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जीएसटी पर गतिरोध दूर करने के लिए विपक्ष की शरण में सरकार : 10 खास बातें
- संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा, “लोगों को काफी उम्मीदें हैं, और इसीलिए संसद का कामकाज चल पाना बेहद ज़रूरी है…”
- संसद में जीएसटी बिल को विपक्षी कांग्रेस ने पारित नहीं होने दिया था, और महत्वपूर्ण बदलावों की मांग की थी। दरअसल संसद के उच्च सदन, यानी राज्यसभा में बिल को पास करवाने के लिए सरकार को कांग्रेस की मदद की ज़रूरत पड़ेगी, क्योंकि वहां सरकार अल्पमत में है।
- संसदीय कार्यमंत्री वैंकैया नायडू के अनुसार बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जीएसटी बिल को लेकर किन्हीं भी संशयों के निवारण के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली सभी पार्टियों से बात करेंगे।
- सरकार ने कहा है कि यदि जरूरी हुआ तो वह जीएसटी बिल पर सहमति बनाने के लिए कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से सीधे बात करने को तैयार है। यह उसकी ओर से बिल को आगे बढ़ाने की इच्छा को दर्शाता है।
- केंद्र सरकार ने पहले ही जीएसटी में बदलाव की कांग्रेस पार्टी की मांग पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत राज्यों में लागू एक दर्जन से अधिक करों को हटाकर उसकी जगह पर आजादी के बाद पहली बार देश में एक जैसे टेक्स सुधार लागू करना है।
- मंगलवार को हालांकि वित्त मंत्री जेटली ने कांग्रेस से इस मसले पर बातचीत का प्रस्ताव किया, लेकिन साथ में यह जोड़ने से नहीं चूके कि इसकी मांगें व्यवस्था को लाभ पहुंचाने के बजाय उसे नुकसान पहुंचा सकती हैं।
- पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने जेटली की टिप्पणी पर सुबह ट्वीट किया, ‘वित्त मंत्री का एसोचैम के कार्यक्रम में टकराव वाला भाषण जीएसटी के मुद्दे पर विपक्ष तक पहुंचने और सहमति बनाने का सही तरीका नहीं है।’
- कांग्रेस ने इस मसले पर अपने पत्ते अभी पूरे तरह नहीं खोले हैं, इसके कारण सरकार को संवैधानिक संशोधन के लिए उच्च सदन अर्थात राज्यसभा में मौजूद अन्य पार्टियों की ओर रुख करना पड़ रहा है। विधेयक को पास कराने के लिए दो तिहाई सांसदों का समर्थन जरूरी है।
- कैबिनेट के पांच शीर्ष मंत्रियों, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, वेंकैयार नायडू और मनोहर पर्रिकर इस समय जनता दल यूनाइटेड, समाजवादी वार्टी और एआईएडीएम जैसी पार्टियों के संपर्क में हैं, जिसका समर्थन सरकार के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- केंद्र सरकार जीएसटी को अप्रैल 2016 से अमल में लाना चाहती है। लेकिन यदि संसद के शीतकालीन सत्र में बिल पास नहीं हो पाया तो सरकार इस डेडलाइन को मिस कर सकती है।