नकलविहीन परीक्षा संपन्न करवाकर गोण्डा को एक और तोहफा दे गये आशुतोष निरंजन
तत्कालीन डीएम गोण्डा की जबर्दस्त मानीटनिंग से नकल माफियाओं के हौसले पस्त
हाईस्कूल- इंटर में पिछले वर्श 92 व 96 की जगह क्रमश 64 और 54 फीसदी छात्र ही उत्तीर्ण
-डी.एन. वर्मा
गोण्डा। जिले में इस बार यूपी बोर्ड की परीक्षाएं नकलविहीन संपन्न करवा कर गोण्डा के तत्कालीन डीएम आशुतोष निरंजन जाते-जाते गोण्डा को एक और उपलब्धि दे गये। निरंजन ने सोशल मीडिया तकनीक का बेहतरीन उपयोग करते ऐसी जबर्दस्त मानीटनिंग करायी कि परीक्षा के दौरान माल काटने वाले नकल माफिओं की कमर ही टूट गयी और उनको करोड़ों रुपये का नुकसान हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि परीक्षा की गुणवत्ता तो बेहतर हुई ही, साथ ही नकल की बैसाखी के सहारे डिग्री पाने वाले छात्रों का भविश्य भी अंधकारमय होने से बच गया। उल्लेखनीय है कि आशुतोष निरंजन की छवि एक तेजतर्रार और बेहद कर्मठ डीएम के रूप में शुमार है। अपने काम के प्रति जुनून ही उन्हें दूसरों से अलग बनाती है। विकास कार्यों में देश और प्रदेश के मानचित्र पर गोण्डा जनपद को नयी ऊंचाइयां देने वाले तत्कालीन डीएम आशुतोष निरंजन को षिक्षा जैसी पवित्र व्यवस्था पर काबिज भ्रश्टाचार के खात्मे के लिए यहां की जनता हमेश याद करेगी।
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में तत्कालीन जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन के कुशल नेतृत्व में सूचना तकनीक का बेहतर इस्तेमाल करते हुए नकल माफियाओं पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सका और इसी के चलते हाईस्कूल के गत वर्ष के नतीजे 92 प्रतिशत की तुलना में इस बार 64 प्रतिशत तथा इंटरमीडिएट में गत वर्ष 96 प्रतिशत की तुलना में इस बार मात्र 54 प्रतिशत परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए। एक अनुमान के अनुसार, अकेले गोंडा जिले में इस वर्ष नकल माफियाओं का करीब एक अरब रुपए का नुकसान हुआ। उल्लेखनीय है कि जिले में पहले से ही नकल रोकने की रूपरेखा तैयार करने में जुटे तत्कालीन जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन को उस समय और बल मिल गया, जब विधानसभा चुनाव के दौरान गोंडा में एक जनसभा को संबोधित करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोंडा को नकल की मंडी करार दिया। इसके बाद श्री निरंजन ने नकल रोकने की फुलप्रूफ व्यवस्था करते हुए पूरी सरकारी मशीनरी को मैदान में उतार दिया। उन्होंने संपूर्ण जिले को चार जोन, 30 सेक्टर में विभक्त करते हुए न केवल वहां वरिष्ठ जनपद स्तरीय अधिकारियों को तैनात किया, बल्कि जिले के सभी 224 परीक्षा केंद्रों पर न्यूनतम 2 तथा अधिकतम 4 स्टेटिक व सुपर स्टैटिक मजिस्ट्रेट तैनात करके नकल माफियाओं की कमर तोड़ दी।
श्री निरंजन ने नकल रोकने में बेहतर सूचना तकनीक का इस्तेमाल किया। उनके निर्देश पर सोशल मीडिया WhatsApp पर बोर्ड एग्जाम गोंडा वन, टू और थ्री नाम से तीन ग्रुप बनाए गए जिनमें जिले के सभी नवनियुक्त राजस्व लेखपालों, चकबंदी लेखपालों, ग्राम पंचायत अधिकारियों, कृषि विभाग के तकनीकी सहायकों, लोक निर्माण, सिंचाई, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा, समाज कल्याण निर्माण निगम समेत सभी कार्यदाई संस्थाओं के अवर अभियंताओं, सहायक अभियंताओं, अधिशासी अभियंताओं समेत जिले के सभी जनपद स्तरीय अधिकारियों तथा मंडल के करीब 3 दर्जन अधिकारियों (कुल संख्या करीब 700) के WhatsApp नंबर को जोड़ा गया। इन अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने परीक्षा केंद्र अथवा क्षेत्र की जानकारी इन्हीं सोशल मीडिया के तीनों ग्रुप पर मिलता था। अगले दिन प्रथम पाली में सुबह 7.30 बजे से होने वाली परीक्षा की ड्यूटी ग्रुप पर पूर्व