अद्धयात्म

दशानन रावण का ये आविष्कार, यहाँ आज भी रहता है लोगों के हाथों में

रावण को बुराई का प्रतीक मान जलाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण का एक आविष्कार ऐसा है, जो आज भी बरकरार है। विदेशी तो इस आविष्कार के मुरीद है। वहीं ये लोगों की आजीविका का भी साधन बना हुआ है। 
दरअसल, इस आविष्कार का नाम है रावण हत्था। रावण हत्था राजस्थान का प्रमुख लोक वाद्ययंत्र है।  जानकार बताते हैं कि इस वाद्ययंत्र का उपयोग फड़ बांचते वक्त करते हैं। फड़ भी राजस्थान की कला है। 

देखने भी रावण हत्था जितना रोचक है, उससे निकलने वाला संगीत भी उतना ही मधुर होता है। मान्यता है कि ईसा से 3000 वर्ष पूर्व लंका के राजा रावण ने इसका आविष्कार किया था। इस लिए रावण के ही नाम पर इसका नामकरण हुआ है। इसे रावण हस्त वीणा भी कहा जाता है।

यूं निकलते हैं सुरीले सुर

समय के साथ रावण हत्था के स्वरूप में थोड़े बहुत बदलाव जरूर आए है, लेकिन ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है।

इसमे नारीयल की खाली कटोरी पर वीणा की तरह तार कसे रहते हैं। कई खूटियां होती है, जिन्हे कसकर इसके सुर नियंत्रित किए जाते है। इस पर जब कमान चलाई जाती है तो मधुर सुर निकलते है। दूसरे हाथ से तारों को नियंत्रित किया जाता है। 

यह ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय है, लेकिन विदेशियों को भी यह खूब पंसद आता है। पर्यटक स्थलों के आसपास रावण हत्था बजाकर सैलानियों को आकर्षित करने किया जाता है।

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