‘नागरिक पत्रकारिता’ की आवश्यकता को रेखांकित करती पुस्तक
लोकेन्द्र सिंह
पुस्तक समीक्षा : सूचनाओं का आदान-प्रदान करना हम सबका मानव स्वभाव है। इस प्रवृत्ति का एक ही अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर किसी न किसी रूप में ‘एक पत्रकार’ बैठा है। किसी मीडिया संस्थान के प्रशिक्षित पत्रकार की भाँति वह भी समाज को सूचनाएं/समाचार देना अपना दायित्व समझता है या सूचनाएं देने की इच्छा रखता है। इंटरनेट और स्मार्टफोन की सहज उपलब्धता के कारण अब तो उसके पास जनसंचार माध्यम भी हैं। इंटरनेट पर ब्लॉग, फेसबुक, ट्वीटर और यूट्यूब इत्यादि के माध्यम से सामान्य व्यक्ति व्यापक पहुँच रखता है। कई बार उसके पास ऐसे समाचार, चित्र और वीडियो होते हैं, जो किसी भी बड़े से बड़े मीडिया संस्थान के पास नहीं होते। इस कारण बड़े मीडिया संस्थानों ने भी विशाल नागरिक संसाधन का उपयोग प्रारंभ किया है। उन्होंने भी अपने माध्यम से पत्रकारिता के लिए नागरिकों को स्थान देना आरंभ किया है।
नागरिक पत्रकारिता का इतना अधिक महत्व और प्रयोग बढऩे से इस विषय पर व्यापक प्रबोधन की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। इस दृष्टि से जनसंचार एवं मीडिया के शिक्षण-प्रशिक्षण से जुड़े डॉ. पवन सिंह मलिक की पुस्तक ‘नागरिक पत्रकारिता’ महत्वपूर्ण है। डॉ. मलिक एक दशक से भी अधिक समय से मीडिया शिक्षा एवं मीडिया के क्षेत्र से जुड़े हैं। वर्तमान में वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।पुस्तक ‘नागरिक पत्रकारिता’ में इस विधा के लगभग उन सब आयोगों को शामिल किया गया है, जिनकी जानकारी एक नागरिक को बतौर पत्रकार होनी चाहिए। पुस्तक का पहला अध्याय ही इस प्रश्न के साथ प्रारंभ होता है कि ‘हम नागरिक पत्रकार क्यों बनें?’ संयोग से यह अध्याय मुझे ही लिखने का अवसर प्राप्त हुआ है। इस अध्याय में मैंने उन सब कारणों का उल्लेख किया है, जिनके कारण से आज समाज में नागरिक पत्रकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। नागरिक पत्रकारिता को अपनाने का मन बनाने वाले साथियों के सामने इस दायित्व की जवाबदेही, गंभीरता एवं उद्देश्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। नागरिक पत्रकारिता के क्षेत्र में कितनी संभावनाएं हैं, किन माध्यमों का उपयोग हम समाचार/विचार सामग्री के प्रसारण हेतु कर सकते हैं और मुख्यधारा के मीडिया में बतौर नागरिक पत्रकार हम कैसे अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं, इन बिन्दुओं को छूने का भी प्रयास किया है। नागरिक पत्रकारिता का बखूबी उपयोग करने वाले प्रशांत बाजपेई ने अपने अध्याय में नागरिक पत्रकारिता की आधुनिक समाज में भूमिका को विस्तार से बताया है। उन्होंने नागरिक पत्रकारिता के भविष्य को उज्ज्वल बताया है। मीडिया के शिक्षक अनिल कुमार पाण्डेय ने अपने आलेख में न केवल नागरिक पत्रकारिता के प्रकारों का उल्लेख किया है बल्कि विस्तार के उसके लिए उपयुक्त माध्यम का जिक्र किया है और उनके अभ्यास पर प्रकार डाला है। उन्होंने अपने अध्याय में नागरिक पत्रकारिता के विभिन्न माध्यमों की विशेषताओं का उदाहरण सहित वर्णन किया है। इससे नागरिक पत्रकारिता में प्रवेश करने वाले लोगों को अपनी रुचि का माध्यम चुनने में सहायता मिलेगी।
