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बच्चों में अपने अधूरे ख्वाब देखने वालों के लिए बहुत जरूरी है ये कहानी

भारत की ये बड़ी विडंबना है कि पिता अपने अधूरे सपने बच्चों में देखते हैं. पिता के ये सपने बच्चों पर बोझ बन जाते हैं. दुर्भाग्य से यह बोझ उन्हें नजर नहीं आता. जाहिर सी बात है कि ऐसी स्थिति में बच्चों के अपने सपनों का कोई मोल नहीं है. ‘लाखों में एक’ एक वेब सीरीज है जिसमें कुछ इसी तरह की कहानी को दिखाया गया है.

वैसे बच्चों की स्कूलिंग और पैरेंटिंग को लेकर थ्री इडियट, तारे जमीं पर और उड़ान जैसी फिल्मों में भी इसी तरह की कशमकश से जूझते परिवार और बच्चों की कहानी को दिखाया गया है. ‘लाखों में एक’ सपनों को बेचने वाली कोचिंग फैक्ट्रियों के बीच सामान्य मिडिल क्लास परिवार और बच्चों की एक नई कहानी लेकर आया है. यह वेबसीरीज एक कोचिंग सेंटर में पढ़ रहे स्टूडेंट्स के जीवन की अंधेरी तस्वीर पेश करती है. इसमें दिखाया गया है कि कैसे कोचिंग सेंटर झूठे सपने दिखाकर पैरेंट्स से पैसा ऐंठते हैं और कैसे बेमन पढ़ाई करने को मजबूर बच्चे दबाव के बोझ तले सुसाइड की कगार तक पहुंच जाते हैं. यह भी दिखाया गया है कि बच्चे जबरदस्ती पढ़ाई के लिए ड्रग्स तक लेने लगते हैं.

क्या है कहानी?

बिस्वा कल्याण रथ की वेब सीरीज ‘लाखों में एक’ एक ऐसे स्टूडेंट की जिंदगी पर आधारित है, जिसका पढ़ाई में कुछ खास इंटरेस्ट नहीं होता है. लेकिन फैमिली के दबाव में आकर वो 12वीं के बाद आईआईटी का एग्जाम पास करने के लिए एक इंस्टीट्यूट में एडमिशन ले लेता है. वेब सीरीज की कहानी एक टीनऐज लड़का आकाश (ऋत्विक साहोर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो कि रायपुर का रहने वाला है. आकाश एक औसत स्टूडेंट है. आकाश को साइंस की बजाय कॉमर्स पढ़ना चाहता है. वो मिमिक्री आर्टिस्ट है. 12वीं के बाद मिमिक्री के लिए अपना यूट्यूब चैनल भी बनाता है. लेकिन पैरेंट्स के दबाव की वजह से आईआईटी की तैयारी के लिए जबरदस्ती कोचिंग सेंटर भेज दिया जाता है. पैरेंट्स को लगता है कि बेटा आईआईटी कर लेगा तो उनके अधूरे सपनों को पंख लग जाएंगे. उन्हें लगता है कि कोचिंग में जाने से उनका बेटा आईआईटी कर लेगा, क्योंकि तमाम उन्हीं कोचिंग सेंटर्स से आईआईटी के लिए निकलते हैं.

आकाश के पैरेंट्स उसका विशाखापट्टनम के एक आईआईटी कोचिंग सेंटर में दाखिला करा देते हैं. जहां दसवीं में कम मार्क्स होने के कारण उसे सेक्शन डी में भेज दिया जाता है. सेक्शन डी में ना तो टीचर्स पढ़ाते हैं और ना ही बच्चे पढ़ते हैं. क्लास का माहौल अच्छा नहीं रहता है. यहां तक की सेक्शन डी के बच्चों के लिए हॉस्टल का माहौल भी ठीक नहीं होता है. पढ़ाई के लिए अच्छी फैसिलिटी भी नहीं होती है. इंस्टीट्यूट में भेदभाव किया जाता है. दरअसल, ये सेक्शन उन औसत बच्चों के लिए है जो पढ़ाई लिखाई में लीचड़ होते हैं. लेकिन कोचिंग सेंटर पैसा वसूलने की वजह से ऐसे बच्चों को भी दाखिला दे देता है. और बच्चों के पैरेंट्स को लगता है कि कोचिंग सेंटर में आकर बच्चे ने आईआईटी की एक सीढ़ी चढ़ ली.

