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द. चीन सागर पर US की दादागीरी के खात्मे के लिए अब ‘ब्रह्मास्त्र’ तैनात करेगा ड्रैगन!

एजेंसी/ China-Sub_marineनई दिल्ली। भारत से सिर्फ 3 हजार किलोमीटर के फासले पर सुपरपॉवर चीन अमेरिका को धमकाने के लिए परमाणु मिसाइलों से लैस पनडुब्बियां तैनात करने जा रहा है। ये पहली बार हुआ है कि समुद्र कब्जाने की इस जंग में परमाणु हथियारों को धमकाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। कई विशेषज्ञ इसे तीसरे विश्व युद्ध भड़काने की दिशा में पहला कदम करार दे रहे हैं क्योंकि चीन ने जिस मिसाइल को अपनी नई पनडुब्बियों पर तैनात करने का फैसला किया है वो 8 हजार किलोमीटर दूर तक वार कर सकती है, यानी उसकी जद में पूरा यूरोप, पूरा दक्षिण एशिया और आधे से ज्यादा अमेरिका है।

तर्क ये कि अमेरिकी की बढ़ती दादागीरी के आगे अब चीन के पास कोई चारा नहीं बचा है, सो कहा जा रहा है कि जल्द ही चीन की चिन क्लास की पनडुब्बियां JL-2 नाम की परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ दक्षिण चीनी समुद्र की गश्त पर निकल पड़ेंगी। चिन क्लास की पनडुब्बी और JL-2 मिसाइलों का ये मेल चीन का समुद्री ब्रह्मास्त्र माना जा रहा है और अगर ये पनडुब्बी परमाणु मिसाइलों को अपनी गोद में लेकर उस समुद्र में उतर पड़ीं तो पूरा का पूरा यूरोप और अमेरिका का हजारों किलोमीटर लंबा पश्चिमी हिस्सा उसके टारगेट में होगा। चीन उन पांच मुल्कों के ग्रुप में शामिल है जो समुद्र के भीतर गहराई में मौजूद पनड़ुब्बी से हजारों किलोमीटर दूर अपने निशाने पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल छोड़ सकता है।

चीन की चिन क्लास की पनडुब्बी से भारत को भी होशियार और खबरदार होने की जरूरत है क्योंकि चीन ने कुछ साल पहले ऐसी ही पनडुब्बी खुलेआम हिंद महासागर में भारतीय इलाके में भेजी थी जो पाकिस्तान के कराची तक पहुंच गई थी। चिन क्लास की ये पनडुब्बी 133 मीटर लंबी है और ऐसी हर पनडुब्बी 12 JL -2 परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलें ले जा सकती है। जानकारों का कहना है कि पनडुब्बी छोड़ी जाने वाली चीन की JL-2 परमाणु मिसाइल अमेरिका की TRIDENT 4 मिसाइल की बराबरी करती है, इस मिसाइल की रेंज 8 हजार किलोमीटर है।

2014 के आंकड़े बताते हैं कि चीन के पास कम से कम ऐसी 4 पनडुब्बियां मौजूद हैं यानी 4 पनडुब्बियां 48 परमाणु मिसाइलें ले जा सकती हैं यानी अगर चीन चाहे तो दक्षिण चीन के समुद्र में उसकी पनडुब्बियां एक बार में 48 परमाणु मिसाइलों से लैस हो सकती हैं। ये बेहद बड़ा खतरा है न सिर्फ अमेरिका और यूरोप के लिए बल्कि भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया के लिए भी।

ओआरएफ के सीनियर फेलो पी के घोष के मुताबिक यदि ऐसा है तो इसके बहुत गंभीर संदेश होंगे। कंवेंशनल सबमरीन के बजाए परमाणु पनडुब्बी को भेजने के बेहद अलग मायने होते हैं। देश अक्सर ब्रिक्समैनशिप दिखाते हैं यानी किसी एक हद तक जाते हैं और फिर पीछे लौट जाते हैं। इलाके में सैन्य मौजूदगी निश्चित तौर पर बढ़ी है। ऐसे में गश्त के दौरान यदि किसी पायलट या युद्धपोत के कैप्टन ने जोश में कोई कदम उठाया तो यह बड़े टकराव को पैदा कर सकता है। यह इलाके के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरनाक होगा।

हैरत की बात ये है कि अमेरिकी रक्षा विभाग यानी पेंटागन ने कुछ वक्त पहले ही इस बात की भविष्यवाणी कर दी थी कि चीन जल्द ही समुद्र में परमाणु हथियारों की धमक दिखाने वाला है। वैसे भी चीन पनडुब्बी से छूटने वाली मिसाइलों की तकनीक पर पिछले तीस सालों से लगातार काम कर रहा है। उसके सारे प्रोजेक्ट्स टॉप सीक्रेट हैं जिनकी खबर अमेरिका तक को नहीं लगती।

पेंटागन की कुछ दिन पहले आई खुफिया रिपोर्ट ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था।  उस रिपौर्ट में साफ लिखा गया था कि चीन 2016 में ही पहली बार समुद्र में परमाणु हथियारों की नुमाइश करेगा, वो परमाणु हथियारों से लैस होकर समुद्री गश्त करेगा। लाख टके का सवाल ये है कि चीन ने आखिर ये बड़ा कदम क्यों उठाया, जबकि वो जानता है कि उसका ये कदम दक्षिण चीन के समुद्र में और परमाणु हथियारों की तैनाती की वजह बन सकता है। कहा जा रहा है कि चीन के इस आक्रामक रुख के पीछे दो वजहें हैं-

