नई दिल्ली: पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। सिर्फ चार दिन में सात साल की मासूम जैनब के गुनहगार को फांसी की सज़ा सुनाई गई। फिर सिर्फ 9 महीने में उसे फांसी पर लटका दिया गया। पाकिस्तान में सबसे तेज़ फैसले और फांसी का ये रिकार्ड है। आपको बता दें कि इसी साल पांच जनवरी को लाहौर के नजदीक सात साल की जैनब घर के पास से गुम हो गई थी। बाद में उसकी लाश कूड़े के ढेर पर मिली, जैनब का अपहरण करने के बाद उसके साथ बलात्कार किया गया था और फिर उसे मार दिया गया। इस हादसे ने पूरे पाकिस्तान को ऐसा खौला दिया था, जैसे छह साल पहले निर्भय़ा कांड ने पूरे हिंदुस्तान को। उन्हें 9 महीने लगे फांसी देने में हम छह साल से इंतज़ार कर रहे हैं। फ़क़त 4 दिन में सुना दी थी फांसी की सज़ा, छह साल बाद भी हमें पता नहीं फांसी कब होगी? पाकिस्तान की जैनब को 9 महीने में ही इंसाफ मिल गया। हिंदुस्तान की निर्भया छह साल से इंसाफ का बस इंतज़ार कर रही है। वाकई हैरत होती है अपने देश के सोए हुए सब्र और उन बेसब्र आंखों को देख कर जो इंसाफ की आस में पथरा जाती हैं। वर्ना ये गुस्सा, ये आक्रोश, ये आंहें, ये आंसू ये बातें, ये शिकवे, ये वादे, ये मंज़र हरेक ने देखे। हरेक ने इसे महसूस किया। फिर भी छह साल हो गए पर निर्भया के गुनहगार अब भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंचे। जबकि पाकिस्तान में छह साल की मासूम जैनब के गुनहगार को फकत 9 महीने में फांसी पर लटका दिया गया। जी हां. जिस जैनब की मौत ने पूरे पाकिस्तान में उबाल ला दिया था, उसी जैनब के गुनहगार को 17 अक्तूबर यानी बुधवार की सुबह साढे पांच बजे लाहौर के कोट लखपत जेल में फांसी पर लटका दिया गया। वो भी जैनब के पिता की आंखों के सामने। पाकिस्तानी पुलिस ने लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद आरोपी इमरान अली के खिलाफ एटीसी जज सज्जाद हुसैन की अदालत में 13 फरवरी को चार्जशीट दाखिल की थी। इसके बाद अदालत में जैनब के भाई और चाचा समेत कुल 56 गवाहों के बयान दर्ज हुए। फॉरेंसिक रिपोर्ट और पॉलीग्राफी टेस्ट की रिपोर्ट रखी गई। तमाम गवहों और सबूतों के मद्देनजर अदालत ने इमरान अली को जैनब के अपहरण, रेप, हत्या और उसके साथ अप्राकृतिक घटना को अंजाम देने का दोषी माना। अदालती कार्रवाई के सिर्फ चौथे दिन ही 17 फरवरी को फैसला सुनाते हुए जस्टिस सज्जाद हुसैन ने इमरान को 4 मामलों में एक साथ मौत की सज़ा दी, इनमें जैनब का अपहरण, रेप, मर्डर और फिर लाश के साथ उसने जो सुलूक किया वो भी शामिल था। इसके इलावा जैनब के साथ अप्राकृतिक कृत्य के लिए उसे उम्र कैद और 10 लाख रुपये का जुर्माना और लाश को कूड़े के ढेर में छुपाने के लिए 7 साल की कैद और 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। 23 जनवरी को गिरफ्तारी के बाद से ही इमरान अली लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद था। इस केस की सुनवाई भी जेल में ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की गई. हालांकि जस्टिस सज्जाद हुसैन को फैसला लेने में वक़्त इसलिए भी नहीं लगा क्योंकि केस की सुनवाई के पहले ही दिन इमरान ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था। साथ ही उसने ऐसी 8 और घटनाओं को अंजाम देने की बात भी कोर्ट को बताई थी। इसके बाद खुद इमरान के वकील ने पैरवी करने से ही इनकार कर दिया। अदालत के इस तेज फैसले पर जैनब के घर वालों ने भी संतोष जताया। मगर जैनब के वालिद की मांग थी कि जैनब के गुनहगार को जेल के अंदर नहीं बल्कि सरेआम फांसी पर लटकाया जाए। ताकि इमरान जैसे बाकी लोग इससे नसीहत ले सकें, वहीं ज़ैनब की मां ने मांग की थी कि इमरान को जेल में फांसी ना देकर सरेआम संगसार किय़ा जाए। मगर अदालत ने सार्वजनिक फांसी पर लटकाने या संगसार करने की इजाजत नहीं दी, अलबत्ता जैनब के वालिद को फांसी के वक्त इमरान को फंदे पर झूलते देखने की इजाजत जरूर दे दी गई थी। पाकिस्तान के इतिसाहस में ये अब तक का पहला ऐसा अदालती फैसला है, जिसमें इतना कम वक्त लगा। इसकी वजह सिर्फ एक थी, पाकिस्तानी अवाम का गुस्सा। जो जैनब की मौत के बाद पूरे पाकिस्तान में फूटा था। ठीक वैसा ही जैसे 12 में निर्भया की मौत के बाद हिंदुस्तान उबला था। मगर वक्त ने हमरे गुस्से को ठंडा कर दिया, जबकि पाकिस्तान ने नौ महीने में ही जैनब के गुनहगार का हिसाब कर दिया।