रात्रि11:00 बजे के बाद पोस्ट की जाती थी तथा द्वितीय पाली में होने वाली परीक्षा की ड्यूटी उसी दिन 11:00 बजे के बाद पोस्ट की जाती थी जिससे नकल माफियाओं को यह पता न चल सके कि उनके यहां कौन सा अधिकारी या कर्मचारी ड्यूटी पर पहुंच रहा है। whats app ग्रुप पर ही अपनी ड्यूटी की सूचना पाकर सभी स्टेटिक व सुपर स्टेटिक मजिस्ट्रेट परीक्षा शुरू होने से आधे घंटे पूर्व परीक्षा केंद्र पर पहुंच जाते थे। इसकी पुष्टि के लिए वे केंद्र के गेट पर पहुंच कर एक सेल्फी लेकर ग्रुप पर पोस्ट करते थे। साथ ही उन्हें परीक्षार्थियों के केंद्र पर प्रवेश के समय गेट पर उनकी तलाशी की फोटो भी ग्रुप पर पोस्ट करना होता था। पूरे समय तक सभी स्टेटस व सुपर स्टेटिक मजिस्ट्रेट परीक्षा केंद्र पर चक्रमण करते रहते थे तथा परीक्षा समाप्ति के पश्चात उत्तर पुस्तिकाओं को सील कराने के उपरांत उसकी फोटो ग्रुप पर पोस्ट करके परीक्षा केंद्र से रवाना होते थे। प्रत्येक विषय में स्टेटिक मजिस्ट्रेट व सुपर स्टेटिक मजिस्ट्रेट का परीक्षा केंद्र बदल दिया जाता था जिससे कोई भी नकल माफिया किसी से सेटिंग ना कर सके। सभी स्टेटिक और सुपर स्टेटिक मजिस्ट्रेट को 16 बिंदुओं के एक चेक लिस्ट पर जिलाधिकारी को दोनों पाली की परीक्षाओं की उसी दिन रिपोर्ट करनी होती थी, जिस पर जिलाधिकारी द्वारा तत्काल उचित निर्णय लेते हुए जिला विद्यालय निरीक्षक को आवश्यक कार्रवाई के लिए निर्देशित किया जाता था। चेक लिस्ट में इस बात की जानकारी ली जाती थी कि संबंधित केंद्र पर प्रश्न पत्र डबल लॉक में रखवाए गए हैं अथवा नहीं? प्रश्न पत्र के पैकेट परीक्षा शुरु होने के आधे घंटे से पूर्व तो नहीं खोले गए हैं, आदि आदि।
इसके साथ ही सचल दल नाम से एक अन्य ग्रुप भी WhatsApp पर बनाया गया था, जिसमें सभी आधा दर्जन सचल दल प्रभारियों व उनके सदस्यों के मोबाइल नंबर को जोड़ा गया था। इन सचल दल प्रभारियों को भी रोजाना परीक्षा शुरू होने से 2 घंटे पहले इसी ग्रुप पर सूचना दी जाती थी कि उन्हें किन विद्यालयों अथवा किस रूट पर औचक निरीक्षण के लिए पहुंचना है? सभी सचल दल प्रभारी पूर्व निर्देशानुसार कार्यवाही करते हुए ग्रुप पर नियमित रिपोर्टिंग करते थे जिसकी सतत मानिटरिंग जिलाधिकारी द्वारा की जाती थी और किसी भी ग्रुप पर किसी भी समस्या का यथोचित समाधान भी उनके द्वारा तत्काल किया जाता था। जिले के सभी 30 सेक्टर में तैनात किए गए जनपद स्तरीय वरिष्ठ अधिकारियों के क्षेत्र में भी 5 से 6 परीक्षा केंद्र होते थे जिनका उन्हें हर पाली में निरीक्षण करना होता था। वह केंद्र पर तैनात स्टेटिक मजिस्ट्रेट को अपेक्षित सहयोग भी प्रदान करते थे। इसी प्रकार जिले के जोनल मजिस्ट्रेट बनाए गए मुख्य विकास अधिकारी, अपर जिला अधिकारी, मुख्य राजस्व अधिकारी व नगर मजिस्ट्रेट भी अपने-अपने जोन में परीक्षा अवधि में निरंतर भ्रमणशील रहते हुए नकल रहित परीक्षा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। परीक्षा केंद्र पर अवांछित व्यक्तियों की आवाजाही रोकने के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों समेत सभी कक्ष निरीक्षकों व केंद्र व्यवस्थापकों का जिला विद्यालय निरीक्षक के हस्ताक्षर से परिचय पत्र बनाया गया था जिसे परीक्षा अवधि में केंद्र पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को गले में धारण करना अनिवार्य था। केंद्र व्यवस्थापक को छोड़कर मोबाइल का इस्तेमाल परीक्षा अवधि में सर्वथा निषिद्ध था। उत्तर पुस्तिकाएं रास्ते में बदले जाने की शिकायतों के मद्देनजर परीक्षा केंद्र से संकलन केंद्र तक मिनट टू मिनट की रिपोर्टिंग की व्यवस्था भी की गई थी जिससे यह पता चलता रहता था कि परीक्षा केंद्र से संकलन केंद्र पहुंचने में अधिकतम कितना समय लगना चाहिए और बंडल लाने में कितना समय लगा है?