त्रियुगी नारायण मंदिर यहां शिव-पार्वती ने रचाया था विवाह

निशानी ये कुंड
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के प्रमुख स्थानों में एक त्रियुगी नारायण स्थल है। यहां पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का एक मंदिर है। इस मंदिर अधिकांश लोग त्रियुगी नारायण मंदिर के नाम से ही पुकारते हैं। इस मंदिर को लेकर मान्यता है इस मंदिर से भगवान शिव और देवी पार्वती का गहरा नाता है। यही वह जगह है जहां पर शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था क्योंकि निशानियों के तौर पर बहुत सी ऐसी चीजें यहां पर उपलब्ध हैं। हवन कुंड और ब्रह्मकुंड
इस मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड हैं जो आज भी प्रज्ज्वलित रहता है। इसमें प्रसाद के रूप में लकड़ियां चढाई जाती है और लोग इस हवन कुंड की राख लेकर घर जाते हैं। इस हवन कुंड को लेकर कहा माना जाता है इसी हवन कुंड में शिव पार्वती ने सात फेरे लिए थ्ो। वहीं यहां पर एक ब्रह्मकुंड हैं। मान्यता है कि जब ब्रह्म जी शिव पार्वती का विवाह कराने के लिए आए थे तो उस समय उन्होंने इसी कुंड में सबसे पहले स्नान किया था। इसके बाद शिव पार्वती का विवाह कराया था। ऐसे में आज भी यहां पर आने वाले लोग इस ब्रह्मकुंड को पवित्र मानकर इसमें स्नान करते हैं और ब्रह्म जी से आशीर्वाद लेते हैं। विष्णु कुंड व स्तंभ
वहीं शिव पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने विशेष भूमिका यानी कि पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। ऐसे में विष्णु जी ने विवाह से पहले जिस कुंड में स्नान किया था। वह कुंड आज विष्णु कुंड के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा विवाह में शामिल होने से पहले सभी देवी-देवताओं ने जिस कुंड में स्नान किया उसे रुद्र कुंड के नाम से जाना गया। इसके अलावा यहां पर एक स्तंभ बना है। कहते हैं कि इस स्तंभ में विवाह में शिव जी को एक जो गाय मिली थी। उसे इसी जगह पर बांधा गया था।