पति को माता-पिता से अलग होने के लिए जोर देना तलाक का आधार
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि यदि पत्नी पति को अपने माता पिता से अलग होने के लिए लगातार जोर देती है तो यह क्रूरता होगी जिसके आधार पर पति को तलाक प्रदान किया जा सकता है।
जस्टिस अनिल आर दवे और एल नागेश्वर राव की पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि पति पर विवाहेत्तर संबंधों के झूठे आरोप और उनके आधार पर आत्महत्या करने की धमकियां भी मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आती हैं।
यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया जिसमें क्रूरता के आधार पर नरेंद्र को तलाक की डिक्री देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को गलत बताया गया था।
कोर्ट ने कहा कि बार बार आत्महत्या की धमकी देना क्रूरता है। ऐसी स्थिति में कोई भी पति सुकून से नहीं रह सकता न ही पत्नी के इस व्यवहार को सह सकता है। जरा सोचिए, यदि पत्नी आत्महत्या करने में सफल हो जाती है तो उस गरीब पति का क्या कानून में क्या हश्र होगा। इससे वह अपना मानसिक संतुलन, शांति, ही नहीं खो देगा बल्कि उसकी नौकरी और संभवत: पूरी जिंदगी ही मुश्किल में पड़ जाएगी। ऐसी स्थिति में कानून में फंदे में फंस जाने का महज एक विचार ही पति को अपने आप भयानक दबाव में डाल सकता है।
माता पिता से अलग होने के लिए पत्नी के दबाव पर कोर्ट ने कहा कि साधारण परिस्थितियों में पत्नी से परिवार के साथ रहने की उम्मीद की जाती है। क्योंकि वह परिवार का हिस्सा होती है। उसे परिवार से अलग होने के लिए कभी जोर नहीं दे ना चाहिए। लेकिन यदि वह समाज की साधारण रीति से हटकर परिवार से अलग होना चाहती है तो उसके लिए न्यायोचित कारण होने चाहिए। लेकिन हम देख रहे हैं कि इस मामले में अलग होने के लिए आर्थिक कारण के अलावा और कोई कारण नहीं है। हमारी राय में कोई पति इसेसहन नहीं करेगा और न ही कोई पुत्र अपने वृद्ध माता पिता से तथा परिजनों से अलग होना चाहेगा जो उसकी आय पर निर्भर हैं।
कोर्ट ने कहा कि वहीं यदि कोई पति पर विवाहेत्तर संबंधों का आरोप लगाकर उसके चरित्र पर सवाल उठाता है तो यह बहुत ही अत्याचारपूर्ण है, चाहे यह पति हो पत्नी। ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में पत्नी का बर्ताव बहुत ही भयानक है और ऐसे व्यक्ति के साथ रहना कठिन है क्योंकि ऐसी प्रताड़ना पति के जीवन पर विपरीत प्रभाव डालती है।