आस्था : नागपंचमी और सावन का तीसरा सोमवार एक साथ पड़ रहा है। शिव से नागों का सम्बन्ध, उत्पत्ति और कथा सावन 2019 के तीसरे सोमवार को नागपंचमी भी पड़ रही है। भगवान शिव का सम्बन्ध नागों के राजा वासुकी से माना जाता है, क्योंकि वासुकी नाग ने भगवान शिव की तपस्या की थी जिसकी वजह से भगवान शिव ने वासुकी नाग को अपने गणों में शामिल किया था। सावन के तीसरे सोमवार के दिन नागपंचमी पड़ रही है और नागों का भगवान शिव से गहरा सम्बन्ध भी है। नाग भगवान शिव के गले में लिपटा रहता है। सांप को भगवान शिव के गले का हार भी कहा जाता है। सावन का तीसर सोमवार 5 अगस्त 2019 के दिन है और नागपंचमी का त्योहार भी है। नागपंचमी के दिन सावन का सोमवार पड़ने से इस दिन भगवान शिव और नागदेवता दोनों का आर्शीवाद प्राप्त किया जा सकता है। इससे पहले ऐसा योग 125 साल पहले बना था। भगवान शिव और नागों के बीच में गहरा सम्बन्ध है। नाग को भगवान शिव के गले का हार कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार वासुकी नाग ने भगवान शिव की सेवा स्वीकार की थी। वासुकी नाग कैलाश पर्वत के पास ही अपना राज्य चलाता था। इसी तरह अन्य नाग भी अपना-अपना कुल अलग-अलग जगहों पर चलाते थे। वासुकी नाग भगवान शिव के परम भक्त थे। इसी कारण भगवान शिव ने वासुकी नाग को अपने गणों में शामिल कर लिया था। वासुकी नाग को ही नागलोक का राजा माना जाता है। माना जाता है कि कद्रू ने हजारों पुत्रों को जन्म दिया था, जिनमें नाग भी शामिल थे। अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, पिंगला और कुलिक। कुद्रू को प्रजापति दक्ष की पुत्री माना जाता है।
भारत में शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला पांच कुल के नागों को ही श्रेष्ठ माना जाता है। इनका वंश कश्यप था। इन्हीं से नाग वंश आगे बढ़ा। शेषनाग को नागों का राजा माना जाता है। शेषनाग को अनंत नाग भी कहा जाता है। इसी क्रम में वासुकी, तक्षक और पिंगला है। सिर्फ वासुकी नाग ने ही भगवान शिव की सेवा में तत्पर होना स्वीकार किया। वासुकी कैलाश पर्वत के पास ही राज किया करता था। इसी तरह तक्षक ने तक्षकशिला (तक्षशिला) को बसाया और तक्षक कुल चलाया। इन तीनों की कहानी पुराणों में मिलती है। शेषनाग ने भगवान विष्णु की सेवा को स्वीकार किया। कश्मीर का अनंतनाग इलाका शेषनाग का मूल स्थान माना जाता है। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर कई अन्य पहाड़ी इलाकों में नागों की कई प्रजाति आज भी मौजूद हैं। महाभारत के समय पूरे भारत में नाग वंश फैला हुआ था। लेकिन कैलाश पर्वत के पास की जगाहों असम, मणिपुर, नागालैंड में इनका मूलभूत स्थान था। ये लोग सांपों की पूजा करते थे। इसलिए इन्हें नागवंशी भी कहा जाता है। कुछ ब्राह्मणों के अनुसार शक या नाग जाति का उदय हिमालय के दूसरी तरफ से हुआ था। ये लोग आज भी नागभाषा का प्रयोग करते हैं।