बदलनी होगी बीजेपी को यूपी में इंपोर्टेड नेताओं की रणनीति
लखनऊ: दिल्ली में चुनावों से ठीक पहले इंपोर्टेड (आयातित) नेता लाने की रणनीति बीजेपी के लिए घातक साबित हुई। कमोबेश यही रणनीति बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने यूपी में भी अपना रखी है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी की कमान आयातित नेता अमित शाह के नेतृत्व में लड़ा था, जो सफल भी रही थी। लेकिन, विधान सभा के उप चुनाव रहे हों या फिर छावनी परिषद के चुनाव रहे हों, बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है। यूपी के नेताओं को हाशिये पर धकेलने के बाद यहां प्रोजेक्ट करने के लिए कोई चेहरा ही नहीं है। बीजेपी भले ही इस असफलता के कुछ भी कारण गिनाए, लेकिन जानकार मानते हैं कि दिल्ली हो या यूपी दोनों ही जगह बीजेपी का आम जनता से जुड़े मुद्दों से दूर जाना उसे भारी पड़ा है। वे यह भी मानते हैं कि अगर यूपी में बीजेपी इसी ढर्रे पर चली तो यहां भी उसका प्रभाव खत्म हो जाएगा।
यूपी से गायब बीजेपी का चेहरा
वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि हताशा में मोदी लहर के पीछे भागने वाले बीजेपी के नेतृत्व को अब सबक लेना चाहिए। यह मोदी के लिए भी सबक है कि वे नकारा नेताओं को कबतक ढोएंगे। बीजेपी के लिए यूपी के सीएम अखिलेश यादव का बदला हुआ एटीट्यूड और विकास के मुद्दे पर काम करना भी विधान सभा चुनावों के पहले एक बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे में यूपी बीजेपी के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं दिखता जो बीजेपी को नेतृत्व दे सके।