अमृत चौघड़िया रहने से श्री महालक्ष्मी का पूजन कई गुना अधिक शुभ फलदायी रहेगा।
निशीथकाल
साधकों के लिए ईष्ट आराधना, कुल देवी-देवता का पूजन, मंत्र सिद्धि अथवा जागृत करने, श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त, कनकधारा स्तोत्र, आदि का जप पाठ करने के लिए उपयुक्त निशीथकाल का शुभ समय रात्रि 08 बजकर 14 मिनट से 10 बजकर 50 मिनट तक रहेगा।
महानिशीथ काल
तांत्रिक जगत के लिए मारण, मोहन, उच्चाटन, विद्वेषण वशीकरण आदि की साधना-सिद्धियों के लिए महानिशीथ काल की अवधि रात्रि 10 बजकर 49 मिनट से मध्यरात्रि 01 बजकर 14 मिनट तक के मध्य है। इसी काल में कर्क एवं सिंह लग्न भी क्षितिज का स्पर्श करेगा जो साधना-सिद्धि के लिए अति शुभफलदाई माना गया है।