तपती गर्मी के बीच राजधानी में कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां हैंडपम्प में आता है पीला पानी. और यहां के लोग आज से नहीं बल्कि पिछले 10-12 सालों से पीने और बाकी काम के लिए इसी पानी का इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं. यह पूरा मामला दिल्ली के भलस्वा और गाजीपुर इलाके का है, जहां पर लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं, जानकारी के अनुसार इस इलाके का पानी कचरे के पहाड़ के कारण दूषित है.
लोग हो रहे हैं बीमारियों का शिकार
इस पानी में अमोनिया, क्लोराइड, सलफेट और नाइट्रेट की भारी मात्रा पाई गई है. जो न सिर्फ पीने के लिए बल्कि और भी किसी काम के लिए सुरक्षित नहीं है. इस पानी को इस्तेमाल करने वाले लोग तरह तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं. लोगों का कहना है कि पीने के लिए तो फिर भी अलग से पानी खरीदा जा सकता है लेकिन नहाने से लेकर कपड़े धोने के लिए इसी पानी का इस्तेमाल होता है. यहां तक कि बर्तन भी इसी पानी से धोए जाते हैं. यही कारण है कि कहीं बच्चों की ग्रोथ रुकी हुई है और कहीं लोगों त्वचा संबंधी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
12 साल सामने है परेशानी
भलस्वा डेयरी की रहने वाली सुनीता बताती हैं की 12 साल से इस इलाके में साफ पानी देखने को नहीं मिला. पीने के लिए तो जैसे तैसे इंतेज़ाम करते हैं. गरीब लोग हैं पीने का पानी खरीदे या दवाइयों में पैसा लगाएं. वहीं ममता कहती हैं हमारा कूलर चेक करने आते हैं मलेरिया वाले, एक मच्छर दिख जाए तो चालान काट देते हैं, ये नहीं देखते की पानी कैसा आ रहा है, पानी दूषित है तो मच्छर तो आएंगे ही.
बदतर है सप्लाई के पानी की हालात
सप्लाई के पानी पर सवाल करने पर इसी इलाके में रहने वाली शबाना का कहना है कि सप्लाई का पानी तो इस से भी बत्तर है, उसे तो जमा करके भी नहीं रखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि सप्लाई का जो पानी आता है उसका रंग काला होता है और बदबूदार होने के कारण उसका इस्तेमाल न ही किया जाए तो बेहतर है.
WHO द्वारा निर्धारित मानक
पेयजल के लिए WHO द्वारा निर्धारित मानकों की बात करें तो पीने के पानी मे केमिकल ऑक्सीजन का लेवल 10 पीपीएम होना चाहिए जबकि इस पानी मे ये लेवल 4400 से लेकर 5840 पीपीएम तक है. दिल्ली में जितने भी लैंडफिल साइट्स हैं उनमे पानी में गंदगी को ग्राउंड वाटर में जाने से पहले ट्रीट नहीं किया जाता. लैंडफिल साइट्स में जितनी भी स्टडीज हुई हैं ये बताती हैं कि लैंडफिल साइट्स का पूरा पानी दूषित है. वहां पर हुई सभी हेल्थ स्टडीज बताती हैं कि वह पर रह रहे लोगों को तरह तरह की बीमारियां हैं. गाज़ीपुर की एक महिला ने बताया कि उनकी कम्युनिटी के सभी लोगों को पूरे साल सिर में दर्द रहता है.
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के डेप्युटी डायरेक्टर चंद्र भूषण के मुताबिक पीने के पानी मे केमिकल बायोलॉजिकल डिमांड होना ही नही चाहिए तो WHO के मानकों से तुलना करना ही बेकार है. मैं साफ शब्दों में कह रहा हूं कि हमने दिल्ली के अंदर ग्राउंड वाटर को पूरी तरह से डिस्ट्रॉय कर दिया है. इसलिए लिए दिल्ली सरकार इतनी परेशान है कि ग्राउंड वाटर तो बिल्कुल बचा ही नही है. जो पानी 1000 साल में बनकर तैयार हो रहा है उसे हमने 20-30 सालों के अंदर तबाह कर दिया है.