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बच्चों को बनाएं नेचर फ्रेंडली, घूमने जाएं तो साथ ले जाएं

नई दिल्ली : अब वह दिन जा चुके हैं, जब बच्चे पेड़ों पर चढ़ते थे, लुका-छिपी खेलते थे या मिट्टी के घर बनाते थे और घंटों धूल में खेला करते थे। अब मनोरंजन का मतलब उनके लिए टीवी या मोबाइल की स्क्रीन से चिपके रहना है। ऐसे में अभिभावकों को अपने बच्चों को नेचर फ्रेंडली बनाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। हम आपको बता रहे हैं कि बच्चों को प्रकृति के करीब कैसे लाया जाए। पैरंट्स को सबसे पहले खुद से पूछना होगा कि क्या असल जिंदगी में वह खुद अपने मशीनी उपकरण छोड़ कर नेचर के करीब जाने के लिए तैयार हैं। अगर नहीं, तो सबसे पहले अभिभावकों को खुद इसकी कोशिश करनी होगी, क्योंकि यदि आप चाहते है कि बच्चें विडियो गेम्स या फोन से दूर रहें तो आपको बच्चों के सामने अपना उदारहण पेश करना होगा।

सॉइकॉलजिस्ट डॉक्टर वर्खा चुलानी के मुताबिक, बच्चों में आदतें हमेशा उनके पैरंट्स से ही आती हैं। ऐसे में अगर बच्चा पैरेंट्स को सोफे पर चिपका देखेगा तो वह भी उन्हें ही कॉपी करेगा। इसी तरह अगर बच्चा देखेगा कि उनके अभिभावक एक्टिव हैं, उन्हें वॉक पर ले जाते हैं, उनके साथ स्पोर्ट्स में भाग लेते हैं या पार्क जाते हैं तो बच्चा खुद ऐक्टिव रहेगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, प्रकृति के करीब रहने से बच्चों में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक बर्ताव का ज्ञान पैदा होता है। चाइल्ड काउंसलर पद्मा कुमारी के मुताबिक, बतौर अभिभावक हमें खुद से यह पूछना चाहिए कि क्या हम बच्चे को ऐसा माहौल दे पा रहे हैं, जिससे बच्चे का पूरा विकास हो सके और साथ ही उसका मानसिक विकास भी हो। बच्चों के दिमागी विकास के लिए आस-पास के माहौल का बड़ा महत्व होता है, तो अगर हम लगातार प्रकृति के साथ कुछ समय बिताते हैं, तो इससे हमारे बच्चों को भी प्रेरणा मिलती है, साथ ही उनका विकास भी अच्छे से होता है। काउंसलर पद्मा के मुताबिक, हमेशा घर के अंदर रहने से बच्चों में फिजीकल समस्याएं होने लगती हैं। इसके अलावा घंटो ऑनलाइन गेम्स खेलने से उनमें हाइपरनेस आ जाती है और वे जल्दी-जल्दी बैचेन होने लगते हैं। बच्चे न तो इस तनाव को हैंडल कर पाते हैं और न ही इस तनाव से बाहर निकलने का कोई सही रास्ता ढूंढ पाते हैं। लेकिन इस बात का भी ख्याल रखें कि आप बच्चे को आधुनिक जीवन शैली और संसाधनों से वंचित न कर दें।

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