ताकि सनद रहे
प्रसंगवश
यह अलग किस्म का दीक्षान्त समारोह है, जो अखिल भारतीय राजनीतिक विश्वविद्यालय के तत्वावधान में आयोजित हो रहा है और जिस प्रांगण में यह आयोजित हो रहा है, उसकी सीमाएं पूरे देश में फैली हुई हैं। दीक्षान्त समारोह में मूलत: राष्ट्रवाद और सहिष्णुता पर डिग्रियां और सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं। खास बात यह है कि इसमें कोई भी किसी को सर्टिफिकेट दे सकता है, ले सकता है, लौटा सकता है, उसको अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना सकता है, उसे देश की आन-बान-शान बता सकता है, अपने धर्म-कर्म से सम्बद्ध कर सकता है, स्वयं को महिमा-मंडित कर सकता है और दूसरे की टांग खींच सकता है। अपनी राजनीति की रोटियां सेंक सकता है सो अलग।
यूं तो यह समारोह देश की नामी-गिरामी हस्तियों द्वारा सहिष्णुता के कैनवास पर अपने सर्टिफिकेट लौटा देने से शुरू हुआ था लेकिन बाद में इसने घूम फिरकर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जे0एन0यू0 और फिर विधानसभा, संसद, राजनीतिक खिलाड़ियों को अपने आगोश में ले लिया। इसमें ‘भारत माता’ को विवादों में फंसा दिया गया। यानी जो भारत माता की जय न बोले, वह देशद्रोही है या नहीं, इसका सर्टिफिकेट भी बंटने लगा तो ओवैसी साहब ने उत्तेजक भाषा में कह दिया कि उनके गले पर कोई चाकू भी धर दे तो वे ऐसी जय नहीं बोलेंगे। इसका कर्रा जवाब दिया प्रतिष्ठित कवि/शायर और विचारक जावेद अख्तर ने। उन्होंने राज्यसभा में भारत माता की जय का नारा गुंजा दिया। ओवैसी ने यह भी सवाल किया था कि कहां ऐसा लिखा है कि भारत माता की जय बोलनी चाहिए। जावेद अख्तर ने सटीक उत्तर दिया- यह भी कहां लिखा है कि किसी को शेरवानी और टोपी पहननी चाहिए। यह ओवैसी की पोशाक पर तंज था। जावेद अख्तर जानते थे कि ओवैसी का बयान उनकी राजनीति का हिस्सा है, इसलिए उन्होंने उसका जवाब वैसी ही शैली में दिया। एक विधायक को महाराष्ट्र विधानसभा से चालू सत्र के शेष दिनों के लिए इसलिए निष्कासित कर दिया गया कि वह भारत माता की जय नहीं बोल रहा था और इस निर्णय के पीछे सारे दलों की ताकत थी- क्या भाजपा, क्या कांग्रेस! वैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने इस मामले में सबसे बड़ा सर्टिफिकेट जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति भारत माता की जय नहीं बोले, वह देशद्रोही है।
जे0एन0यू का विवाद जब उठा और जब उस पर भारत में अमरीका के राजदूत ने एक बयान दे दिया तो संसदीय कार्य मंत्री एम0 वेंकैया नायडू हमलावर हो गए और उन्होंने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। यह सवाल ऐसा था मानो भारतीय लोकतंत्र की तुलना अमेरिकी लोकतंत्र से की जा रही हो। उन्होंने अमरीकी राजदूत से पूछ लिया कि क्या वे अपने देश के किसी विश्वविद्यालय में उस तरह से ‘ओसामा (बिन लादेन) शहीदी दिवस’ मनाने की इजाजत देंगे, जिस तरह जे0एन0यू0 में अफजल गुरु पर आयोजन हुआ था? उनको करारा जवाब दिया अमेरिका की प्रिंसटन यूनीवर्सिटी के प्रेसीडेंट क्रिस्टोफर आइसग्रूबर ने। