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पुष्प रंगोली के रंगों से मनोरम हुआ मनकामेश्वर उपवन घाट

-पुलवामा मे शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों को दीप जलाकर दी श्रद्धांजलि
– माल्यर्पण व भजनों के साथ मनाई गई शाकम्भरी देवी जयंती

लखनऊ : पौष शुल्क पूर्णिमा एवं शाकम्भरी देवी जयंती के अवसर पर मंगलवार को मनकामेश्वर उपवन घाट पर अदभुत छटा बिखर रही थी। वर्ष के प्रथम गोमती आरती के मौके पर घाट शरद ऋतु के पुष्पों से सुशोभित किया गया था। आदि माँ गोमती महाआरती को देखने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। नमोस्तुते माँ गोमती एवं मनकामेश्वर मठ मंदिर की श्रीमहंत दिव्यगिरी जी महाराज ने मुख्य मंच से माँ गोमती की महा आरती की। पंडित डॉ श्यामलेश तिवारी के आचार्यत्व में सभी वेदियों पर एक ही वेश भूषा में सभी पंडितों ने मंत्रों उच्चार के साथ माँ गोमती की आरती और पूजा अर्चना की। महा आरती में जगदीश गुप्त “अग्रहरि”, तेजवीर सिंह, उपमा पांडेय, यश अग्रवाल, राजकुमार, विजय मिश्रा, अमन शुक्ला, कार्तिक तोमर, चरित्र, अमित गुप्ता ,दीपू ठाकुर, कमल जायसवाल, नीतू, नीरज, पूनम, शुभतिवारी, सोनू शर्मा, तरुण, आदित्य मिश्र, मुकेश, संजीत, संजय सोनकर, हिमांशु गुप्ता ,कृष्णा सिंह की अहम भूमिका रही।

बच्चों ने प्रस्तुत किए संस्कृत कार्यक्रम, लड़कियों ने सजाई रंगोली

लखनऊ के विभिन्न विद्यालयों से आये हुए बच्चों ने आरती थाली, दीप एवं कलश प्रतियोगिता और राधा कृष्ण नृत्य नाटिका मे हिस्सा लिया। आर्यन श्रीवास्तव और रोम कश्यप ने भगवान श्री कृष्ण व राधा की विहंगम लीला प्रस्तुत की, देहरादून से आई आठ साल की बच्ची आरुषि गुप्ता ने मंत्र मुग्द करने वाला शिव तांडव प्रस्तुत किया। बाद में बच्चों द्वारा कला प्रदर्शन को लेकर मनकामेश्वर मठ मंदिर की श्री महंत दिव्यगिरी जी द्वारा पुरुस्कार देकर सम्मानित किया गया। मनकामेश्वर उपवन घाट पर वेदियों के सामने व पूरे परिसर में सारिका वर्मा के निर्देशन में खुशी, आदिका सक्सेना, अंजलि तिवारी, नीतू, गीता, निधि पांडेय, अंजू, प्रियंका रावत, मानसी, उपमा पांडेय, रीतू समेत अन्य लड़कियों ने फूलों एवं दीपों से रंगोली सजाई।

माँ शाकम्भरी देवी जयंती मनाई गई

घाट पर शाकम्भरी देवी जयंती भी मनाई गई। महंत देव्यागिरी ने शाकम्भरी देवी के चित्र पर माल्यार्पण किया। देव्यागिरि ने कहा कि शाकम्भरी नवरात्री पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णिमा तक होती हैं। पौष माह की पूर्णिमा को ही पूराणों के अनुसार शाकम्भरी माताजी का प्रार्दुभाव हुआ था अतः पूर्णिमा के दिन शाकम्भरी जयंती मनाई जाती है, उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर से करीब 40 कि.मी. की दूरी पर शिवालिक की पर्वतमालाओं में स्थित आदिशक्ति विश्वकल्याणी मां शाकम्भरी देवी के प्राचीन सिद्धपीठ की छटा ही निराली है।पुराण में वर्णित है कि इसी पवित्र स्थल पर मां जगदम्बा ने रक्तबीज का संहार किया था तथा सती का सिर भी इसी स्थल पर गिरा था। जनश्रुति है कि जगतजननी मां शाकम्भरी देवी की कृपा से उपासक के यहां खाद्य सामग्री की कमी नहीं रहती। शाक की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण वे शाकम्भरी देवी के नाम से लोको में जानी जाती हैं। श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित रूप के अनुसार मां शाकम्भरी देवी नीलवर्ण, नयन नीलकमल की भांति, नीची नाभि एवं त्रिवली हैं। कमल पर विराजमान रहने वाली मां शाकम्भरी देवी धनुष धारणी हैं। देवी पुराण में उनकी महिमा का वर्णन करते हुये उल्लेख किया गया है कि वे ही देवी शाकम्भरी हैं, शताक्षी हैं व दुर्गा नाम से जानी जाती हैं। यह भी सत्य है कि वे ही अनंत रूपों में विभक्त महाशक्ति हैं।

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