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नसीब हम खुद लिखते हैं-रणबीर कपूर

tamasha1-564f4470a541b_lरणबीर कपूर की निगाहें अपनी अगली फिल्म तमाशा पर टिकी हैं। हाल ही उनसे फिल्म की सक्सेस, राजकुमार हीरानी की संजय दत्त पर आधारित बायोपिक में अपने रोल, शादी और फैमिली होम से अलग रहने पर बातचीत हुई।

आपकी हिट फिल्मों का कारवां ये जवानी है दीवानी तक चला और इसके बाद फिल्में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई। लगता है नसीब आपसे रूठ गया है?

तकदीर से इसका कोई लेना-देना नहीं है। नसीब तो हम खुद लिखते हैं। आपका चुनाव, कड़ी मेहनत और आपके कर्म। जब सब मिलते हैं तो बात बनती है।

हर फिल्म में आपकी परफॉर्मेंस सराही गई, लेकिन फिल्में बॉक्सऑफिस पर नहीं चलीं।

अभिनेता के रूप में, मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। मैं केवल फिल्मों को लेकर अपनी पसंद बेहतर कर सकता हूं। अपनी फिल्मों के चुनाव में और बुद्धिमानी दिखाने की कोशिश कर सकता हूं।

तमाशा पर उम्मीद टिकी है?

हां, तमाशा से बहुत उम्मीद है, वैसे ही जैसे बेशरम और रॉय या उनके बाबॉबे वेलवेट से थी। एक्टर के लिए हर फिल्म एक परीक्षा होती है। आपने पहले क्या किया है, इससे इंडस्ट्री को कोई मतलब नहीं है, यहां सिर्फ पिछली फिल्म को याद रखा जाता है। जब शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान जैसे सितारों को भी लगातार खुद को साबित करते रहना होता है तो मेरी बिसात ही क्या। मेरा तो कॅरियर अभी शुरू ही हुआ है। लगातार बेहतर होते रहने की इच्छा जिंदा है और अभी उस दबाव को समझ रहा हूं, जिससे हम सबको गुजरना होता है।

प्रेशर आप पर हावी होता है?

प्रेशर तो अच्छी बात है, इसी से आप आगे बढ़ते हैं। मायने यही रखता है कि इस दबाव के तले कहीं आप टूट न जाए। आपको इसी के साथ चलना सीखना होता है। सही-गलत को समझ कर आगे बढ़ते रहना होता है।

तमाशा में दीपिका पादुकोण के साथ तीसरी बार आ रहे हैं।

जब कोई हमें साथ में साइन करेगा तो हम तश्तरी में परोस कर उसके आगे रख देंगे, कैमिस्ट्री कोई ऐसी चीज नहीं है। किरदार और उनकी परिस्थितियों से कैमिस्ट्री बनती है। दीपिका को ये जवानी है दीवानी पसंद आई, क्योंकि उन्हें नैना का किरदार बहुत अच्छा लगा था, वहीं मैंने यह फिल्म इसलिए साइन की, क्योंकि मुझे बन्नी का कैरेक्टर और स्टोरी पसंद आई थी। इसके बाद हमने अपना बेस्ट दिया। पर्सनल लाइफ और दोस्ती कोई मायने नहीं रखती। बतौर एक्टर आप साथ मिल कर कैसा माहौल रचते हैं, यही मायने रखता है।

चर्चा है कि सेंसर बोर्ड ने कुछ किसिंग सीन काटे हैं?

डायरेक्टर इम्तितयाज अली की फिल्में लोगों में सुरसुरी जगाने के लिए नहीं बनाई जाती। ऐसा कोई लवमेकिंग सीन नहीं था, कोई किसिंग तक नहीं था। किरदार या कहानी से बाहर कुछ नहीं था। मामला कुछ और ही है। फिल्म में साला जैसी कुछ आपत्तिजनक लाइन थीं और वे उसे सेंसर करना चाहते थे।

संजय दत्त की बायोपिक में काम कर रहे हैं। संजय से मिले हैं?

मैं तो उनके इर्द-गिर्द ही बड़ा हुआ हूं। मेरी बर्थडे पर उन्होंने मुझे हार्ले डेविडसन गिफ्ट की थी। हम बहुत नजदीकी हैं। मुझे याद है कि जब बर्फी बन रही थी तो उन्होंने मेरी टांग खिंचाई शुरू कर दी, अब तेरी अगली फिल्म लड्डू होगी या पेड़ा? मैं उनके बहुत क्लोज हूं। पर्दे पर उनके किरदार को अदा करना वास्तव में बहुत अमेजिंग होगा। उम्मीद है कि उनके कैरेक्टर के साथ जस्टिस कर सकूंगा।

इस रोल के लिए क्या खास तैयारियां की है?

जब मैं बायोपिक पर काम शुरू कर दूंगा, तब मेरी कोशिश रहेगी कि उनके जैसा दिखूं, उनके जैसी बॉडी भी बना लूं। उन्होंने अपना वजन बढ़ाया था। मुझे नहीं पता कि मुझे कितना वजन बढ़ाना पड़ेगा। जब फिल्म के लिए बातचीत शुरू होगी, तब मैं यह सब डिसाइड करूंगा।

शादी को टालते हुए क्या आप जिंदगी के एक महत्वपूर्ण पड़ाव को खोते तो नहीं जा रहे हैं?

मतलब मैं बाप नहीं बनूंगा? मैं अभी 40 का नहीं हुआ हूं, सिर्फ 33 का हूं। मुझे शादी नाम की संस्था में पूरा भरोसा है और उम्मीद है कि कुछ मिसिंग भी नहीं होगा। उम्र का इससे कोई ताल्लुक नहीं है, सब स्वाभाविक रूप से जिंदगी में चला आता है।

अकेले और पैरेंट्स के साथ रहने में क्या फर्क है?

हरेक का अपना एक्सपीरियंस है। पैरेंट्स के साथ रहना सबसे मजेदार बात है और अब जब लोग कह रहे हैं कि मैं अकेला रह रहा हूं तो उन्हें बता दूं कि यह हमेशा के लिए नहीं है। यहां तक कि मेरे पैरेंट्स भी फैमिली होम से बाहर गए हैं, क्योंकि उन्हें वह घर तुड़वाकर बड़ा करवाना है। मुझे अपने पैरेंट्स से प्यार है, मैं उनके साथ वक्त बिताना चाहता हूं, उनकी देखभाल करना चाहता हूं। लेकिन साथ ही जिंदगी को अपने हिसाब से महसूस करना, अपने पैरों पर खड़ा होना भी जरूरी है। लेकिन मुझे पता है कि जाना तो उन्हीं के पास है।

 

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