नई दिल्ली : पूर्वी भारत के घने जंगल में बंद पड़ा पावर प्लांट देश के बैंकों के लिए खतरे की घंटी बन चुका है। इस पर लगभग 38 अरब डॉलर का अतिरिक्त बैड लोन है, जो देश के बैंकों के लिए अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती है। दरअसल, झारखंड प्रॉजेक्ट के लिए पांच साल पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में एक ग्रुप ने 70 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया गया था। भारत के दूसरे पावर स्टेशनों की तरह इसके भी सफल होने की उम्मीद की गई थी। उस इलाके में प्रचुर मात्रा में कोयला और पानी उपलब्ध था। वहां एक रेलवे ट्रैक भी बनाया गया था। वादा किया गया था कि इस पावर प्लांट से देश को 1080 मेगावॉट बिजली मिलेगी और बिजली की भारी समस्या से निजात मिलेगी। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक चिंता की बात यह है कि आज भी यह प्रॉजेक्ट लटका हुआ है और भारतीय बैंकों को लोन का तीन चौथाई हिस्सा राइट ऑफ करना पड़ा। इसी तरह की स्थिति से अब पूरा पावर सेक्टर जूझ रहा है। 2014 में कोयला खनन परमिट को लेकर कोर्ट के फैसले का बुरा असर और नकदी का प्रवाह रुकने की वजह से भी इन प्लांट्स का पुनरुद्धार मुश्किल है। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के मुताबिक स्थानीय बैंकों को 38 अरब डॉलर का एक और बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह भारत के स्टील सेक्टर से राइट ऑफ किए गए बैड लोन 9 अरब डॉलर से चार गुने से भी ज्यादा है। असेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विनायक बहुगुणा ने कहा, देश में यह सबसे बड़े बैन लोन का खतरा है। निर्माण कार्य बंद होने के दो साल बाद 2015 में इसी फर्म ने झारखंड प्लांट को इसके क्रेडिटरों से खरीदा था। बहुगुणा ने कहा, स्टील सेक्टर में पहले से तनाव में चल रहे बैंकों के लिए पावर सेक्टर ने एक नई टेंशन दे दी है। नियामकों की ओर से भारतीय बैंकों पर अपने रेकॉर्ड को क्लियर करने का दबाव है। उधर, सरकार अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए भी कोशिश कर रही है। ऐसे में बैंक पावर सेक्टर को दिए जाने वाले कर्ज पर ध्यान देंगे जो कि कर्ज में डूबा हुआ है और ईंधन की समस्या से ग्रस्त है। 2014 में कोर्ट द्वारा कंपनियों की 200 कोयला खनन परमिट रद्द किए जाने के बाद पावर सेक्टर के बुरे दिन शुरू हो गए। इसके बाद झारखंड सहित देशभर के पावर प्लांट्स पर असर पड़ा और पूरे सेक्टर की दुर्दशा हो गई। यह समस्या सरकारी बैंकों के लिए ज्यादा गंभीर है क्योंकि वे पहले से ही कर्ज की समस्या से जूझ रहे हैं। 21 सरकारी बैंकों में से (जो भारत में कुल लोन का दो तिहाई देते हैं) कथित तौर पर 19 घाटे में चल रहे हैं। इंडिया पावर कॉर्पोरेशन के चैयरमैन हेमंत कनोरिया ने कहा, अगर बैंक निर्णायक कार्रवाई करें तो इन प्लांट्स की बिक्री संभव है। कुछ प्रॉजेक्ट्स को लेकर बैंक इंतजार में हैं कि शायद हालत में सुधार हो। पिछले महीने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब नैशनल बैंक ने एक नई कंपनी बनाकर 10 पावर प्रॉजेक्ट्स को अपने अधिकार में लेने पर विचार किया था। आरबीआई के हालिया प्रस्ताव में कर्ज डुबाने वाले कर्जदाताओं की पहचान करने की बात कही गई है। इसके बाद ज्यादा कंपनियों के दिवालिया होने की आशंका बढ़ गई है।