जुबानी खर्च के साथ जमकर बहा रुपया
चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं ने जुबानी जमा खर्च पर कोई नियंत्रण नहीं रखा और एक दूसरे पर जमकर तंज कसे गए। कई बार तो मर्यादा का भी उल्लंघन करने से गुरेज नहीं किया गया। जुबानी जमा खर्च के अलावा जीत हासिल करने के लिए जेब से भी खूब खर्च किया गया।
बिहार विधानसभा का चुनाव कई मायनों में अहम साबित हो रहा है। जातिगत राजनीति की काट के लिए जहां विकास का नारा बुलन्द किया जा रहा है वहीं चुनाव में जीत के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद सारे उपाय हर राजनैतिक दल ने किए हैं। लेकिन मतदाताओं की चुप्पी ने सभी बयान बहादुरों की बोलती बंद कर रखी है। इस चुनाव में धनबल और बाहुबल का भी जमकर उपयोग हुआ। सत्ता में काबिज होने के लिए रुपया पानी की तरह बहाया गया तो वहीं एक दूसरे पर लांछन लगाने के लिए नैतिकता को भी ताक पर रख दिया गया। यह सही है कि बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम देश की सत्ता तो नहीं बदल सकते लेकिन इसके राजनैतिक मायने जरूर निकलेंगे, भले ही यहां सरकार किसी की भी बने। बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कई स्टिंग आपरेशन हुए तो कई वीडियो भी सामने आये। जोर सिर्फ इसी बात पर रहा कि कैसे विरोधी को नीचा दिखाया जाये और अपना उल्लू सीधा किया जाये। हर राजनीतिक मोर्चे की कोशिश प्रतिद्वंद्वी पर बढ़त हासिल करने की है।
यह भी गौर करने की बात है कि जिस तरह के चुनाव प्रचार की नींव बिहार में पड़ी वह आगे भी जारी रहेगी, यह लगभग तय माना जा रहा है। बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं की जुबान ने क्या कमाल दिखाया इस पर एक नजर डालते हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने प्रचार के दौरान कहा कि ‘चुनाव नहीं लड़ने वाले नेताओं की स्थिति उन बांझ महिलाओं के समान है जो प्रसव पीड़ा नहीं जान पातीं।’ उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री पद के किसी उम्मीदवार का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना ठीक नहीं है। पिछले दरवाजे से आने का सीधा मतलब है कि ऐसे नेता जनता के सामने नहीं आना चाहते हैं। चुनाव नहीं लड़ने वाले नेताओं की स्थिति उन बांझ महिलाओं के समान है जो प्रसव पीड़ा नहीं जान पातीं।” मांझी ने जनता दल यूनाईटेड से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई है और अब वो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए के साथ हैं। उन्होंने यह बयान 21 सितंबर को मखदूमपुर विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया था।
अपने मसखरेपन और विवादित बोल के कारण दुनिया भर में नाम कमा चुके राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भला बिहार चुनाव में प्रचार के दौरान अपने आदतों से कैसे बाज आते। उन्होंने एक चुनावी सभा में कहा, “यदुवंशियों सावधान! इ महाभारत हऊ रे भाई। अपने वोट को छितराने नहीं देना। इस चुनाव में लड़ाई बैकवर्ड-फारवर्ड के बीच है।” लालू ने बयान अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव के निर्वाचन क्षेत्र राघोपुर में दिया था। वैशाली जिला निर्वाचन अधिकारी ने इस मामले में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। साफ है कि लालू अब भी जातिगत राजनीति के जरिए ही चुनावी वैतरणी पार करना चाहते हैं। इतना ही नहीं, लालू यादव ने गाय को लेकर जो बयान दिया, उससे खासा हंगामा मचा। लालू ने एक समाचार एजेंसी से कहा, “हिंदू बीफ नहीं खाते क्या? जो बाहर जाते हैं बीफ खा रहे हैं कि नहीं? जो मांस खाते हैं उसके लिए गाय और बकरे के मांस में क्या फर्क है।” बयान को लेकर भाजपा नेताओं ने उन पर हमला बोल दिया। लालू ने सफाई दी कि बीफ का मतलब गोमांस नहीं होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हमलों के जवाब में लालू ने उन्हें ब्रह्म पिशाच तक कह डाला। लालू ने एक बयान में कहा, ‘‘मुझे शैतान कहने वाला खुद ब्रह्मपिशाच है। हम पिशाच का इलाज जानते हैं।’’ लालू प्रसाद यादव ने 30 सितम्बर को ट्वीट किया, ‘‘एक नरभक्षी और तड़ीपार बिहार को सदाचार न सिखाए। पहले स्वयं के कुकर्म और खुद पर लगी सारी जघन्य धाराओं के बार में चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को बताए।” बाद में लगभग ऐसी ही बातें उन्होंने कई सभाओं में दोहराई हैं। उनके खिलाफ पटना और जमुई में दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज कराई गई।
वहीं, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने लालू को ‘चारा चोर’ की संज्ञा से नवाजा। उन्होंने कहा, “जिस बिहार को संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण, पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, चाणक्य और चंद्रगुप्त के नाम से जानने की परंपरा रही है, आज वह चारा चोर लालू के नाम से जाना जाता है।” 30 सितंबर को बेगूसराय के सिंघौल में आयोजित सभा के उनके बयान पर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई। अमित शाह ने 10 अक्टूबर को नवादा की रैली में कहा, ‘‘एनडीए को जिताने के लिए ऐसे बटन दबाएं कि इटली तक करंट जाए।” इस बयान को उन्होंने बाद में भी कई सभाओं में दोहराया। भाजपा और एनडीए के स्टार प्रचारक एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ अक्टूबर को हुई चुनावी सभाओं में लालू को निशाने पर लेते हुए कहा था, ‘‘वह क्या-क्या खाने की बात कह रहे हैं? लालू ने यदुवंशियों को गाली दी है, उनका अपमान किया है। वह कह रहे हैं कि शैतान उनके अंदर घुस गया था, मैं पूछता हूं कि शैतान को पूरी दुनिया में सिर्फ उनका पता कैसे मिल गया?”
