दुनिया की सबसे सुन्दर डेयरी, देखने के लिए दूर-दूर से आते है लोग
जर्मनी के ड्रैसडेन शहर में 19वीं सदी की ‘फंड भाइयों’ वाले डेयरी स्टोर में प्रवेश करते ही हर किसी की जुबान से अपने आप ‘वाह!’ आ जाता है। स्टोर की सुंदरता ऐसी है कि देखने वाले विस्मित हुए बिना नहीं रहते। इस सुंदरता का मुय आकर्षण इसकी भीतरी दीवारों पर नीचे से ऊपर तक लगीं बेहद सुंदर हैंड पेंटेड ग्लेज्ड टाइल्स हैं।
चटख रंगों वाली टाइल्स पर परियां, खेल-कूद करते बच्चे, फल-फूल, चरवाहे तथा विभिन्न प्रकार के जानवरों के सुंदर चित्र बने हैं। लगता है कि प्रत्येक चित्र दुग्ध व डेयरी के इतिहास का एक हिस्सा हो। दीवारों तथा छत की टाइल्स पर करीने से उकेरे चित्रों में चरती हुई गाएं, झंडे तथा विभिन्न सैन्य चिन्ह भी दिखाई देते हैं। स्टोर की चीफ सेल्सवुमन इना स्टीफन बताती हैं, ‘‘हर बार यहां कुछ न कुछ नया दिखाई देने लगता है।’’
‘फंड्स मोलकेरेई’ नामक डेयरी कारोबार की स्थापना पॉल गुस्ताव लिएंडर फंड नामक एक किसान ने की थी। वह एक स्पिरिट निर्माता के बेटे थे। 1879 में उनका परिवार अपनी 6 गायों के साथ करीब के गांव रेनहोल्डशेन से यहां आकर बस गया था। शहर में दुग्ध उत्पादन के गंदगी भरे माहौल को देख कर उन्हें बड़ा धक्का लगा। उन्होंने इसे बदलने की बात मन में ठान ली। अगले वर्ष उन्होंने अपनी डेयरी की स्थापना की। उनके भाई के डेयरी से जुडऩे के बाद कारोबार फैलने लगा। उन्होंने नई मशीनरी खरीदी तथा कंडैस्ड मिल्क भी तैयार करने लगे।
1886 में उन्होंने जर्मनी की प्रथम कंडैस्ड मिल्क फैक्टरी स्थापित की। उनके निर्यात बढऩे लगे तथा उन्होंने मिल्क सोप तथा कार्बोनेटेड मिल्क ड्रिक जैसे नए उत्पाद ईजाद किए। कारोबार बढऩे के साथ उन्होंने कई नई शाखाएं खोलीं, अपनी हैल्थ इंश्योरैंस कपनी, कपनी हाऊसिंग, स्वीमिंग बाथ्स तथा नर्सरी स्कूल की स्थापना भी कर ली। इसके बाद उनके पास इतना धन एकत्र हो गया कि वह कपनी का एक विशेष लैगशिप स्टोर खोलें। इसी स्टोर में 247 वर्ग मीटर में हैंड पेंटेंड टाइल्स लगाई गईं।
जब जॉन फंड का वर्ष 1923 में निधन हुआ तो डेयरी के कामकाज को उनकी अगली पीढ़ी ने सभाल लिया। चमत्कारिक रूप से स्टोर की इमारत द्वितीय विश्व युद्ध में भी बच गई, ड्रैसडेन शहर पर हुई जबरदस्त बमवर्षा से भी यह सुरक्षित रही जबकि यह नदी के पार शहर के केंद्र से थोड़ी दूरी पर स्थित है। डेयरी के वर्तमान डायरैक्टर टाइल्स पर बनी सुंदर परियों के चित्रों की ओर इशारा करते हुए बताते हैं, ‘‘इन परियों ने हमें बचा लिया।’’
इसके बाद 1950 के दशक के बाद यह अमेरिकी नजरों से भी किसी तरह बच गई। मित्र राष्ट्रों के अफसर इसे तोड़ कर अमेरिका ले जाना चाहते थे परंतु ऐसा हो न सका। 1972 में पूर्वी जर्मनी के कब्जे में आने के बाद इसे सायवादियों का सामना करना पड़ा। इतिहासविदों तथा संरक्षणवादियों ने इसकी टाइल्स के स्थान पर प्लास्टिक के पैनल लगाए जाने से तो इसे बचा लिया परंतु इसके अनूठे ‘मिल्क फाऊंटेन’ (दूध वाले फव्वारे) को वे भी नहीं बचा सके।
1989 में बलन दीवार के गिरने तथा जर्मनी के एकीकरण के बाद स्टोर को इसके वारिसों को सौंप दिया गया। अधिकतर टाइल्स को आसानी से साफ करके संरक्षित किया गया परंतु 5 प्रतिशत को नई टाइलों से बदलना पड़ा। जल्द ही डेयरी को पहले वाली प्रसिद्धि मिल गई और यहां नया मिल्क फाऊंटेन लगा कर इसे 1995 में खोल दिया गया।
व्यस्त दिनों में यहां रोज करीब 2 हजार लोग आते हैं। इसके 4 मीटर लबे काऊंटरों पर पनीर तथा दूध फिर से बिकता है। हालांकि, बर्फ की सिल्लियों वाले फ्रिज का स्थान अब कूलिंग की नई तकनीक ने ले लिया है। स्वच्छता के कारणों से गायों को अब ग्राहकों के सामने नहीं दुहा जाता और फिल्म फाऊंटेन में भी दूध नहीं पानी बहता है।