देहरादून: महिलाओं की सुरक्षा और बचाव के लिए शुरू की गई निर्भया योजना को भी राज्य में सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका। कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट में सामने आया कि दो साल में राज्य सरकार ने निर्भया प्रकोष्ठ के लिए कुल 1.02 करोड़ की राशि जारी की, लेकिन इसमें से महज 0.23 करोड़ की खर्च हो पाया और सभी जिलों में प्रकोष्ठ स्थापित नहीं किए जा सके। इतना ही नहीं जहां प्रकोष्ठ स्थापित हुए, वहां भी संसाधनों और कार्मिकों की कमी के कारण इनका संचालन सुचारु नहीं हो पाया।
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कार्यस्थल पर लैंगिक अपराध, ¨हसा, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, यौन हमले, घरेलू ¨हसा आदि को रोकने के लिए फरवरी, 2013 में केंद्र सरकार ने निर्भया कोष की स्थापना की थी। उत्तराखंड में भी 2013 में शुरू हुई निर्भया योजना के तहत हर जिले में निर्भया प्रकोष्ठ स्थापित किए जाने थे। परियोजना के लिए केंद्र सरकार को 60 फीसद और राज्य सरकार को 40 फीसद व्यय वहन करना था। केंद्र सरकार की ओर से राज्य को राशि आवंटित नहीं की गई थी। हालांकि, इस दौरान राज्य सरकार ने 2014-15 में 0.24 करोड़ और 2015-16 में 0.78 करोड़ रुपये की राशि जारी। इस राशि के प्रदेश के सभी जिलों में महिला प्रकोष्ठ स्थापित किए जाने थे। हालांकि, इसमें से केवल 0.23 करोड़ ही दो साल में खर्च किए जा सके।
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कैग रिपोर्ट में सामने आया कि जनवरी, 2014 में राज्य के चार जिलों पौड़ी, टिहरी, उधमसिंह नगर और नैनीताल में योजना को लागू किया गया। इसके बाद फरवरी, 2015 में शेष नौ जिलों में लागू करने के आदेश जारी किए गए। हालांकि, केवल दो जिलों हरिद्वार व चमोली में प्रकोष्ठ स्थापित किए गए, लेकिन इनमें भी कार्मिक तैनात नहीं हो पाए।
कुल मिलाकर राज्य सरकार ने केंद्र को कोई नहीं प्रस्ताव भेजा। इतना ही नहीं, राज्य के जिलों में स्थापित प्रकोष्ठ भी महिलाओं को विधिक सहायता और काउंसिलिंग देने तक ही सीमित रहे। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि उत्तरकाशी में महिला अधिवक्ता के बिना ही प्रकोष्ठ काम कर रहा था, टिहरी और चंपावत में केवल कंप्यूटर आपरेटर और अनुसेवक ही तैनात थे। अलबत्ता, नैनीताल, पौड़ी और ऊधमसिंह नगर में बेहतर परिणाम सामने आए। इनमें कुल 99 केस पंजीकृत हुए और पीड़ितों को सहायता मुहैया कराई गई।