नई दिल्ली, एजेंसी। सजा-ए-मौत के इंतजार में काल कोठरियों में दिन गिन रहे दोषियों को राहत दे सकने वाले एक ऐतिहासिक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि दया याचिका पर फैसला करने में सरकार की ओर से विलंब पर सजा-ए-मौत उम्रकैद में बदली जा सकती है। चंदन माफिया वीरप्पन के चार सहयोगियों समेत 15 कैदियों की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदलते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी कि मानसिक विक्षिप्तता और शिजोफेरेनिया से ग्रस्त कैदियों को सजाए मौत नहीं दी जा सकती है। उच्चतम न्यायालय ने खालिस्तानी आतंकवादी देविन्दरपाल सिंह भुल्लर के मामले में अपने ही फैसले को आज उलट दिया। भुल्लर के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि दया याचिका पर फैसला करने में विलंब सजा-ए-मौत खत्म कर उसे उम्र कैद में बदलने का कोई आधार नहीं हो सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलो में उनके मानसिक रोग के आधार पर उनकी सजा-ए-मौत उम्रकैद की सजा में बदल की जानी चाहिए। आज के फैसले का कई मामलों में निहितार्थ हो सकता है, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सजा-ए-मौत का इंतजार कर रहे तीन दोषियों की ओर से दायर दया याचिका शामिल है। उन्होंने अपनी दया याचिका रद्द करने के राष्ट्रपति के कदम को चुनौती दी थी। दया याचिकाओं के निबटारे और सजा-ए-मौत पर अमल करने के संबंध में मार्गनिर्देश तय करते हुए प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने व्यवस्था दी कि सजा-ए-मौत दिए गए कैदियों को उनकी दया याचिका रद्द होने की सूचना अवश्य ही दी जानी चाहिए। उन्हें सजा-ए-मौत देने से पहले अपने परिवार के सदस्यों से मुलाकात का एक मौका अवश्य देना चाहिए। अदालत ने सजा-ए-मौत का इंतजार कर रहे बंदियों समेत किसी भी बंदी को कैदे-तन्हाई में रखने को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि कारागाहों में इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। खंडपीठ ने यह भी कहा कि दया याचिका रद्द होने के 14 दिनों के अंदर सजा-ए-मौत पर अमल कर लिया जाना चाहिए।