प्रचण्ड बहुमत की लाचार केजरी सरकार
वस्था परिवर्तन और अलग तरह की राजनीति करने का दावा करते हुए आम आदमी पार्टी दिल्ली प्रदेश की गद्दी पर प्रचंड बहुमत के साथ बैठी थी, लेकिन जहां सरकार की कार्यशैली की आलोचना हो रही है वहीं पार्टी के भीतर भी सब कुछ ठीक नहीं है। योगेन्द्र यादव और प्रशान्त भूषण को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद भी अरविन्द केजरीवाल की मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं। पार्टी ने अपने चार सांसदों में से दो को निलंबित कर दिया है तो वहीं शेष बचे दो सांसद में से एक भगवंत मान भी पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं। पार्टी के विधायक एक-एक करके किसी न किसी मामले में थाने और यहां तक की जेल यात्रा तक कर चुके हैं। अब एक मंत्री पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। एक ओर जहां दिल्ली की जनता डेंगू की चपेट में है तो वहीं आम आदमी पार्टी को भी डेंगू फैलाने वाले मच्छर ने काट लिया है। हालत यह है कि केन्द्र से कैसे रिश्ते हैं, यह जग जाहिर हो चुका है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा कि उसे मालूम है कि दिल्ली सरकार और भारत सरकार के बीच क्या चल रहा है, लेकिन इस मामले को दोनों को ही मिल बैठकर सुलझाना होगा।
आम आदमी पार्टी में योगेन्द्र यादव और प्रशान्त भूषण का मामला अभी ठण्डा नहीं पड़ा था कि दल के दो सांसदों ने बागी तेवर अपना लिए। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। यह फैसला पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी)ने किया। दोनों सांसदों ने बाबा बकाला (अमृतसर) में पार्टी से निकाले गए एक नेता दलजीत सिंह की रैली में भाग लिया था। दोनों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए मामले को पार्टी की अनुशासन समिति के पास भेज दिया गया है। अनुशासन समिति में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव पंकज गुप्त, पार्टी की दिल्ली इकाई के संयोजक दिलीप पांडेय और प्रवक्ता दीपक वाजपेयी हैं। पीएसी की बैठक में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फोन के जरिए शामिल हुए। लोकसभा चुनाव में आप को पंजाब में चार सीटें मिली थीं। पार्टी से निलंबित धर्मवीर गांधी पटियाला और हरिंदर सिंह खालसा फतेहगढ़ साहिब लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
पीएसी ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि गांधी और खालसा पिछले कुछ दिनों से पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। इससे पार्टी के मूल मकसद को आघात लगा है। दोनों सांसदों पर पार्टी के खिलाफ बयान देने और पार्टी के फैसलों की मीडिया में निंदा करने का आरोप लगाया गया है। आप ने कहा है कि रक्षाबंधन के मौके पर आप के समानांतर हुई सभा में पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल, आप सांसद भगवंत मान और सद्धू सिंह की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया। पार्टी का आरोप है कि ऐसा जानबूझ कर और लोगों को गुमराह करने के लिए किया गया। गांधी पिछले काफी दिनों से पार्टी से निकाले गए योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। अपने निलंबन पर हरिंदर सिंह खालसा ने कहा, निलंबन के फैसले से उन्हें हैरानी नहीं हुई, पार्टी नेतृत्व ऐसी किसी भी कार्रवाई के लिए तैयार था। उन्होंने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल भी ‘इंदिरा इज इंडिया’ जैसी सोच वाले हैं। उन्हें लगता है कि वही पार्टी हैं और पार्टी उनसे है। उन्होंने कहा, ‘पार्टी का मौजूदा पंजाब नेतृत्व और विशेषकर संजय सिंह के काम करने के तरीके से लोगों में नाराजगी है। आप के निष्ठावान नेता दलजीत सिंह को जब निकाल दिया गया तो कुछ भी हो सकता है।’ साफ है कि आम आदमी पार्टी के अन्दर और उसकी सरकार में भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। ईमानदार सरकार होने का दम्भ भरने वाली केजरीवाल सरकार पर सस्ती कीमतों पर प्याज खरीदकर मंहगे दामों में बेचने का भी आरोप लगा है। वहीं आप सरकार का दावा है कि उसने प्याज पर दस रुपए प्रति किलो की दर से सब्सिडी दी है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस घोटाला होने की बात कहकर केजरी सरकार को घेर रहे हैं। वहीं आम आदमी पार्टी की सरकार अब केंद्र और उपराज्यपाल की तरफ से गैर कानूनी घोषित फैसलों को लेकर बैकफुट पर नजर आ रही है। केजरीवाल कैबिनेट ने फैसला किया कि दानिक्स अधिकारियों के समयबद्ध वेतन वृद्धि को लागू करने का आदेश टाल दिया जाए। साथ ही सीएनजी वाहन फिटनेस घोटाला जांच आयोग का मामला कोर्ट पर छोड़ दिया है। कैबिनेट के फैसले के अनुसार, दिल्ली अंडमान निकोबार आईलैंड सिविल सर्विसेज (दानिक्स) की 18 साल पुरानी मांग दिल्ली सरकार ने पूरी की है। अब उपराज्यपाल कार्यालय से नोट आया है तो नए ग्रेड पे और समयबद्ध वेतन वृद्धि का आदेश गृह मंत्रालय से अंतिम फैसला होने तक टाल दिया गया। वहीं, गृह मंत्रालय को पत्र लिख रहे हैं कि दानिक्स अधिकारियों के मामले में जल्द निर्णय लें। इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने माना कि सीएनजी वाहन फिटनेस घोटाला जांच आयोग मामला अभी दिल्ली हाईकोर्ट में है। कैबिनेट ने फैसला किया कि उपराज्यपाल लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को इस तरह का नोट कैसे भेज सकते हैं, इस पर केंद्र सरकार से सलाह लेंगे। वहीं किसी कानून के तहत उपराज्यपाल सीधे दिल्ली सरकार के अधिकारियों को निर्देश दे सकते हैं और चुनी गई सरकार को किस नियम के तहत निर्देश जारी कर सकते हैं, इस पर भी सरकार गृह मंत्रालय से सलाह लेगी। कैबिनेट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछने का फैसला किया है कि उपराज्यपाल को किस शक्ति के तहत चुनी गई सरकार के आदेश और सर्कुलर को रद करने का अधिकार प्राप्त है?