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हमें इसको बर्दाश्त करना चाहिए। विश्वविद्यालय को बहुत आक्रामक किस्म के भाषण भी सहन करने चाहिए। जरूरी नहीं कि जो कुछ बोला जाय वह वि0वि0 की रीति-नीति से मेल खाता हो। उन्होंने कहा कि हमारे यहां ऐसा होता तो हम उसकी अनुमति देते और कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाती। यहां बताते चलें कि प्रिंसटन वि0वि0 अमेरिका का प्रतिष्ठित वि0वि0 है और उसने अब तक 41 नोबिल प्राइज विजेता अपने प्रांगण में पैदा करने का गौरव हासिल किया हुआ है। इससे बड़ा उदाहरण दुनिया का सबसे बेहतरीन ‘आईफोन’ मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी- एप्पिल के एक मामले में हुआ, जिसने अमरीकी जांच एजेंसी और अदालती आदेश/ सर्टिफिकेट तक को चुनौती दे डाली। जो कुछ अमेरिका में हुआ यदि वह भारत में होता तो एप्पिल कम्पनी को देशद्रोही करार दे दिया जाता और हो सकता था कि उसके कार्यालयों पर हमले हो जाते, सरकार उसके दफ्तरों पर ताले लगा देती। हुआ यह था कि अमेरिका में वहां के नागरिक फारुक और उसकी पत्नी ने, जो इस्मालिम स्टेट के समर्थक बताए जाते थे, नवम्बर 2015 में 14 व्यक्तियों की गोली मारकर हत्या कर दी। उसके पास एक आईफोन था। फोन की जांच पड़ताल करने वाली अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने उसके कोड भेदने की काेिशश की पर नहीं भेद पाईं। तब अमेरिकी आंतरिक सुरक्षा जांच एजेंसी- एफ0बी0आई0 ने एप्पिल कम्पनी से कोड बताने को कहा ताकि उसे अनलॉक किया जा सके। संघीय अदालत ने भी कोड का भेद बताने को कहा लेकिन एप्पिल कम्पनी ने इसका विरोध किया और वह अमेरिकी कांग्रेस के पास अपनी अपील लेकर पहुंच गई। एप्पिल कम्पनी ने कहा कि कोड बताने से अमेरिकी नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन होगा क्योंकि भविष्य में हर फोन का कोड खोलना आसान हो जाएगा। कम्पनी ने कहा कि कोड का भेद बताने से ‘अमेरिकी फ्री स्पीच गारंटी’ का हनन होगा और पुलिस के अधिकारों का अतिक्रमण होगा। मान लीजिए भारत में कोई आंतकवादी पकड़ा जाता और नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेन्सी यानी एन0आई0ए0 उसके फोन के भेद जानने के लिए सम्बंधित कम्पनियों से सम्पर्क करतीं। तब क्या होता? क्या ये एजेंसियां मना कर देतीं? और मना कर देतीं तो उनकी दुकानें क्या खुली रह पातीं? भारत के यशस्वी संसदीय कार्य मंत्री किस मुंह से अमेरिकी लोकतंत्र को चुनौती दे रहे थे और उसकी तुलना भारतीय लोकतंत्र के उस पहलू से कर रहे थे जिसकी परिभाषा स्वयं उन्होंने गढ़ी है? वे उस अमेरिका से अपनी तुलना कर रहे थे जहां अमेरिकी झंडे के कपड़े की बिकनी बनाकर पहनी जा सकती है और ऐसा करने वाली महिलाएं देशद्रोही नहीं कहलातीं और अमेरिकी लोकतंत्र का बाल भी बांका नहीं होता। जब अमेरिका वियतनाम में युद्ध लड़ रहा था तो अमेरिका में जगह-जगह उसके खिलाफ अक्सर प्रदर्शन होते थे, अमेरिकी सरकार की भत्र्सना की जाती थी, उसकी रीति-नीति की जमकर आलोचना होती थी। किसी को कन्हैया कुमार बनाकर कभी जेल में नहीं डाला गया। =