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पुराने नोटों का क्या करेगा भारतीय रिजर्व बैंक

A police officer stands guard in front of the Reserve Bank of India (RBI) head office in Mumbai April 17, 2012. The Reserve Bank of India cut interest rates on Tuesday for the first time in three years by an unexpectedly sharp 50 basis points to give a boost to flagging economic growth but warned that there is limited scope for further rate cuts. REUTERS/Vivek Prakash (INDIA - Tags: BUSINESS)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार की ओर से 500 और 1000 रुपये के नोटों को अमान्य करार दे दिया गया है। इसके बाद से देश भर के बैंकों, सरकारी संस्थानों और रेलवे स्टेशनों में बड़े पैमाने पर लोग पुराने नोट जमा करा रहे हैं।

इस बीच आम लोगों के जेहन में अकसर यह सवाल आता है कि प्रचलन से बाहर हो चुके इन नोटों का सरकार क्या करेगी? आरबीआई के मुताबिक वह इन नोटों को खत्म करने की तैयारी में जुटा है। केंद्रीय बैंक के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम पूरी तरह से तैयार हैं।’ उन्होंने कहा कि इन पुराने नोटों की श्रेडिंग (चूर-चूर करना) की जाएगी।
अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, ‘इन नोटों को अब रीसाइकल नहीं किया जा सकता है। इसलिए इनकी श्रेडिंग की जाएगी और फिर इन्हें पिघलाकर कोयले की ईंटें तैयार की जाएंगी। 
फिर इन्हें कॉन्ट्रैक्टर्स को दे दिया जाता है, जिन्हें वे लोग लैंड फिलिंग यानी सड़कों गड्ढे आदि भरने में इस्तेमाल करते हैं।’ मार्च 2016 में देश में 15,707 मिलियन 500 रुपये के नोट प्रचलन में थे। वहीं, 1000 रुपये के नोटों की संख्या 6,326 मिलियन थी।
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 दुनिया भर में केंद्रीय बैंक अलग-अलग तरीकों से प्रचलन से बाहर हुए नोटों का निपटान करते रहे हैं। इनमें से एक तरीका इन नोटों को जलाकर इमारतों को गर्म करने का काम भी किया जाता है।
1990 तक बैंक ऑफ इंग्लैंड की ओर से बैंकों के निपटान के लिए इसी तरीके को अपनाया जाता था। वर्ष 2000 के बाद से बैंक ऑफ इंग्लैंड ने प्रचलन से बाहर हुए नोटों की खाद तैयार करना शुरू कर दिया है। इसे खेतों में डाला जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है।
2012 में हंगरी में नोटों से जले थे अलाव
अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व पुराने नोटों की श्रेडिंग कर इन्हें कलात्मक और वित्तीय इस्तेमाल के लिए सौंप देता है। 2012 में हंगरी के केंद्रीय बैंक ने प्रचलन से बाहर हुए नोटों को जला दिया था ताकि गरीब लोग सर्दी में आग सेंक सकें। इसके बाद इनकी ईंटें तैयार की गईं और फिर उन्हें मानवाधिकार संगठनों को सौंप दिया गया।
 

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