अद्धयात्म

जो दिखावा करते हैं वो लोग खुद को ही धोखा देते हैं

व्यक्ति सुख कामी होता है और हमेशा सुख में रहना चाहता है। भोग विलास के कारण वह परमात्मा के बताए नियमों से दूर होता जाता है। जबकि मनुष्य को ईश्वर को सर्वस्व सौंपकर जीवन (Pravachan) के सभी कार्य करने चाहिए।

जो दिखावा करते हैं वो लोग खुद को ही धोखा देते हैंहमें यह समझ लेना चाहिए कि संसार में आयु ऐसी चीज है जो निरन्तर घटती जाती है लेकिन तृष्णा ऐसी चीज है तो निरंतर बढ़ती जाती है। बस एक शाश्वत चीज है जो न तो कभी घटती है और न कभी बढ़ती है वह है ईश्वर का विधान (Pravachan)।

तो ईश्वर के विधान को समझना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य अच्छे कामों को एक दिखावे में बदल देता है। मगर इस दिखावे का वास्तव में कोई लाभ नहीं मिलता। जो दिखावा करता है वह वास्तव में अपने आपको ठगता है।

हमें यह समझ लेना चाहिए कि रोज मंदिर जाने से हर व्यक्ति संत-महात्मा नहीं होता है। महात्मा होने के लिए मन का शांत होना परमआवश्यक है। अशांत मन से ईश्वर का ध्यान करने से ईश्वर नहीं मिलता है।

आज का मनुष्य नकली जीवन जी रहा है। उनकी कथनी एवं करनी में समानता नहीं होती है। लोग प्याज-लहसुन खाने से परहेज करते हैं लेकिन रिश्वत का धन खाने से उन्हें कोई परहेज नहीं है। रिश्वत लेकर कोई व्यक्ति धन नहीं बल्कि पाप कमाता है।

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