ज्ञान भंडार
जैन संत ने कोर्ट से कहा- कोलकाता से अहमदाबाद पैदल आऊंगा, 8 महीने लगेंगे
दस्तक टाइम्स/एजेंसी- गुजरात, अहमदाबाद. एक जैन संत हैं-आचार्य कीर्ति यशसूरीश्वरजी महाराज। आजकल कोलकाता में हैं। मंगलवार को अहमदाबाद के कोर्ट में इनके मुकदमे की सुनवाई थी। इन पर बच्चों को जबरन दीक्षा देने के साथ-साथ धोखाधड़ी का भी केस दर्ज है। 7 सितंबर को इनके खिलाफ वारंट जारी हुआ था। इन्हें कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया गया था। लेकिन ये नहीं पहुंचे। मंगलवार को इन्होंने जज एएस व्यास की अदालत में हलफनामा दिया। हलफनामे में जो वजहें बताई, उनमें एक यह भी है कि वे सांसारिक चीजों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। इसलिए वे कोलकाता से अहमदाबाद पैदल आएंगे।
क्या कहा कोर्ट से?
कीर्तियशसूरीश्वरजी ने कहा, ‘‘जज साहब, मैं संन्यासी हूं। परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं से बंधा हूं। सांसारिक चीजों का उपयोग नहीं कर सकता। इसलिए न तो बस, न ट्रेन और न ही हवाई जहाज की सेवा ले सकता हूं। मैं सिर्फ पैदल चलता हूं। इसलिए 8 महीने का वक्त दीजिए, तब तक पहुंच ही जाऊंगा। इसलिए मेरा वारंट खारिज कर मुझे मोहलत दी जाए। मेरी गैर-हाजिरी से अदालती कार्रवाई में कोई बाधा नहीं होगी।’’ जैन संत ने हलफनामे में कहा कि मैं कोलकाता में हूं, कोर्ट अहमदाबाद में है। दो शहरों के बीच दूरी 2200 किलोमीटर है। पैदल आने में समय लगेगा। उम्र भी ज्यादा है। उस पर रीढ़ की हड्डी में तकलीफ भी है। इसलिए रोज 10-12 किलोमीटर से ज्यादा नहीं चल सकता।”
क्या कहा कोर्ट ने?
जैन संत की दलीलों वाले हलफनामे को कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया। जज ने कहा,‘‘आपको फौरन पेश होना ही होगा। कैसे होंगे, ये आप जाने। आपका हलफनामा खारिज किया जाता है और अगली तारीख पर हर हाल में पेश होने का आदेश दिया जाता है।’’
क्या है मामला?
जैन संत ने 2009 में बाल दीक्षा से संबंधित खबर एक धार्मिक मैगजीन में छपवाई थी। उन्होंने इसमें बाल दीक्षा पर केंद्र सरकार की ओर से जारी एक विज्ञापन की कटिंग भी लगाई थी। इस विज्ञापन का सार ये था कि बाल दीक्षा कानूनी है। साथ ही, केंद्र सरकार इसके पक्ष में है। हकीकत पता करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता जस्मिन शाह ने आरटीआई लगाई। जिसके जवाब में केंद्र ने कहा कि उसने न तो कभी ऐसा विज्ञापन जारी किया और न ही बाल दीक्षा को कानूनी बताया या उसका पक्ष लिया। इसके बाद रश्मि ने संत के खिलाफ केस दर्ज कराया था। जैन संत का जैन समाज के ही कई लोगों ने विरोध किया था। वैसे, इस जैन संत ने इससे पहले केस खत्म कराने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का रुख भी किया था। मगर, कोर्ट ने इस परंपरा की आलोचना की और बाल दीक्षा पर अंकुश लगाने में नाकाम रहने पर सरकार को बुरी तरह फटकार भी लगाई थी।