सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों में प्रचलित ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहु विवाह जैसी प्रथाओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक नई याचिका पर सुनवाई से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यह मुद्दा पहले से ही विचाराधीन है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि लंबित याचिका में आने वाला फैसला इस नई याचिका पर भी लागू होगा।
चीफ जस्टिस जे एस खेहर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि इस याचिका में उठाए गए मुद्दे पहले ही इस कोर्ट के विचाराधीन हैं।ऐसे में समान मुद्दे एक अन्य याचिका पर सुनवायी करना आवश्यक नहीं है।’’ गुरुदास मित्रा द्वारा दायर याचिका का निस्तारण करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि लंबित याचिकाओं में आने वाला फैसला मौजूदा याचिका पर भी लागू होगा।’’
वरिष्ठ वकील सौम्य चक्रवर्ती ने कहा कि तलाक के तीनों रूप (अहसान तलाक, हसन तलाक और तलाक-उल-बिद्दत) मनमाना, मनमौजी और मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले हैं। उन्होंने कहा, ‘‘निकाह हलाला, बहु विवाह के साथ ही तलाक के तीनों रूप मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत उन्हें दिए गए हैं।’’
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पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने छह दिन की लगातार सुनवायी के बाद तीन तलाक की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 18 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केंद्र, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य समेत सभी पक्षकारों ने कोर्ट के समक्ष इस प्रथा के पक्ष और विरोध में अपनी दलीलें रखी थीं।