उत्तर प्रदेश

जीएसटी है रोड़ा : जिला अस्पताल में दवाओं का टोटा

कुशीनगर: देश भर में उत्पाद और सेवा कर जीएसटी लागू हुए एक महीना गुजर गया लेकिन जिले का स्वास्थ्य महकमा अभी तक जीएसटी नंबर नहीं ले पाया है। इस वजह से प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से लगायत जिला अस्पताल तक को एक महीने से दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। जबकि हर दिन औसतन 1200 से 1500 मरीज केवल जिला अस्पताल की ओपीडी में इलाज के लिए आ रहे हैं। वार्ड भी डेढ़ गुना अधिक मरीजों के बोझ से दबा हुआ है। इसके अलावा इमरजेंसी कक्ष में जो मरीज आते हैं वो अलग। अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसी दशा में मरीजों को किस तरह से दवाएं मिल रही होंगी। ज्ञातव्य हो कि एक जुलाई को देश भर में लागू किए गए उत्पाद एवं सेवा कर का सबसे बड़ा प्रभाव जनपद की स्वास्थ्य सेवा पर पड़ा है। इसमें जीएसटी के प्रावधानों की जटिलता कहें या फिर स्वास्थ्य विभाग की शिथिलता, वजह चाहे जो भी हो लेकिन इसका रजिस्ट्रेशन नंबर लेने में स्वास्थ्य विभाग ने अब तक तेजी नहीं दिखाई है। परिणामस्वरूप जिला अस्पताल हो या फिर सीएचसीए पीएचसी व अन्य स्वास्थ्य केंद्र, उन्हें शासन की तरफ से एक माह से दवाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। जीएसटी नंबर के अभाव में सीएमओ अथवा सीएमएस स्थानीय स्तर पर भी खरीदारी नहीं कर पा रहे। अकेले जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों की बात की जाए तो सिर्फ ओपीडी में प्रतिदिन 1200 से 1500 मरीज इलाज के लिए आते हैं। इसके अलावा इमरजेंसी वार्ड है। जहां जनपद के विभिन्न हिस्सों से दुर्घटनाए गंभीर बीमारी से ग्रस्त और मारपीट में घायल व्यक्ति प्रतिदिन काफी संख्या में आते रहते हैं।

यही नहीं, 50-50 बेड के दोनों जनरल वार्ड, एसएनसी यूनिट और इंसेफेलाइटिस वार्ड भी हमेशा भरा रहता है। दवाओं का आवंटन न होने से मरीजों को या तो आवश्यकता से कम दवाएं मिल रही हैं या फिर दवा की जरूरत पूरी करने के लिए बाहर से दवाएं लेने की सलाह दी जा रही है। इसके चलते मेडिकल स्टोर्स संचालकों की कमाई बढ़ गई है। उधर, जीएसटी लागू होने के बाद 100 बेड के संयुक्त जिला चिकित्सालय में क्षमता से डेढ़ गुना अधिक सोमवार को 153 मरीज भर्ती थे। यहां 10 बेड के एसएनसी यूनिट में 33 नवजात का इलाज चल रहा था। संयुक्त जिला चिकित्सालय में दवा का सालाना बजट करीब एक करोड़ रुपये और सीएमओ कार्यालय का करीब सवा करोड़ रुपये है। एक माह से न तो शासन स्तर से दवा उपलब्ध कराई जा रही है और न ही लोकल परचेजिंग हो पा रही है। अस्पताल में दवा के पुराने स्टॉक से ही काम चलाया जा रहा है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि संयुक्त जिला चिकित्सालय में इस वर्ष जनवरी से एक अगस्त तक इंसेफेलाइटिस से ग्रस्त 43 मरीज भर्ती कराए गए। 23 ठीक हुए और 13 बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर रेफर कर दिए गए। दो मासूमों की मौत हो गई। जबकि पांच भर्ती हैं। जिनका इलाज चल रहा है। मरीजों की भीड़ जुटने की एक बड़ी वजह यह भी है कि सीएचसी.पीएचसी में मरीजों का समुचित इलाज नहीं हो रहा है। जिससे वे सीधे जिला अस्पताल आ रहे हैं। कमोवेश यही स्थिति पोषण एवं पुनर्वास केंद्रों की है। संयुक्त जिला अस्पताल में पिछले वर्ष सितंबर से अति कुपोषित बच्चों की उचित देखरेख और इलाज के लिए पोषण एवं पुनर्वास केंद्र का संचालन किया जा रहा है। इसमें जनवरी से अब तक 73 बच्चे लाए गए हैं। 57 स्वस्थ होकर चले गए। तीन बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर किए गए और चार भर्ती हैं।

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