पिंजौर गार्डन की खूबसूरती आपका भी मन मोह लेगी
पिंजौर भारत के मशहूर टूरिस्ट प्लेस्स में से एक है। चंडीगढ़ से 22 किलोमीटर दूर शिवालिक पर्वतमालाओं से घिरा पिंजौर मुगल बादशाहों का भी पसंदीदा स्थल रहा है और कई धार्मिक व ऐतिहासिक मान्यताएं भी इस स्थल से जुड़ी हैं। यहां एक बार आकर बार-बार आने को मन करता है। पिंजौर गार्डन मुगलों की उत्कृष्ट उद्यान कला का जीता-जागता नमूना है। देवदार और पॉम के विशाल पेड़ों से घिरे हुए पिंजौर में शीशमहल, रंगमहल और जलमहल जैसे दर्शनीय स्थल हैं।
इतिहास
महाभारत काल में इसे पंचपुरा के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने बारह साल के वनवास के बाद तेरहवां वर्ष यहीं गुजारा तथा 365 बावडि़यों का निर्माण करवाया था, जिनमें से कई अब भी मौजूद हैं। यहां स्थित शिवमंदिर के साथ की बावड़ी को सात पवित्र नदियों गंगा, से भी पवित्र समझा जाता है, कहा जाता है कि इस बावड़ी को अर्जुन ने द्रौपदी की प्यास बुझाने के लिए तीर मारकर बनाया था। सिखों के पहले गुरु श्रीगुरुनानक देव जी भी पिंजौर आए थे। उद्यान में प्रवेश करने के लिए चार दरवाजे बने हैं जिनमें तीन बंद रहते हैं।
शीश महल
शीश महल के भीतरी कक्ष की छत शीशे के टुकड़ों से बनी है। इसीलिए इसका नाम शीश महल पड़ा है। महल के झरोखे और छत पर बनी भव्य छत्र देखते ही बनती है। यहां से मुगल शैली में बना लॉन शुरू होता है, जिसके बीच से एक सुंदर नहर गुजरती है।
रंगमहल
रंगमहल स्थापत्य कला का नायाब नमूना। इसके स्तंभों व मेहराबों पर कमाल की नक्काशी हुई है। यहां एक बेहतरीन होटल भी बना है। जहां लजीज व्यंजनो का स्वाद उठाने लाखों टूरिस्ट आते है।
जलमहल
रंग
महल के मंडप की जाली से सामने दिखता है भव्य जलमहल। परीलोक की गाथा सुनाता यह महल आश्चर्य लोक से कम नहीं है। यहां चारों और बने फव्वारे महल को शीतल और मोहक छटा से सराबोर कर देते हैं, वहीं सैलानी भी यहां
मंत्रमुग्ध हो उठते है। जलमहल की छत पर जाने के लिए सीढि़यां भी बनी हैं।
फलों के बाग
भारत के अन्य मुगल बागों की अपेक्षा पिंजौर गार्डन में फलों के बाग अभी भी सुरक्षित हैं। आम, लीची व जामुन के पेड़ यहां बहुत गिनती में हैं। आमों की तो यहां इतनी किस्में हैं कि हर वर्ष आम प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाता है।