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दुनिया में आने वाली है आर्थिक मंदी, लेकिन भारत पर नहीं दिखेगा इसका ज्यादा असर

मुंबई: क्या आपको 2008 में आई आर्थिक मंदी याद है? इस वैश्विक मंदी से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी. हालांकि, भारत की अर्थव्यवस्था को तत्कालीन सरकार ने किसी तरह संक्रमण से बचाया और यहां इसका आंशिक असर दिखाई दिया. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस आर्थिक मंदी के संकेत पहले ही दे दिए थे, लेकिन उनकी बातों को विश्व के ज्यादातर आर्थिक विशेषज्ञों ने नकार दिया. एक बार फिर से दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं मंदी का संकेत दे रही हैं. ऐसे में अमेरिकी इंवेस्टमेंट बैंकिंग मॉर्गन स्टेनली का कहना है कि अगले 9 महीनों में एकबार फिर से वैश्विक मंदी दस्तक देगी.

1. अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार का असर दिखाई दे रहा है. इसकी वजह से दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में मंदी छाई हुई है. वैश्विक मंदी के लिए यह सबसे बड़ा कारक साबित होगा. सितंबर महीने में दोनों देश के प्रतिनिधियों के बीच प्रस्तावित बैठक पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा कि चीन और अमेरिका के बीच होने वाले ट्रेड टॉक को कैंसिल किया जा सकता है. जानकारों का कहना है कि 2020 के अंत में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक ट्रंप का यह रवैया रह सकता है और तब तक ट्रेड वार का खतरा बना रहेगा.

2. एक अगस्त को डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा कि वह 1 सितंबर से चीन से आयातित होने वाले 300 बिलियन डॉलर के सामान पर 10 फीसदी का टैरिफ लगाएंगे. उन्होंने ट्वीट में साफ-साफ कहा कि, यह टैरिफ पूर्व में 250 बिलियन डॉलर के आयातित सामान पर लगने वाले 25 फीसदी के टैरिफ से अलग होगा. मॉर्गन स्टेनली का कहना है कि अगर 300 बिलियन डॉलर पर टैरिफ बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया जाता है तो दुनिया भर में तीन तिमाही में मंदी आ जाएगी. और, राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ट्रंप आने वाले दिनों में ऐसा कर सकते हैं. अIMF ने चीन की विकास दर को घटाकर 6.2 फीसदी कर दिया है. अमेरिकी कार्रवाई से चीन का ग्रोथ रेट तेजी से गिर रहा है.

·3. वैश्विक मंदी का सबसे बड़ा दूसरा कारक बांड यील्ड का उल्टा होना है. यह घटना 2008 की मंदी से पहले भी हुई थी. मंदी से पहले भी बांड यील्ड के ग्राफ का कर्व उलटा हुआ था और यह अब लगभग वैसा ही हो रहा है

4. भारत में ऑटो सेक्टर का हाल बुरा है. मांग में भारी कमी है. GDP में इसका योगदान 7 फीसदी है. GST कलेक्शन में 11 फीसदी योगदान है, जबकि मैन्युफैक्चरिंग GDP इसका योगदान 50 फीसदी तक है. मंदी की वजह से 300 डीलरशीप बंद हो चुकी है. हजारों लोगों की नौकरी जा चुकी है. तमाम रिपोर्ट का दावा है कि अगर यह सेक्टर मंदी ने जल्द नहीं उबरा तो आने वाले कुछ महीनों में 10 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हो जाएंगे. इनसे इतर लाखों लोग जो परोक्ष रूप से इस सेक्टर से जुड़े हैं वे भी बेरोजगार हो सकते हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछली तीन तिमाही से मंदी छाई हुई है. इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन और कोर इंफ्रास्ट्रक्चर में गिरावट का सिलसिला जारी है.

5. यूरोप में ब्रिटेन, जर्मनी समेत अन्य देशों पर मंदी का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. ब्रेक्सिट के कारण राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से वहां दूसरी तिमाही में GDP के आंकड़े कमजोर आए हैं, जिससे आसन्न मंदी की आशंका बढ़ गई है.

6. वैश्विक मंदी का सबसे बड़ा संकेत है कि मांग में भारी कमी आई है. यह स्थिति कमोबेश पूरे विश्व की है. भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार चौथी बार नीतिगत दरों में कटौती किया है. 2019 में अब तक नीतिगत दरों में 1.10 फीसदी की कटौती की जा चुकी है. उम्मीद की जा रही है कि वित्त वर्ष 2019-20 के खत्म होते तक इसमें 40 प्वाइंट्स की और कटौती की जाएगी. इस तरह रेपो रेट में पूरे वित्त वर्ष के दौरान 1.5 फीसदी की कटौती हो जाएगी. 11 सालों बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट्स (2.25 फीसदी से 2 फीसदी) की कटौती की है. राष्ट्रपति ट्रंप लगातार रेट कट का दबाव बना रहे हैं. चीन से जारी ट्रेड वार से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. इसके अलावा न्यूजीलैंड ने 50 बेसिस प्वाइंट्स की और थाईलैंड ने भी आश्चर्यजनक रूप से 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की है.

7. मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक, भारत में मंदी का खतरा इस स्तर तक नहीं है. लेकिन, सरकार को चौकन्ना रहना होगा और इसकी अनदेखी किए बगैर जरूरी कदम उठाने होंगे. पिछले दिनों RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा था कि वर्तमान में अर्थव्यवस्था में मंदी तात्कालिक हैं. यह एक साइक्लिक प्रॉसेस है. संस्थागत या नीतिगत तौर पर भारत में सबकुछ सही दिशा में चल रहा है.

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