एक ओर भारतीय चिकित्सा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सरकार शोध से लेकर उपचार प्रक्रिया तक पर जोर दे रही है। वहीं आयुष दवाओं की गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसलिए आयुष मंत्रालय अब विभिन्न राज्यों में आयुष दवाओं की गुणवत्ता को लेकर पैनी नजर बनाए हुए है। ताजा आंकड़ों की मानें तो करीब 23 राज्य ऐसे हैं, जहां पिछले चार वर्ष के दौरान दवाओं के सैंपल एकत्रित किए हैं। जांच के बाद सर्वाधिक पंजाब और दिल्ली में आयुर्वेदिक दवाएं तय मानकों पर खरी नहीं उतर रही हैं।
आयुष मंत्रालय के अनुसार आयुर्वेद, होम्योपैथी, सिद्धा और यूनानी दवाओं की गुणवत्ता पर निगरानी लगातार जारी है। साथ ही बेहतर दवाओं के दावे करने वाले विज्ञापनों पर रोक भी लगाई जा चुकी है।
मंत्रालय के मुताबिक, वर्ष 2015 से 2018 के बीच 23 राज्यों में लिए गए सैंपल में सबसे ज्यादा गंभीर हालात पंजाब में देखने को मिले हैं। पंजाब में वर्ष 2015-16 के दौरान करीब 941 आयुर्वेद दवाओं के सैंपल लिए, जिनमें से 119 सैंपल फेल मिले। 2016-17 में 715 में से 99, 2017-18 में 423 में से 55 और 2018-19 में 886 आयुर्वेद दवाओं के सैंपल में से 69 फेल हुए हैं।
दिल्ली में वर्ष 2015-16 के दौरान 3 हजार आयुर्वेद दवाओं के सैंपल में से 13, वर्ष 2016-17 में 2048 में से 11 और 2017-18 में 600 सैंपल में से 4 फेल मिले हैं।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में आयुष चिकित्सा को काफी बढ़ावा मिला है। मरीजों में भी इसके प्रति भरोसा बढ़ा है। इसलिए सरकार गुणवत्ता को लेकर पूरी सतर्कता बरत रही है। राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत विभिन्न राज्यों में प्रयोगशालाएं स्थापित करने के लिए भी केंद्र से सहायता दी जा रही है।
मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब और दिल्ली के अलावा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, मिजोरम, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा और उत्तराखंड शामिल हैं।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2018-19 के दौरान 94 में चार सैंपल फेल मिले हैं जबकि उत्तराखंड की बात करें, तो वहां इसी अवधि में 27 में से तीन दवाओं के सैंपल फेल हैं।