जानिए महिलाएं बार बार क्यों जाती है बाथरूम, क्या है रोकने के उपाय !
ऐसी बहुत सी आदते है जो केवल महिलाओ में पाई जाती है. जैसे कि कई महिलाओ को बार बार बाथरूम जाने की आदत होती है या ऐसा भी कह सकते है, कि उन्हें बार बार बाथरूम जाना पड़ता है. ऐसे में बहुत से लोग इस समस्या को काफी हल्के में लेते है. इसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते. जिसके चलते ये समस्या आगे चल कर बड़ा रूप ले सकती है. वैसे हम आपको बता दे कि इस समस्या से निपटने के कई तरीके है. जी हां इन तरीको को अपना कर आप इन समस्याओ से छुटकारा पा सकते है. तो चलिए अब हम आपको इस समस्या के बारे में और साथ ही इसके समाधान के बारे में विस्तार से बताते है.
गौरतलब है, कि यूरिनरी इंकॉन्टीनेंस में इस स्थिति को मूत्र असयंम भी कहा जाता है. दरअसल ये समस्या ब्लैडर के अनियंत्रित होने की वजह से होती है. अगर सीधे शब्दों में बताएं तो इसका मतलब ये है, कि ये स्थिति ओवरएक्टिव ब्लैडर की समस्या के कारण होती है. बता दे कि ब्लैडर के ओवरएक्टिव की स्थिति में कभी कभी छींकने खांसने, हंसने और सीढियाँ चढ़ने से भी यूरिन अपने आप निकल जाता है. वही दा नेशनल एसोसिएशन फॉर कॉन्टिनेंस के मुताबिक यह समस्या महिलाओ में ज्यादा पाई जाती है. इसके इलावा बीस से पैंतालीस वर्ष की आयु वाली महिलाओ को ये समस्या बाकी लड़कियों के मुकाबले ज्यादा होती है.
गौरतलब है, कि ओवरएक्टिव ब्लैडर कई प्रकार के होते है. दरअसल पेल्विक ऊतक और मासपेशियो के कमजोर होने से तनाव असंयम की स्थिति पैदा हो जाती है. इसके इलावा मूत्राशय पूरी तरह खाली न हो पाने की स्थिति को ओवरफ्लो असयंम भी कहा जाता है. ऐसी स्थिति में मूत्राशय पूरी तरह भरने के बावजूद भी मूत्र लीक होने में कई समस्याओ का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही एक स्थिति ऐसी भी है, जिसमे इंसान वाशरूम पहुँचने तक भी खुद पर संयम नहीं रख पाता. बता दे कि इस स्थिति को तीव्र असंयम कहा जाता है.
इस समस्या के कारण महिलाओ में ब्लैडर गर्भावस्था तथा बच्चा होने के बाद ओवरएक्टिव हो जाता है. वो इसलिए क्यूकि इस स्थिति में तनाव के साथ साथ श्रोणि क्षेत्र की मासपेशियो पर भी अधिक दबाव पड़ता है. जिसके चलते मूत्रमार्ग में रुकावट आती है और साथ ही कब्ज की समस्या भी पैदा हो जाती है. यही स्थिति मूत्र असंयम की समस्या को जन्म देती है. इसके इलावा स्केलेरोसिस, अर्थराइटिस, डिमेंशिया, मूत्राशय की पत्थरी और मूत्राशय संक्रमण आदि जैसे रोग भी इस समस्या का मुख्य कारण हो सकते है. बता दे कि कई प्रकार की दवाईयों की वजह से भी ये समस्या हो सकती है.
यूँ तो इस समस्या के चलते कई यातनाओ का सामना करना पड़ता है. मगर वही सबसे अच्छी बात ये है, कि आज इस समस्या का उपचार यानि इलाज भी उपलब्ध है. गौरतलब है, कि ओवरएक्टिव ब्लैडर होने की स्थिति में विशेषज्ञ कीगल व्यायाम और पेल्विक फ्लोर व्यायाम करने की सलाह देते है. इसके साथ ही अपनी जीवन शैली में बदलाव करके भी इस समस्या को नियंत्रण में लाया जा सकता है. दरअसल कीगल व्यायाम ब्लैडर की मासपेशियो को मजबूत बनता है. इसके इलावा इस व्यायाम द्वारा शरीर पेल्विक मासपेशियो को पांच सेकंड तक पकड़ कर फिर धीरे से छोड़ देता है. इसलिए इस व्यायाम को दिन में दस बार करे. बता दे कि इस व्यायाम को आप घुटनो के बल लेटकर, बैठ कर और खड़े होकर भी कर सकते है.
वही ब्लैडर ट्रेनिंग में इस व्यायाम को ब्लैडर ब्रिल्स के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल इस व्यायाम द्वारा मूत्र को रोकना सिखाया जाता है. यानि अगर किसी इंसान को हर पंद्रह मिनट बाद वाशरूम जाना पड़ता है, तो उसे बीस या पच्चीस मिनट के लिए बाथरूम रोकना सिखाया जाता है. फिर धीरे धीरे इसकी अवधि बढ़ाई जाती है. इसके इलावा बायो फीडबैक वो तकनीक है, जो आपके कीगल व्यायाम का परीक्षण करती है.
इसके मुताबिक इस बात का पता चलता है, कि आप व्यायाम ठीक से कर रहे है या नहीं. इसके साथ ही इसमें एक यंत्र होता है, जो डॉक्टर को यह बताता है, कि आप पेल्विक व्यायाम करते समय सही तरीके से मासपेशियो को सिकोड़ रहे है या नहीं. गौरतलब है, कि इस उपचार के बाद आपकी ये समस्या धीरे धीरे खत्म होती जाएगी.