लेखक दिनेश कुमार ने अपने आलेख में बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है। उन्होंने उन बातों की ओर संकेत किया है, जिनकी कमी नागरिक पत्रकारिता में दिखाई देती है। यदि उनके सुझावों पर अमल किया जाए तो बहुत हद तक नागरिक पत्रकार किसी विशेषज्ञ पत्रकार की तरह काम करने लगेंगे और उनके द्वारा प्रसारित सामग्री भी अधिक विश्वसनीय एवं संतुलित होगी। मीडिया शोधार्थी अमरेन्द्र कुमार आर्य ने अपने आलेख में बताया है कि नागरिक पत्रकारिता लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का मंच बन गया है। नि:संदेह नागरिक पत्रकारिता ने मुख्यधारा के मीडिया को न केवल अधिक लोकतांत्रिक बनाया है अपितु समाचारों के चयन एवं प्रसारण के उसके एकाधिकार को चुनौती भी दी है। आज किसी भी समाचार चैनल या समाचार-पत्र पर सोशल मीडिया (नागरिक पत्रकारिता) द्वारा उठाये गए मुद्दों का दबाव रहता है। समाचारों के प्रसारण में यह स्पष्टतौर पर दिखाई देता है। मीडिया न तो किसी मुद्दे को अब अनदेखा कर सकता है और न ही किसी मुद्दे दबा सकता है। हमारे सामने अनेक उदाहरण हैं जब नागरिक पत्रकारों द्वारा सामने लाई सूचनाओं पर व्यावसायिक मीडिया ने ध्यान दिया।
वरिष्ठ फोटो पत्रकार डॉ. प्रदीप तिवारी का आलेख नागरिक पत्रकारिता में प्रवेश करने वाले लोगों का हौसला बढ़ाता है। इस लेख में उन्होंने अनेक सुविख्यात पत्रकारों का उदाहरण देकर बताया है कि कैसे उन्होंने अपनी शुरुआत बतौर नागरिक पत्रकार की थी और बाद में वे बड़े संस्थानों तक पहुँचे। हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डॉ. भारती बत्तरा ने नागरिक पत्रकारिता में सूचना का अधिकार कानून के महत्व को रेखांकित किया है। अर्थात् नागरिक पत्रकार आरटीआई की मदद से महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त कर भंडाफोड़ कर सकते हैं। उन्होंने इसके चर्चित उदाहरण भी दिए हैं। पुस्तक के आखिरी अध्याय में मीडिया शिक्षक डॉ. अमित भारद्वाज ने नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण के महत्व को रेखांकित किया है।
मीडिया शिक्षक डॉ. पवन सिंह मलिक की पुस्तक ‘नागरिक पत्रकारिता’ में कुल 15 अध्याय/आलेख शामिल हैं। पुस्तक की प्रस्तावना वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने लिखी है। उनकी यह प्रस्तावना ही नागरिक पत्रकारिता की उपयोगिता, आवश्यकता एवं उसके महत्व को भली प्रकार सिद्ध कर देती है। वह लिखते हैं कि नागरिक पत्रकारिता ने पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जैसे- सूचना एकत्रीकरण के नए जरिए पैदा किए, सूचनाओं पर एकाधिकार समाप्त किया, सूचनाओं के संप्रेषण के लिए नए रास्ते और तकनीक अपनाई एवं नए तरह के मीडियाकर्मी पैदा किए। यह पुस्तक न केवल उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो नागरिक पत्रकारिता के प्रति उत्साही हैं, बल्कि यह उनको भी एक दृष्टि देती है जो पत्रकारिता के विद्यार्थी हैं। पत्रकारिता के विद्यार्थी भी इस पुस्तक के अध्ययन से नागरिक पत्रकारिता में अपनी संभावनाएं तलाश सकते हैं। यश पब्लिकेशंस, दिल्ली ने पुस्तक का प्रकाशन किया है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक हैं।)