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच चल रहे टकराव से वह भलीभांति अवगत है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि समय आने पर जनता उनके कामकाज को देखकर अपना फैसला सुनाएगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि दोनों सरकारों को मिल बैठकर इसका समाधान निकालना चाहिए। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा की पीठ ने कहा कि हम जानते हैं कि दिल्ली में शासन और प्रशासन को लेकर समस्या है और कई मसलों को लेकर लोगों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। अखबारों में इससे संबंधित खबरें भरी पड़ी रहती हैं। लिहाजा जरूरी है कि दोनों सरकार आमने-सामने बैठकर बातचीत करें। पीठ ने कहा कि अगर शासन को लेकर कमी है तो आम जनता समय आने पर अपना फैसला सुनाएगी। वास्तव में आम जनता उनके कामों को देखते हुए उन पर निर्णय लेगी। शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ के समक्ष कहा कि दिल्ली में शासन व्यवस्था सही नहीं है, जिस कारण आम लोगों को कई गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। याचिका में अदालत से गुहार की गई थी कि केंद्र और दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वे अपना काम इस तरीके से करें कि आम लोगों को कोई समस्या न हो। दोनों सरकारों के बीच जंग छिड़ी हुई है। दोनों संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं कर रही हैं। यही कारण है कि साफ-सफाई, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था जैसी परेशानी को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। लोग डेंगू से मर रहे हैं और दोनों सरकारें एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर गौर करने के बाद कहा कि हम इस तरह का निर्देश जारी नहीं कर सकते क्योंकि सभी अथॉरिटी से आशा की जाती है कि वह संविधान और कानून के मुताबिक काम करें। शासन व्यवस्था से संबंधित मसले पर कोर्ट कोई निर्देश नहीं दे सकता। पीठ ने कहा कि इस संबंध में कोई न्यायिक आदेश पारित नहीं किया जा सकता। अदालत ने वरिष्ठ वकील लूथरा से कहा कि अगर जनहित से जुड़ी कोई विशिष्ट परेशानी को हमारे समक्ष लाया जाएगा तो उस पर जरूर विचार किया जाएगा। इसके बाद वरिष्ठ वकील ने याचिका वापस ले ली। ल्ल
आप के निष्ठावान नेता दलजीत सिंह को जब निकाल दिया गया तो कुछ भी हो सकता है।’ साफ है कि आम आदमी पार्टी के अन्दर और उसकी सरकार में भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। ईमानदार सरकार होने का दम्भ भरने वाली केजरीवाल सरकार पर सस्ती कीमतों पर प्याज खरीदकर महंगे दामों में बेचने का भी आरोप लगा है।
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच चल रहे टकराव से वह भलीभांति अवगत है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि समय आने पर जनता उनके कामकाज को देखकर अपना फैसला सुनाएगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि दोनों सरकारों को मिल बैठकर इसका समाधान निकालना चाहिए। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा की पीठ ने कहा कि हम जानते हैं कि दिल्ली में शासन और प्रशासन को लेकर समस्या है और कई मसलों को लेकर लोगों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। अखबारों में इससे संबंधित खबरें भरी पड़ी रहती हैं। लिहाजा जरूरी है कि दोनों सरकार आमने-सामने बैठकर बातचीत करें। पीठ ने कहा कि अगर शासन को लेकर कमी है तो आम जनता समय आने पर अपना फैसला सुनाएगी। वास्तव में आम जनता उनके कामों को देखते हुए उन पर निर्णय लेगी। शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की।