पहली वजह – दक्षिण कोरिया में अमेरिकी एंटी मिसाइल सिस्टम : इसी साल मार्च में अमेरिका ने उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों का खतरा दिखाकर कोरियाई इलाके में अपना एंटी मिसाइल सिस्टम थाड तैनात कर दिया है। चीन का आरोप है कि इसके पीछे अमेरिका की एक बड़े इलाके के आसमान की निगरानी की मंशा है।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक थाड एंटी मिसाइल सिस्टम की रेंज में चीन का एक बड़ा इलाका भी आता है। ये सिस्टम चीन की परमाणु ताकत को दरअसल ठेंगा दिखाता है। हमने पहले ही दक्षिण कोरिया को चेताया था कि अगर उसने अमेरिकी थाड सिस्टम लगाया तो हमारे साथ उसके रिश्तों में खटास आ जाएगी। हम किसी भी सूरत में चीन के सामरिक हितों को नुकसान नहीं होने देंगे।

दूसरी वजह- अमेरिका की हायपरसॉनिक ग्लाइड मिसाइल: चीन को डर है कि अमेरिका अपने नए अस्त्र हायपरसॉनिक ग्लाइड मिसाइल से उसके इलाके तबाह कर सकता है, ये ग्लाइड मिसाइल ध्वनि से कई गुना तेज रफ्तार से चलती है और आम राडार की पकड़ में नहीं आती। ये ग्लाइड चीन तक की दूरी सिर्फ एक घंटे में तय कर लेगा।

वैसे तो चीन ने हमेशा ही परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने के सिद्धांत की हिमायत की है और इसलिए वो मिसाइल के रॉकेट और मिसाइल में रखे जाने वाले बम को अलग-अलग स्टोर भी करता है। ताकि अगर मिसाइल छोड़ने का फैसला कर भी लिया जाए तो उसे तैयार करने में थोड़ा वक्त लगे। लेकिन अब परमाणु पनडुब्बी से गश्त करने का ये फैसला इस सिद्धांत से मेल नहीं खा रहा है।

बीजिंग की रिनमिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वू रिशियांग के मुताबिक अब जब चीन की परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियां दक्षिण चीन के समुद्र में गश्त लगाएंगी। अमेरिकी नेवी भी अपने टोही जहाज और बड़ी तादाद में वहां भेजेगा। यानी तनाव और टकराव बढ़ेगा, पनडुब्बियों के बीच चूहे-बिल्ली का खेल खेला जाएगा। चीन की नेवी को अमेरिकी जहाज बर्दाश्त होंगे नहीं और वो उन्हें वहां से भगाने की पूरी कोशिश करेगा।

वैसे भी कुछ ही दिन पहले चीन के फाइटर जेट्स ने अमेरिकी टोही विमान को घेर लिया था। ये वाकया हनान द्वीप से 50 मील के फासले पर हुआ था, दिलचस्प बात ये है कि ये वही हनान द्वीप है जहां चीन की जिन क्लास की बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस पनडुब्बियों का बेस है। चार पनडुब्बियां चीन के पास हैं और पांचवी बन रही है। जानकारों का ये भी कहना है कि चीन अपने परमाणु बमों के छोटे आकार और कम संख्या के चलते दबाव में है।

चीन के पास 260 परमाणु बम हैं जबकि अमेरिका और रूस के पास ही 7000 से ज्यादा परमाणु बम हैं। चीन के ज्यादातर परमाणु बम जमीन से मार करने वाली मिसाइलों में लगाए गए हैं। उसे डर है कि अगर अमेरिका ने उसपर परमाणु हमला पहले किया तो जमीन पर बने मिसाइल बेस तबाह हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो चीन परमाणु जंग में लगभग निहत्था हो जाएगा। इसलिए चीन ने दूसरा तीव्र हमला समुद्र से करने के लिए तेजी से पनडुब्बियों से छोड़ी जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को विकसित करना शुरू किया। इसी का नतीजा है चीन की आधुनिक जू लैंग (जॉयंट वेव)-2 मिसाइल  जिसे छोड़ने के लिए बनाई गई है खास जिन पनडुब्बियां।

अमेरिका में ईस्ट एशिया नॉन प्रोलिफरेशन प्रोग्राम के निदेशक जेफरी लेविस चीन किसी भी तरह अमेरिका के मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भेदना चाहता है। हमें हैरत नहीं होगी अगर चीन एक मिसाइल में कई-कई बम लगाने की कोशिश में कामयाब हो जाए। हमें तो हैरत ये है कि आखिर चीन को इसमें इतना वक्त क्यों लगा।

चीन को घेरने की कोशिश जापान में हुई जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में भी दिखी। जब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की कमान में बाकायदा एक बयान जारी कर दक्षिण चीन समुद्र में चीन की नीतियों की कटु आलोचना की गई और तो और चीन ने भी पलटवार करते हुए साफ कह दिया कि जी-7 देशों को इसमें टेंशन लेने की जरूरत नहींहै, बेहतर है ये देश हमारे मुद्दे में टांग न अड़ाएं।

साफ है चीन जल्दबाजी में है, वो किसी भी तरह युद्ध क्षेत्र में अपने दुश्मन नंबर वन अमेरिका के बराबर उतनी ही धमक के साथ खड़ा होना चाहता है। दक्षिण चीन समुद्र में अपनी जिन पनडुब्बी उतारना और उसमें परमाणु मिसाइल जेएल-2 तैनात करना  इसी दिशा में पहला कदम है। अगला कदम क्या होगा, कितना घातक होगा ये शायद कोई नहीं जानता।

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