अकबरुद्दीन ओवैसी ने किशनगंज की एक सभा में कहा, “प्रधानमंत्री मोदी गुजरात दंगों के दोषी हैं। नरेंद्र मोदी शैतान हैं, दरिंदा हैं।” एआईएमआईएम नेता ने ये बयान चार अक्टूबर को दिया। जिसके बाद उनके खिलाफ मामले में प्राथमिकी दर्ज हुई। उधर, केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने 13 अक्टूबर को मुजफ्फरपुर में कहा था, “जिस तरह मच्छर भगाने के लिए कूड़े-कचरे में आग लगाई जाती है, उसी तरह वोट के आग से बिहार के कूड़े-कचे को जलाओ, जिससे मच्छर (लालू प्रसाद और नीतीश कुमार) भाग जाएं।”
साफ है कि चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं ने जुबानी जमा खर्च पर कोई नियंत्रण नहीं रखा और एक दूसरे पर जमकर तंज कसे गए। कई बार तो मर्यादा का भी उल्लंघन करने से गुरेज नहीं किया गया। जुबानी जमा खर्च के अलावा जीत हासिल करने के लिए जेब से भी खूब खर्च किया गया। एक ओर तो विधान सभा चुनाव के पहले से ही नरेन्द्र मोदी के केन्द्रीय कैबिनेट मंत्रियों ने दिल्ली छोड़ कर बिहार में पिछले छह महीनों से डेरा जमा लिया। नमो के कैबिनेट में कुल 26 मत्रियों में 13 मंत्री बिहार विधान सभा चुनाव में लगातार जमे रहे। नमो के अलावा राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी, नरेन्द्र सिंह तोमर, रामविलास पासवान, कलराज सिंह, अनंत कुमार, जेपी नड्डा, राधामोहन सिंह, टीसी गहलात, स्मृति ईरानी, रविशंकर प्रसाद बिहार चुनाव में सभाएं की। इसके अलावा चार स्वतंत्र प्रभार मंत्री पीयूष गोयल, संतोष गंवार, राजीव प्रताप रुडी, धर्मेन्द्र प्रधान सहित 6 राज्य मंत्री रामकृपाल यादव, गिरिराज सिंह, मनोज सिन्हा, उपेन्द्र कुशवाहा, जंयत सिन्हा और जयंत निरंजन ज्योति के अलावा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं कीं।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तो पूरी तरह से बिहार में डेरा डाल कर चुनावी सभाएं व रणनीति बनाते दिखे। इसके अलावा भाजपा के संगठन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. वी सहस्रबुद्धे, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल, राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री सौदान सिंह, चुनाव प्रभारी भूपेन्द्र यादव, प्रदेश संगठन महामंत्री नागेन्द्र जी, धमेंंन्द्र प्रधान सहित राज्य संगठन के पदाधिकारी, प्रदेश नेताओं यानी पूरी भाजपा ने चुनाव में अपनी शक्ति लगा दी। उधर, महागठबंधन में जदयू के नीतीश कुमार, राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव, कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव प्रचार में जुटे। लेकिन इसमें सबसे अधिक चुनावी सभाएं नीतीश कुमार और लालू यादव कर रहे हैं। इसके अलावा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, प्रदेश अध्यक्ष जदयू वशिष्ठ नारायण सिंह, अली अनवर, मौलाना गुलाम रसुल बलियानी, डॉ. अजय आलोक सहित जदयू, राजद व कांग्रेस के प्रदेश नेताओं की चुनावी सभाएं हुईं। चुनावी मौसम में भाजपा ने प्रचार माध्यम में सभी दलों से अधिक हेलीकॉप्टरों से हर रोज उड़ाने भरीं। राजधानी के जयप्रकाश नारायण एयरपोर्ट के स्टेट हैंगर में किराये के सबसे अधिक हेलीकॉप्टर भाजपा के थे। भाजपा के 36 हेलीकॉप्टर थे, वही महागठबंधन के मात्र दो ही हेलीकॉप्टर हैं। लेकिन दो हेलीकॉप्टर ही भाजपा पर भरी पड़ रहे हैं, क्योंकि नीतीश और लालू से ही सीधा मुकाबला भाजपा का है। चुनाव प्रचार के लिए प्रति घंटे 95 हजार रुपये किराया है। एक हेलीकॉप्टर से राजनेताओं की टीम दिन भर में छह चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं। एक घंटे के हिसाब से 95 हजार रुपये छह सभा में 7.70 लाख प्रति दिन एक हेलीकॉप्टर पर खर्च हो रहा है। ऐसे में पांच दलों ने करीब 40 लाख रुपये प्रति दिन खर्च कर रहे हैं।
