कुंभ मेले बड़ी संख्या में आने वाले साधु के आने और जाने का शायद ही किसी को पता चलता है। कहते हैं कि नागा साधु कभी भी आम मार्ग से नहीं जाते, बल्कि देर रात घने जंगल, आदि के रास्ते से अपनी यात्रा करते हैं।
दीन-दुनिया से अमूमन दूर तप-साधना में लीन रहने वाले नागा साधुओं के बारे में माना जाता है कि एक आम आदमी के मुकाबले कहीं ज्यादा कठिन जीवन होता है।
संतों के 13 अखाड़ों में से सिर्फ सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं। इनमें जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा शामिल हैं।
नागा साधुओं को दीक्षा के बाद उनकी वरीयता के आधार पर पद दिए जाते हैं। जैसे — कोतवाल, बड़ा कोतवाल, महंत, सचिव आदि।
नागा साधुओं के अखाड़े से जुड़ा कोतवाल अखाड़े और नागा साधुओं के बीच सेतु का कार्य करता है। सुदूर जंगल, कंदराओं आदि में रहने वाले इन नागा साधुओं को कुंभ में बुलाने का कार्य हो या फिर कोई सूचना पहुंचाने का काम, यही कोतवाल करते हैं।
आम आदमी की तरह नागा साधु भी श्रृंगार करते हैं। सूर्योदय से पूर्व उठ जाने के बाद नित्यक्रिया और स्नान के बाद नागा साधु अपना श्रृंगार करते हैं। भभूत, रुद्राक्ष, कुंडल आदि से श्रृंगार करने वाले नागा साधु अपने साथ त्रिशूल, डमरू, तलवार, चिमटा, चिलम आदि साथ रखते हैं।
माना जाता है कि संन्यासी अखाड़ों से जुड़े अधिकांश नागा साधु आम आदमी से दूर हिमालय की चोटियों, गुफाओं, अखाड़ों के मुख्यालय, और मंदिर आदि में अपनी धूनी जमाकर साधनारत रहते हैं, लेकिन ये कभी भी एक स्थान पर लंबे समय तक नहीं टिकते हैं और पैदल ही भ्रमण करते हैं।
अपने अखाड़े से जुड़े देवता की साधना और ध्यान करने वाले ये नागा साधु तमाम तरह की यौगिक क्रियाएं करते हैं। शैव परंपरा से जुड़े नागा साधु ध्यान—साधना के अलावा अपने गुरु की विशेष रूप से सेवा करते हैं।
नागा साधुओं को शंकराचार्य की सेना कहा जाता है। सनातन परंपरा के प्रतीक माने जाने वाले इन अखाड़ों और इनसे जुड़े नागा साधुओं का वैभव कुंभ और महाकुंभ में ही देखने को मिलता है।