जौनपुर। नए शिक्षण सत्र की शुरुआत अभावों के बीच माध्यमिक व परिषदीय विद्यालयों के छात्रों द्वारा पढ़ाई शुरू की जायेगी। विभाग की लापरवाही के चलते न तो मुफ्त किताबों का वितरण हुआ न भवनों की व्यवस्था हो सकी। शिक्षकों की कमी से बड़ी संख्या में विद्यालय जूझ रहे हैं। इस व्यवस्था में सरकार कृष्ण- सुदामा के बीच की खाईं को खत्म करने का ताना-बाना बुन रही है। छह से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य व गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने के लिए विधेयक संसद में पारित हुए कई साल बीत गए लेकिन व्यवस्था आज तक पटरी पर नहीं लौटी, जबकि परिषदीय व माध्यमिक विद्यालयों की दशा सुधारने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहा है। कान्वेंट स्कूलों की दौड़ में शामिल करने के लिए माध्यमिक व परिषदीय स्कूलों में बदलाव करते हुए अप्रैल से शिक्षण सत्र का प्रयोग शुरू किया गया है। इसके लिए पहले परीक्षा कराकर रिजल्ट घोषित कर दिया गया। विभाग ने इसके लिए खुद पीठ भी थपथपा ली लेकिन शिक्षण व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ। जनपद के 2215 प्राथमिक, 857 जूनियर हाईस्कूल, नौ मदरसा और 154 माध्यमिक विद्यालयों में सर्व शिक्षा अभियान के तहत मुफ्त किताबों का वितरण नहीं हो पाया। दूसरी तरफ छात्रों की संख्या के हिसाब से शिक्षकों की भारी कमी है। नगर के गरीब, असहाय परिवार के बच्चों को शिक्षित करने के लिए 35 प्राथमिक, 11 जूनियर हाईस्कूल हैं। निजी भवन न होने के कारण 13 किराए के जर्जर भवन में चल रहे हैं। पांच प्राथमिक व दो जूनियर हाईस्कूल के बच्चे आसमान तले शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नगर क्षेत्र के इन 46 स्कूलों में 43 शिक्षक व प्रधानाध्यापक तैनात थे। इनमें पांच ने इस साल अवकाश ग्रहण कर लिया। ऐसे में बचे 38 शिक्षकों के भरोसे बच्चों का भविष्य संवारने के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। जनपद में अंग्रेजी माध्यम से प्राथमिक विद्यालय नाम बड़े और दर्शन छोटे कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं।फोटो 01-पुस्तक के अभाव में पढ़ाई करते परिषदीय विद्यालय के छात्र।