आकाश को अपने मां-पापा के सपने पूरे करने के लिए पढ़ना था. वो कड़ी मेहनत करने की कोशिश भी करता है. यहां तक की जब हॉस्टल में उससे पढ़ने नहीं दिया जाता है तो वो टॉयलेट में जाकर पढ़ता है. लेकिन कोई फायदा नहीं होता है. कड़ी मेहनत करने के बाद भी आकाश के सब ऊपर से गुजर जाता है. कोचिंग सेंटर के इंटरनल एग्जाम में उसके बेहद कम नंबर आते हैं. इसी बीच आकाश को पता चलता है कि उसके दोस्त नंबर अच्छे लाने के लिए कोचिंग सेंटर में चीटिंग करते हैं. चीटिंग इसलिए कि उन्हें कोचिंग सेंटर से निकाल न दिया जाए और पैरेंट्स की उलाहना का शिकार न होना पड़े. शुरू में तो आकाश खुद को इससे दूर रखता है. लेकिन जब नंबर नहीं आते हैं और फैमिली प्रैशर के चलते आकाश में अपने उन्हीं दोस्तों के साथ मिल जाता है और चीटिंग शुरू कर देता है.

बता दें कि इंस्टीट्यूट में आकाश बकरी (जय ठक्कर) और चुड़ैल (आलम खान) से ही अपना कनेक्शन बना पाता है. इन्हीं दोस्तों के साथ मिलकर आकाश चपरासी को पैसे देकर चीटिंग करता है और आकाश के अच्छे नंबर आने शुरू हो जाते है. कोचिंग में आकाश की खूब तारीफ होती है और उसका ट्रांसफर सेक्शन ए में हो जाता है. आकाश बहुत खुश होता है और सोचता है कि अब आगे सब ठीक होगा. लेकिन वास्तव में आकाश की जिंदगी में परेशानियां यहीं से शुरू होती हैं. कहानी में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं. आगे आकाश को कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और क्या आकाश आईआईटी का एग्जाम पास कर पाता है? इसके लिए आपको वेब सीरीज देखनी पड़ेगी.  वास्तव में विस्तार से वेबसीरीज की असल कहानी आपको देखने-सुनने के बाद ही समझ आएगी. ये कहानी हर पैरेंट्स के लिए बहुत जरूरी है.

एक्टिंग  

2012 में आई फिल्म ‘फरारी की सवारी’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाले ऋत्विक साहोर आज जाने-माने एक्टर हैं. वो हर रोल में आसानी से फिट हो जाते हैं. इस वेबसीरीज में भी उन्होंने शानदार अभिनय प्रस्तुत किया है. चाहे इमोशनल सीन हो या एक डिप्रेशन में जाते बच्चे की भूमिका, हर कैरेक्टर में उन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है. उनकी एक्टिंग तारीफ के काबिल है. वहीं जय ठक्कर और आलम खान ने भी सपोर्टिंग एक्टर के तौर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. दोनों ही अपने रोल के साथ इंसाफ करते नजर आए. बिस्वा कल्याण रथ ने वेबसीरीज में एक टीचर की भूमिका निभाई है, जो इंटेलिजेंट बच्चों को पढ़ाता है. सीरीज में उनका रोल छोटा है लेकिन अच्छा है. वहीं वेबसीरीज के बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है.

क्यों देखें ये वेब सीरीज?

इस वेब सीरीज को देखने की कई वजह हैं. खासतौर पर पैरेंट ये वेबसीरीज जरूर देखें. आप ये भी सोच रहे होंगे वेबसीरीज 2017 में आई तो अभी क्यों देखें? अब पुरानी हो गई है, लेकिन ‘लाखों में एक’ वेबसीरीज का कंटेंट ऐसा है जो इनदिनों आम हैं. खासतौर पर ये बेवसीरीज हर मीडिल क्लास फैमिली की कहानी है. जहां पैरेंट्स चाहते हैं कि बच्चे पढ़ लिखकर उनका नाम रौशन करें. ताकि समाज में उनका नाम हो सके और सभी उनके बच्चे को जानें. उसकी प्रशंसा करें. इसी के चलते कहीं ना कहीं पैरेंट ना चाहते हुए भी खुद ही अपने बच्चों को डिप्रेशन की तरफ झोंक देते हैं. क्योंकि मां-पापा का सपना पूरा करने के चलते बच्चे अपने सपनों को मार देते हैं और वो सब करते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए. कभी-कभी बच्चे गलत रास्ते पर भी चल निकलते हैं. आज के दौर में बच्चों के मन में आत्महत्या का ख्याल आना भी आम बात हो गई है. राजस्थान के कोटा में डॉक्टर और इंजीनियर की पढ़ाई करने वाले बच्चों की सुसाइड करने की खबरें अक्सर आती हैं. अच्छे नंबर लाना, अच्छे कॉलेज में पढ़ना और ऊंची नौकरी करने की होड़ में खुद को भूलने लगे हैं. बेवसीरीज समाज को एक आइना दिखाती है.

अभिषेक सेनगुप्ता ने शानदार निर्देशन किया है. वेबसीरीज जो मैसेज समाज को देना चाहती है उसमें कामयाब रही है. पूरी वेबसीरीज में एक इमोशनल कनेक्शन है. पूरे समय बांधे रखती है. लैंथ भी ज्यादा लंबी नहीं है तो आसानी से एक बार में इसे देखा जा सकता है. कहानी कहीं भटकती नहीं है. कुल मिलाकर दमदार स्क्रिप्ट और निर्देशन.

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