भाजपा ने सिंगल इंजन हेलीकॉप्टर के अलावा 6 हेलीकॉप्टर मल्टी इंजन यानी डबल इंजन वाले हेलीकॉप्टर लिया, जिसके एक घंटे की उड़ान का किराया दो लाख रुपये है। इसके साथ ही एनडीए के घटक दलों लोजपा और रालोसपा ने भी एक-एक हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की है। ऐसे में 22 करोड़ रुपये सिर्फ हेलीकॉप्टरों पर दो चरणों के चुनाव में खर्च कर दिए गए। महागठबंधन में तीन दलों जदयू, राजद व कांग्रेस द्वारा चुनाव प्रचार के लिए दोे हेलीकॉप्टर मंगाये। राजद अध्यक्ष लालू यादव ने पटना में 20 अक्टूबर को कहा कि भाजपा के 36 हेलीकॉप्टर पर महागठबंधन के दो हेलीकॉप्टर ही भारी है। विधान सभा चुनाव में चील-कौवों की तरह भाजपा के 36 हेलीकॉप्टर उड़े, जब कि महागठबंधन की ओर से लालू व नीतीश ही हेलीकॉप्टर से उड़ान भरी। इनके 36 हेलीकॉप्टर पर महागठबंधन के 2 हेलीकॉप्टर भारी पड़ते दिखे।
उधर, चुनाव आयोग के निर्देश पर दो चरणों के चुनाव तक 19 करोड़ रुपये अवैध रूप से पकड़े गये, जिसमें 5 लाख रुपये नकली नोट भी शामिल था। सूत्रों की माने तो यह सभी राशि चुनाव में उम्मीदवारों के लिए आ रहे थे। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस चुनाव में ब्लैक मनी का खुल कर उपयोग हो रहा है। बिहार विधान सभा चुनाव में सबसे ज्यादा राशि भाजपा खर्च कर रही हैं, कहा तो यह भी जा रहा है कि लोकसभा चुनाव 2014 से ज्यादा राशि यानी कई हजार करोड़ रुपये इस चुनाव में भाजपा खर्च कर रही है। पटना में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक चुनाव प्रचार में करीब 15 अरब काला धन खर्च होगा। अखबार की खबर के हिसाब से बिहार में कुल सीट 243 हैं, 972 उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में है। दलीय उम्मीदवार डेढ़ करोड़ रुपये खर्च करते हैं। प्रत्येक उम्मीदवार के हिस्से में डेढ़ करोड़ रुपये खर्च करने पर 1458 करोड़ रुपये खर्च होंगे। हर सीट पर औसतन 10 प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं, जिनमें चार प्रत्याशी प्रमुख होते हैं। आयकर विभाग की टीम आकलन करने में जुटी है कि इस बार बिहार विधान सभा चुनाव में कितने रुपये खर्च होंगे और इसमें काला धन का हिस्सा कितना होगा? एक मोटा आकलन है कि इस चुनाव में 22- 24 अरब रुपये तक खर्च होंगे। इसमें काले धन का हिस्सा 15-18 रुपये हो सकता है। 7 से 8 सौ करोड़ रुपए तो राजनीतिक दल अधिकारिक से खर्च करेंगे। सरकारी खर्च सौ करोड़ रुपये से कम नहीं बैठेगा। अधिकतम चुनाव खर्च की सीमा 28 लाख रुपये है, इस प्रकार से 680 करोड़ रुपये तो अधिकारिक रूप से खर्च होंगे। हर सीट पर चार उम्मीदवार ही मुख्य माने जाते हैं। कहीं-कहीं तो पांचवा उम्मीदवार भी होता है लेकिन चार प्रमुख उम्मीदवार को ही मान कर हिसाब करने पर 972 प्रत्याशी ऐसे होंगे जो कुछ नहीं तो 1500 करोड़ रुपये खर्च करेंगे। मुख्य मुकाबले से अलग जो 1458 उम्मीदवार होंगे वे भी 8 से 10 लाख रुपये तक खर्च करते हैं।=