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पाकिस्तानी इलाके में गुजरात के इंदुभाई ने जवानों के साथ फहराया था तिरंगा

गांधीनगर : देश की सीमा पर चल रहे तनाव के बीच 94 साल के इंदुभाई जोशी की ऐतिहासिक यादें ताजा हो गई हैं। पूर्व पत्रकार और अधिकारी के पद से रिटायर हुए इंदुभाई वर्ष 1971 में सूचना विभाग में तैनात थे और उनकी पोस्टिंग गुजरात के कच्छ में थी। भारतीय सेना ने उन्हें अपने साथ तिरंगा फहराने के लिए पाकिस्तानी इलाके में चलने को कहा। इंदुभाई ने कहा, ‘हो सकता है उम्र के साथ मैं कई बातें भूल गया हूं लेकिन मैं उस दिन को कभी नहीं भूलूंगा जिस दिन हमने पाकिस्तानी क्षेत्र में जाकर झंडा फहराया था।’ युद्ध को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान ने 1 दिसंबर, 1971 की रात को हम पर हमला किया था। मैं भुज में तैनात था। दोनों सेनाओं का ध्यान कच्छ के खावड़ा और बनासकांठा के सुइगम के बीच लगभग 200 किलोमीटर में था, इस इलाके को कच्छ के छोटे रण के रूप में जाना जाता है।’ इंदुभाई ने बताया, ‘भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के नगर पारकर गांव पर जवाबी हमला किया और 1,200 वर्ग किलोमीटर के दुश्मन के इलाके में 8 दिसंबर को कब्जा कर लिया। एक दिन बाद भारतीय सेना के मेजर ने मुझे फोन किया और कहा कि मैं अपने राष्ट्रीय ध्वज के साथ उन्हें पाकिस्तान ले जाऊंगा। हमने सभी राष्ट्रीय त्योहारों पर तिरंगा फहराया था। इसलिए मैंने एक तिरंगा उठाया और सेना के जवानों के साथ शामिल हो गया। हम एक जीप में सवार होकर खावड़ा की तरफ गए। वहां सीमा से लगभग 10 किमी दूर पाकिस्तान के नगरपारकर गांव तक पहुंचने के लिए हम एक हेलिकॉप्टर में सवार हुए।’ इंदुभाई ने कहा कि वह स्वतंत्रता सेनानी जेठालाल जोशी (जो बाद में राजकोट के सांसद बने) के पुत्र थे। वह 1926 में कराची में पैदा हुए थे। वह पाकिस्तानी इलाके के नगरपारकर में तहसील कार्यालय तिरंगा फहराने पहुंचे तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। भारतीय सेना के जवानों ने यहां से पाकिस्तानी झंडे को उतारा और दो कमरों वाले प्रशासनिक कार्यालय के प्रांगण में तिरंगा फहराया। उन्होंने कहा, ‘यह मेरे जीवन का सबसे गौरवपूर्ण क्षण था। मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा। मैंने बहुत सी तस्वीरें क्लिक करके इस दृश्य को कैद कर लिया।’ इंदुभाई ने कहा कि युद्ध केवल शारीर से नहीं होता है, यह एक दिमाग का खेल भी है। अपने सेना के दोस्तों द्वारा साझा की गई बातों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सेना ने एक साधारण चाल का उपयोग करके पाकिस्तानी सेना को बरगलाया और एक बड़े हमले की योजना को विफल कर दिया। उन्होंने बताया, ‘पाकिस्तान ने खावड़ा के पास रेगिस्तान में ऐंटी टैंक मिसाइलों को तैनात किया था। हमारी सेनाओं को इसकी भनक लग गई। उन्होंने ट्रकों से साइलेंसर हटाकर गियर लगाया और उन्हें अलग-अलग दिशाओं में छोड़ा। दुश्मनों ने आवाजें सुनीं और उन्हें लगा कि हमारी सेना ऐंटी टैंक मिसाइलें लेकर उनकी ओर आ रही है। जैसे ही उनकी स्थिति का पता चला हमारी सेना ने उनके ऊपर हमला कर दिया और उनकी मिसाइलें जब्त कर लीं।’ आज इंदुभाई अपने बेटे निराला जोशी के साथ राजकोट में रहते हैं। अपने पिता के बगल में बैठे निराला जोशी ने कहा, ‘मेरे पिता को राजकोट में बापूजी के नाम से जाना जाता है। बापूजी ने 1971 के युद्ध में बमों के खोल (शेल) और कारतूस इकट्ठा किए थे।

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