धार्मिक यात्रा पर जाना है तो देवभूमि उत्तराखंड में स्थित हैं ये 5 बड़े शिव मंदिर…
उत्तराखंड में कई प्राचीन शिव मंदिर हैं जिनके बारे में मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना यहां पूरी होती हैं। इन पौराणिक शिव मंदिरों में से कई का संबंध सीधे महाभारत काल से जुड़ा है। वैसे भी उत्तराखंड को शिवजी का ससुराल माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं में उत्तराखंड में कई देवी-देवताओं का निवास स्थल बताया जाता है। ये ही वजह है कि इसे देवभूमि कहा जाता है। यानी देवताओं की सबसे पवित्र भूमि। आइए आपको उत्तराखंड के सबसे प्राचीन और चमत्कारिक शिव मंदिरों के बारे में-
बैजनाथ मंदिर, बैजनाथ
बैजनाथ मंदिर गोमती नदी के पावन तट पर बसा हुआ है। यह उत्तराखंड के सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है। उत्तराखंड की कई लोक गाथाओं में बैजनाथ मंदिर का जिक्र आता है। इस शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान बैजनाथ से मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1204 ईस्वी में हुआ था। मंदिर की वास्तुकला और दीवारों की नक्काशी बेहद आकर्षक है। मंदिर के अदंर आपको शिलालेख भी दिखाई देंगे।
केदारनाथ
केदारनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर बर्फीली पहाड़ियों पर स्थित है। केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। सर्दियों में इस मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं और उसके बाद गर्मियों में भक्त मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। हर साल देशभर से श्रद्धालु केदारनाथ मंदिर पहुंचते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर
भगवान शिव का यह मंदिर गढ़वाल के चमोली जिले में है। यह मंदिर पंच केदार में शामिल है। मंदिर समुद्र तल से 2220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर के भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है जबकि शिव के पूरे धड़ की पूजा पशुपतिनाथ मंदिर (नेपाल) में की जाती है।
तुंगनाथ मंदिर, रुद्रप्रयाग
यह भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है। मंदिर रूद्रप्रयाग जिले में है। यह प्राचीन मंदिर भी पंच केदार में शामिल है। पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर में ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने पूजा की थी और मंदिर का निर्माण करवाया था।
बालेश्वर मंदिर चंपावत
यह भी भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में शामिल है। मंदिर की वास्तुकला और नक्काशी से ही इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है। इस मंदिर में कई सारे शिवलिंग मौजूद हैं। इस मंदिर में मौजूद शिलालेख के मुताबिक इसका निर्माण 1272 के दौरान चंद वंश द्वारा किया गया था।