पर्यटन

बीरबल की जन्म भूमि जालौन

बुन्देलखण्ड के मुख्य जनपदों में जालौन का भी एक प्रमुख नाम है। यह जिला कानपुर और झांसी के बीच है, जहां जालौन, उरई, कौंच व कालपी आदि तहसीलें व नगर हैं। इनमें से कालपी का अपना एक विशेष महत्व है। इस नगर में हिन्दू मुस्लिम धर्मों के अनेक इबादतगाह हैं। अनगिनत मजार, मंदिर यहां मौजूद हैं। इस नगर के चप्पे-चप्पे में इतिहास की अनेक कहानियां बसी हैं व यहां देखरेख के अभाव में बिखरी पड़ी हैं। महाभारत के लेखक महाऋषि व्यास का जन्म भी यहीं हुआ था। कृष्ण के पुत्र शाम्ब की आराधना स्थली भी कालपी रही है। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी प्रमुखता से अपने लेखों में जिक्र किया है।

कालपी में ही आचार्य भवभूति ने सूर्य (कालप्रियनाथ) में अपने नाटकों का सफलतापूर्वक मंचन किया था। जालौन का कालपी नगर हमें सम्राट अकबर के उन हाजिर जवाब नवरत्न बीरबल की याद दिलाता है जो यहीं पैदा हुये थे। 1528 में एक साधारण परिवार में जन्मे बीरबल का नाम महेश दास था। राजा रामचन्द ने उनकी कविताओं से प्रसन्न होकर कविराय की उपाधि दी थी पर जब धीरे -धीरे बीरबल की लोकप्रियता अकबर के दरबार में पहुंची तब उन्हें अकबर ने सम्मानजनक पद पर अपने दरबार में रख लिया। उन्हें कालिंजर राज्य का जागीरदार बनाकर राजा बीरबल तक की पदवी दे डाली थी।

राजा बीरबल ने अपने गृह नगर कालपी में अपना घर बनवाया था, जो आज देखरेख के अभाव में टूट फूट रहा है। कालपी में अकबर द्वारा शाही मस्जिद और टकसाल का निर्माण कराया गया था।कालपी नगर के दक्षिण में चौरासी गुम्बद का मकबरा भी मौजूद लोदी का है, जो सिकन्दर लोदी का सूबेदार था। वैदिक ग्रंथों व महाभारत के अनुसार महर्षि वेदव्यास का जन्म यमुना के तट पर हुआ था। यहां एक भव्य व्यास मंदिर भी दर्शनीय स्थलों में से एक है। जालौन जनपद में पहुलाल का मंदिर ग्राम चुर्खी में भी एक दर्शनीय स्थल है, जहां भगवान गणेश पुरुष रूप में नाग पर सवार हैं। जालौन के मंदिर व दर्शनीय स्थलों के भव्य चित्र बुन्देलखण्ड संग्रहालय उरई में मौजूद हैं जिसे भाई हरिमोहन पुरवार जी ने काफी मेहनत से संजोया है।

यह संग्रहालय काफी सम्पन्न व अनूठा है। जालौन में रामपुरा, जगम्मनपुर के दुर्ग भी हैं। कदौरा में की रियासत की अच्छी कोठी बनी हुई है। जालौन जिले की औद्योगिक प्रगति अन्य नगरों से काफी कम रही है। यहां विकास की किरण पूरी तौर से अभी नहीं आई है। जालौन जिले के रामपुर थाने के अन्तर्गत 5 नदियों का संगम ठपंचनदाठ भी एक रमणीक व मनोहारी पिकनिक स्पॉट है, जहां पहुज, बेतवा, जमुना, सिंध, चम्बल आदि नदियां मिलती हैं। यहां अगर आने जाने का रास्ता उत्तर प्रदेश सरकार बना दे तो यह स्थल केरल, मदास व बम्बई के समुदी किनारों की तरह विकसित किया जा सकता है पर यहां की लगातार उपेक्षा नुमाइन्दों व नौकरशाहों की क्षमताओं पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है। जालौन की मिठुलाल जी व उनके पुत्रों की आतिशबाजी भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है।

जालौन जिले में देशभर में प्रसिद्ध आल्हा ऊदल के मामा महिल का भी तालाब पर्यटन के क्षेत्र में अहम है। यहां हरिमोहन पुरवार जी जैसे लेखक भी हैं जो काफी महत्वपूर्ण लेखन का कार्य करते देखे जा सकते हैं व के.पी. सिंह जैसे जुझारु पत्रकार भी उरई-जालौन की शान रहे हैं। के.पी. तो सामाजिक न्याय के लिये भी काफी कुछ करते देखे जाते हैं। डॉ. प्रमोद अग्रवाल जो बुन्देलखण्ड के झांसी जिले से हैं उन्होंने देश के सबसे लोकप्रिय व ईमानदार बेरेस्टर कामरेड ज्योति बसु, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के साथ 20 साल किया था। डॉ. अग्रवाल भी यहां के एक संवेदनशील व लोकप्रिय लेखक हैं। उनकी 40 पुस्तकों साया हुई हैं।

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